कहा जाता है कि " मूँछें हों तो नत्थूलाल जैसी ".
हमने नत्थूलाल को कभी नहीं देखा . फिर भी हमको लगता है कि नत्थूलाल की मूँछें बहुत आकर्षक रही होंगी . शायद नत्थूलाल से भी आकर्षक . तभी तो लोग नत्थूलाल को भूल गए पर उनकी मूँछें अभी भी जिन्दा हैं . बल्कि यह कहा जाय कि नत्थूलाल अपनी मूँछों के रूप में आज भी हमारे बीच हैं .
कुछ लोगों को लगता है कि नत्थूलाल की मूँछें बहुत बडी बडी रही होंगी . जबकि उनके विरोधी दल वालों का मानना है कि नत्थूलाल छोटी मूँछ रखते थे . इनका तर्क है " चूँकि छोटी मूँछ आरामदायक रहती है इसीलिए मूँछों का यह स्टाइल लोकप्रिय हो गया होगा और यह कहावत बनी होगी .
दोनों ही दल वाले अपने अपने तरीके से नत्थूलाल को फॉलो करते हैं . जैसे विभिन्न धर्मों में ईश्वर को भिन्न भिन्न नामों से जाना गया है उसी तरह नत्थूलाल के अनुयायी भी उनको अलग अलग रूपों में याद करते हैं .
वैसे इन दोनों दलों से अलग एक तीसरा मोर्चा भी है जिसे नत्थूलाल में विश्वास नहीं है . ये स्वयं को देवताओं का फॉलोअर कहते नहीं थकते . अक्सर आदमी अपनी मजबूरी को छिपाने के लिए किसी तर्क का अनुसन्धान करने की जुगत में रहता है . तर्क न मिलने पर इमरजेंसी की स्थिति में कुतर्क से भी काम चला लिया जाता है . वैसे भी तर्क और कुतर्क के बीच कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं होती . ऐसे ही तीसरे मोर्चे वालों में अधिकतर लोग हैं . इनमें कुछ ही लोग देवताओं का अनुसरण अपनी इच्छा से करते हैं . और मूँछें नहीं रखते . पर बहुमत मजबूरी वालों का ही है . किसी की पत्नी को मूँछें पसंद नहीं हैं तो किसी को रोज रोज मूँछें सेट करने का आलस्य घेरे रहता है . कुछ ऐसे भी हैं जो मूँछें रखना तो चाहते हैं पर इनकी मूँछें आती ही नहीं है . मूछों के नाम पर ईश्वर इन्हें चार छ: बाल ही दे पाए थे कि किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना पड गया . बेचारे तीसरे मोर्चे में शामिल हो गए और जमे जमाए तर्क कुतर्क रट लिए .
मजे की बात यह कि ऐसे लोगों में कुछ नारियाँ भी हैं जिन्हें मूँछें न होने का मलाल रहता है . अगर ईश्वर इन्हें कहीं अकेले दुकेले मिल जाए तो ईश्वर का भगवान ही मालिक है . ये शायद झगड ही बैठें . इनको असल में हर चीज में पुरुषों की बरावरी करने का जुनून रहता है , फिर चाहे वह चीज अच्छी हो या बुरी . इन्हें बरावरी के चक्कर में गाली गलौज तक से परहेज नहीं . शायद इसी से मूँछों की कमी पूरी हो जाय .
खैर आगे बढते हैं . ऐसा नहीं है कि मजबूरी ने सिर्फ तीसरे मोर्चे वालों को ही घेरा हो . मजबूरियाँ नत्थूलाल एण्ड पार्टियों के सामने भी हैं . असल में उनमें से कुछ ऐसे जिन्हें मूछें बोझ मालूम होती हैं पर वे अपनी इमेज में कैद हो चुके हैं . उससे बाहर चाहकर भी नहीं निकल पाते . ऐसे लोग मूँछें साफ करने के सपने देखा करते हैं पर बिना मूँछों के समाज में कैसे मुँह दिखाएंगे इसी सवाल को हल नहीं कर पाते . कुछ साहसी लोग बहाने तलाशने में सफल रहते हैं मूँछें साफ कर लेंगे , उसे दुर्घटना का रूप देने की कोशिश करेंगे , कहेंगे कि गलती से साफ हो गई या नाई की गलती है कहकर नाई को चार गालियाँ देंगे . कुछ घाघ टाइप लोग धीरे धीरे लम्बी प्रकिया में योजनाबद्ध तरीके से मूँछें साफ कर देते हैं . पहले छोटी , फिर और छोटी , फिर मक्खी जैसी और उसके बाद तो पब्लिक को याद ही नहीं रहता कि इनके मूँछें हैं या नहीं . बस मौका देखकर किसी दिन उस्तरा फिर जाता है . और बन गए देवता !
हमें तो बस हिटलर वाली मूंछें याद हैं| क्या शानदार लगती थीं!!
जवाब देंहटाएंहमने तो नत्थूलाल जी की मूँछे फिल्म शराबी में देख ली थी..
जवाब देंहटाएंbhaai aaj aapki bhi moonchh bach gai kyaa khub likha hai
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार है. मजेदार है.
जवाब देंहटाएंमूंछ-मूंछ की बात कर डाली. नत्थूलाल जी की मूंछ हमने भी फिलिम शराबी में देखी थी. दस बजकर दस मिनट पर रहती थी उनकी मूंछें. मूंछें तो हमारे पास भी हैं लेकिन हमेशा सवा नौ बजाती हैं. निगाह फेरिये ऐसे भी लोग मिल जायेंगे जिनकी मूंछें साढ़े छ बजाती हैं.
