हमने जब स्कूल जाना आरम्भ किया तो सबसे पहले लकड़ी की पट्टी मिली और उसपर हमारी मम्मी ने खड़िया से छोटा आ और बड़ा आ लिखा । वैसे खड़िया से लिखना भी रोजाना नसीब में न था । आमतौर पर इस काम के लिए पोता मिट्टी का सहारा लिया जाता था क्योंकि यह पास के नाले में से बिना पैसों के ही उपलब्ध थी और इसको चूल्हे पर पोतने के लिए घर में पहले से ही लाकर रखा जाता था । इसी पोता मिट्टी का बोर बनाया जाता , तत्पश्चात हमारा काम था इस बोर को सरकंडे की कलम से पट्टी पर लिखे हुए अक्षरों पर फिराना इस तरह हमारी शिक्षा की शुरुआत हुई । छटवीं कक्षा में जाकर ऐ बी सी डी सीखीं । पहले बड़ी वाली फ़िर छोटी वाली ।
इस बीच धीरे धीरे शिक्षा का स्वरुप कितना बदल गया है । अब डी पी एस में पुत्र पढ़ता है । नर्सरी में एडमिशन कराया है। कुछ तैयारी घर पर पहले से ही करा रहे थे , प्ले स्कूल में भी जा रहा था । कैपिटल ऐ बी सी डी बोलना और पहचानना सिखा रहे थे । यहाँ आकर पता चला है कि हम तो बहुत पीछे थे । दर असल अब नया तरीका इज़ाद किया गया है कि सबसे पहले बच्चे को कर्सिव राइटिँग करानी है , यानी कि स्टाइल मेँ लिखने का तरीका सिखाना ।
अब आप लोग कृपया मेरे पिछडेपन पर हँसना मत । सान्त्वना अवश्य दे सकते हैँ.
bilkul sahi,ab to bachoo ke saath saath unke maa-baap bhee pis rahe hai es maikale ke siksha main
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन हेतु आप का धन्यवाद .
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