गुरुवार, अगस्त 26, 2010

ऐसी जगह फटूँगा मैं

इतना क्रोध भला किस कारण
बदन पड़ गया है काला
कैसा डरावना गर्जन है
आँखों में कैसी ज्वाला


फूल रहे हैं गाल तुम्हारे
भरा हुआ जैसे जल हो
क्या है जी शुभ नाम तुम्हारा
लगते तो तुम बादल हो


बादल हो तो बरस पड़ो बस
यही तुम्हारी मंजिल है
घोषित सूखा-ग्रस्त क्षेत्र यह
बारिश के ही काबिल है


जी आपने ठीक पहचाना
किन्तु क्षमा मैं चाहूँगा
अब न यहाँ पर बरस सकूँगा
अन्य किसी दिन आऊँगा


सबका वेतन बढ़ा किन्तु
मेरा न किसी ने नाम लिया
जबकि हमेशा सच्चाई से
मैंने अपना काम किया


अब तो भ्रष्ट आचरण से भी
पीछे नहीं हटूँगा मैं
बारिश जहाँ न हो आवश्यक
ऐसी जगह फटूँगा मैं

4 टिप्‍पणियां:

  1. vivek ji apne to shbdon ko apne ishaare pr nchaa kr jaadui krishme se aek khubsurt rchnaa bna daali he yeh hunr khaan se sikhaa zraa hmen bhi btaa dijiyen alfaaz,flsfaa,sikh kaa yeh smnvy bhut khub he bdhayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. "आँखों में कैसी ज्वाला"

    ई तो अज़रुद्दिन से पूछो जी :)

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  3. यह सही रही, बिलकुल ब्लागर लगता है !

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