मूँछ अनन्त, मूँछ कथा अनन्ता।
जवाब देंहटाएंमुझे तो रामचन्द्र शुक्ल की मूंछे याद है, खूब-खूब बालों वाली और उसमें से झांकती उजली सी हंसी.
जवाब देंहटाएंरामचन्द्र शुक्ल को तो जानते हैं न?
moochh katha ki jay.kahan kahan hain najren aur kahan kahan nishana ?????
जवाब देंहटाएंwaah| mast rahi moonch katha....
जवाब देंहटाएंघड़ी की सूइयों की तरह बदलती मूछें!
जवाब देंहटाएंनत्थूलाल जी की मूँछें तो अमिताभ बच्चन ने फिल्म शराबी में हिट कर दीं थी। इस पात्र को मुकरी ने निभाया था। नयी पीढ़ी वालों के लिए यह एक कहावत बन गयी। यह बॉलीवुड के भारतीय भाषा और समाज पर स्थायी प्रभाव का नमूना है। :)
जवाब देंहटाएंकुछ साहसी लोग बहाने तलाशने में सफल रहते हैं मूँछें साफ कर लेंगे , उसे दुर्घटना का रूप देने की कोशिश करेंगे , कहेंगे कि गलती से साफ हो गई या नाई की गलती है कहकर नाई को चार गालियाँ देंगे . कुछ घाघ टाइप लोग धीरे धीरे लम्बी प्रकिया में योजनाबद्ध तरीके से मूँछें साफ कर देते हैं . पहले छोटी , फिर और छोटी , फिर मक्खी जैसी और उसके बाद तो पब्लिक को याद ही नहीं रहता कि इनके मूँछें हैं या नहीं . बस मौका देखकर किसी दिन उस्तरा फिर जाता है . और बन गए देवता !
जवाब देंहटाएंजरा पता किया जाये इस श्रेणी में कितने लोग हैं. :)महाराज मुझे तो आपभी इसी श्रेणी मे दिखाई दे रहे हैं. जरा चोसकर बताईये?
रामराम.
आपका ये मूंछ पुराण बहुत बढिया रहा..........
जवाब देंहटाएंकिन्तु आपने ये नहीं बताया कि अपनी खुद की मूछें आपने'तुरन्त दान महाकल्याण'वाले तरीके से साफ की हैं या फिर आपने भी कोई लम्बी प्रक्रिया अपनाई थी.
भैय्या तुमने अपनी मुछे कितने समय मे और किस तरीके से साफ़ की ,तरीका बताये हम भी देवता बनना चाह रहे है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा रहा आपका यह मूंछ पुराण।
जवाब देंहटाएंयार विवेक जी मूंछ पुराण तो बढ़िया पर आप अलीगढ़ से इंडिया कब आये पता ही नहीं चला...!!
जवाब देंहटाएंमनोरंजक पोस्ट. अच्छा सोच कर बताइए कि देवताओं ने मूँछ क्यों नही रखी. यहाँ तक शिव जी के जटा वटा होते हुए भी मुछमुंडे क्यों (अपवाद छोड़)
जवाब देंहटाएंबहुत ही मजेदार पोस्ट है लीजिये अब मूंछो पे एक मेरी और से
जवाब देंहटाएंआदमी की नाक आदमियत की शान होती है और आदमी की नाक महत्वपूर्ण होती है इसीलिए भगवान ने आदमी की मूंछे बनाईं है और नाक को मूंछो से अन्दर लाइन किया है . इसीलिए कहते है की मूंछ हो तो नत्थू लाल जैसी
हाहा हा हा हा हा हा हा क्या आपकी नाक अन्दर लाइन है ?
roopak mehtav bhi hai..
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जवाब देंहटाएंब्लागर वैतरणी को मूँछ की पूँछ पकड़ कर,
पार करै का बेहतरीन विश्लेषण ठोक्यौ है, विवेक भईय्या !
मूंछों पर इतनी सुन्दर विवेकी पोस्ट पढ कर आनन्द आ गया। आप तो अच्छा-भला 'मूंछ पुराण' उपलब्ध करा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंआनन्द आया।
क्या तो मूंछदार लिखा है।
जवाब देंहटाएंयानि आप देवता हो लिया और हम अपनी जगह तलाशें?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..ये कौन बात हुई भई.
बहुत बेहतरीन रची मूँछ गाथा. मजा आया. :)
bahut kaamal ki baat kahi aapne .aap kabhi hamare blog par aaiye ,aapka swagat hai,blog ke follower ban kar sahyog dijiye:
जवाब देंहटाएंhttp://meridrishtise.blogspot.com
अब समझ आया आपके देवता बनने का राज!! रोचक
जवाब देंहटाएंविवेक जी
जवाब देंहटाएंबिना मुछों की आपकी पिक्चर देख कर आपके मूछ पुराण ने हमें आपका दीवाना बना दिया.
अरे विवेक जी,
जवाब देंहटाएंमूछ पुराण ही लिख डाला. जरा अपने चेहरे को देखो, अगर मूछें होती तो मैं कहता कि मूछें हो तो विवेक जैसी.
मेरी मूंछे तो बनी हुयी हैं -इंशा अल्लाह ये ऐसी बनी भी रहेंगी !
जवाब देंहटाएं'मूँछें हों तो नत्थूलाल जैसी' अब नत्थूलाल के जैसी हैं ही नहीं इसलिए हमने नहीं रखा :-)
जवाब देंहटाएंइसमे भी हा हा हा
जवाब देंहटाएंkhub likha ....
जवाब देंहटाएंvyang kafi acha hai