संविधान में लिखा हुआ है, जनता की सरकार ।
लाल बत्तियाँ छीन रही हैं जनता के अधिकार ॥
संविधान में लिखा हुआ है, सब हैं एक समान ।
सुख-सुविधा भोगें दलाल सब, भूखा मरे किसान ॥
संविधान में लिखा हुआ है, नहीं जातिगत भेद ।
ब्राह्मण मरे गरीबी में तो, नहीं किसी को खेद ॥
संविधान में लिखा हुआ है, राज्य धर्म-निरपेक्ष ।
अलग-अलग कानून यहाँ सब धर्मों के सापेक्ष ॥
संविधान में लिखा हुआ है, संप्रभु देश हमार ।
समानान्तर चलती रहतीं यहाँ कई सरकार ॥
संविधान में लिखा हुआ है, जीने का अधिकार ।
निर्दोषों का एनकाउण्टर करे पुलिस हर बार ॥
संविधान में लिखा हुआ है, भारत देश अटूट ।
फ़िर भी तो अलगाववादियों को मिलती है छूट ॥
संविधान में लिखा हुआ है, न्याय-प्राप्ति अधिकार ।
न्याय-प्रतीक्षा करते करते जाते स्वर्ग सिधार ॥
सब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
यह भारत का संविधान बस इसी बात पर मौन ॥
सूचना : स्वप्नलोक कम्पनी के भीषण शुभचिन्तक श्री कुश जी, अपनी कलम वाले, टिप्पणियों का अर्धशतक लगाने में कामयाब हुए हैं । उन्हें कम्पनी की ओर से बहुत बहुत बधाइयाँ । इनसे एक दिन अचानक कुछ शब्द गिर गये तो हम मिल गये । अन्यथा कहाँ मिल पाते ?
हा हा हा..... ये आपकी सूचना के लिये...बाकी ब्रेक के बाद.
जवाब देंहटाएंसब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
जवाब देंहटाएंयह भारत का संविधान बस इसी बात पर मौन ॥.
बहुत सही कहा विवेक जी..
विसंगतियो को उकेरती तीखी रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत त्रासद -श्रेष्ठ रचना !
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंग्य! इस से अधिक तीखी चोट क्या हो सकती है?
जवाब देंहटाएंविसंगतियो को उकेरते हुए बहुत अच्छा और सटीक व्यंग्य लिखा है |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक व्यंग्य रचना . व्यवस्था पर सही करारा निशाना है . बहुत ही उम्दा बधाई.
जवाब देंहटाएंअद्भुत, उत्कृष्ट और अनुपम। आपका कवित्व तो बेजोड़ है ही, इन पम्क्तियों में संविधान की विडम्बना को बहुत सटीक तरीके से आपने प्रतिबिम्बित किया है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंएक बार फिर बहुत कड़ुवा सत्य आपकी लेखनी से निकला है. बधाई.त्रासदी है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि में मेरी साहित्यिक अभिरुचि की तृप्ति करने के सारे सादन मौजूद हैं । विदग्धता के साथ हास्य का सुन्दर विनियोग है - त्रासदी तो है ही ।
जवाब देंहटाएंमेरी भी टिप्पणियाँ गिने रखियेगा - आस-पास ही होंगे पचास के । हम भी शुभचिन्तक ही हैं - अब स्वप्नलोक कम्पनी में हम हैं या नहीं, नहीं जानते । खैर सावधान किये देते हैं - भेदभाव न हो !
सब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
जवाब देंहटाएं>हम है ना!:) ‘मरा’ भारत महान!!!!
कमाल. क्या खूब लिखा है भाई .... वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सटीक और सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
जवाब देंहटाएंयह भारत का संविधान बस इसी बात पर मौन
बस इसी बात का तो रोना है जी:)
बहुत ही बढिया व्यंग्य रचना!!!
सब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
जवाब देंहटाएंयह भारत का संविधान बस इसी बात पर मौन ॥.
क्या खरी खरी सुनाते हैं बहुत सटीक व्यंग बधाई
आपकी यह रचना उत्कृष्ट कटाक्ष है। आला दर्जे का व्यंग रच गए आप प्यारे विवेक भाई। सराहनीय और संग्रहणीय।
जवाब देंहटाएंसंविधान में तो बहुत कुछ लिखा है पर इन अनपढ़ नेताओं और कुंद बुद्धिओं को समझ में आये तो न, वो तो अपने संविधान खुद बनाते हैं।
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग्य ।
विकट सच्चाई को भी इतनी मिठास से कहा जा सकताहै, कमाल है!
जवाब देंहटाएंसब नेता हों भृष्टाचारी, उन्हें सुधारे कौन ।
जवाब देंहटाएंयह भारत का संविधान बस इसी बात पर मौन ॥
बस इसी बात पर मौन, पर विवेक चुप न रहेंगे ।
मीठी मीठी ब्ल़ॉगबतियों से, ख़बर यूं ही लेते रहेंगे ।।
हैपी ब्लॉगिंग :)
अद्भुत, उत्कृष्ट और अनुपम। आपका कवित्व तो बेजोड़ है ही, इन पम्क्तियों में संविधान की विडम्बना को बहुत सटीक तरीके से आपने प्रतिबिम्बित किया है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंगुरूजी की कमी खलने नहीं दे रहे हो.. अच्छा व्यंग्य करते हो जी..
जवाब देंहटाएंहमारी फिफ्टी.. तो हो गयी.. बैट उठाये खड़े है है.. हाथ में दर्द हो रह है.. कोई फोटू तो खींच लो यार..
ई सब अपवाद हैं अत: नियम( संविधान ) सत्य है बाकी सब मिथ्या है। कुश से कहना है आयोडेक्स मलिये काम पर चकिये।
जवाब देंहटाएंकाम पर चकिये मतलब काम पर चलिये। काम बोले तो ब्लाग/चर्चा लिखना च टिपियाना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कटाक्ष किया है आपने व्यवस्था पर......बेजोड़ रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंगुलमोहर का फूल
इस फॉर्मेट में आपकी कविता बहुत फबती है और मैं इसका शुरू से ही कायल रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंकुश जी को अर्धशतक की बधाई,
शतक न चुकना भाई
मैं आई मैं आई
(लगता है तुक मिलाने में कविता का लिंग भेद गड़बड़ा गया है:)
bahut sateek baat kahi aapne vivek ji...
जवाब देंहटाएंhamesha ki tarah..
bahut hi aacha kataksh bana hai..
badhai..
विवेक भाई तीर बिलकुल निशाने पे मारा है | बहुत बढ़िया likha है |
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