सर्वविदित है कि किसी भी व्यक्ति की एक निर्धारित कार्यक्षमता होती है, जिससे अधिक जिम्मेदारी मिलने पर उसकी कार्यकुशलता प्रभावित होने लगती है । इस कार्यक्षमता का स्तर अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकता है, किन्तु असीमित किसी में भी नहीं होता । इसीलिए कोई भी जिम्मेदारी सौंपने से पहले व्यक्ति की सामर्थ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए । परन्तु हमारे देश में चलन है कि जहाँ कुछ व्यक्तियों के ऊपर जिम्मेदारियों का अम्बार है, वहीं दूसरे लोग खाली बैठे हैं ।
केन्द्र सरकार या राज्य सरकारों की बात करें तो जनता को लुभाने और वाहवाही लूटने के चक्कर में मन्त्रियों की संख्या को तो सीमित कर दिया गया पर यह नहीं सोचा गया कि एक ही मन्त्री कैसे कई विभागों की जिम्मेदारी सँभाल पाएगा । आखिर वे भी सुपरमैन तो हैं नहीं, आदमी ही हैं और ज्यादातर ऐसे हैं जो रिटायरमेंट की आयु पार कर चुके हैं तथा बिना सहारे के खड़े रह पाने की भी स्थित में नहीं हैं । अधिकतर सांसद अपनी दो करोड़ रुपये की धन राशि को ही ठिकाने नहीं लगा पाते, जो उन्हें अपने क्षेत्र में विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए मिलती है । ऐसे में मन्त्रियों की संख्या घटाने की अपेक्षा उनके ऊपर होने वाले फालतू खर्चों को घटाना चाहिए था । उस स्थिति में कोई सांसद मन्त्री बनने के लिए राजी ही न होता, ऐसा तो लगता नहीं ।
यही हाल नौकरियों में है । मैन पॉवर शॉर्ट रखी जाती है । जहाँ एक ओर कुछ कर्मचारी वेतन से भी अधिक धनराशि ओवरटाइम के रूप में ले लेते हैं, वहीं अन्य पढे लिखे बेरोजगार चप्पल चटकाते घूमते हैं । जिस देश में इतनी बडी संख्या में लोग बेरोजगार हों वहाँ ओवरटाइम नाम की चिडिया को तो हर जगह से ढूँढ ढूँढकर उड़ा देना चाहिए । एक व्यक्ति एक पद के सिद्धान्त को हरसंभव अमल में लाया जाना चाहिए ।
पर क्या करें जब व्यवस्था के नीति निर्धारक स्वयं ओवरटाइम कर रहे हों तो उनके पास इस दिशा में सोचने की फुर्सत कहाँ ?
सटीक.यही हक़ीकत है.काश ये बात नीति निर्धारको को भी समझ आ जाती,तो शायद बहुत सी समस्या हल हो जाती.बहुत सही और् गँभीर समस्या उठाई है आपने.आपकी पैनी नज़र और कलम को सलाम.
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक बात विवेक जी, कंपनियों में मैनपावर तो कम ही रखीजाती है, जबकि कुछ लोगों के ऊपर इतना काम लाड दिया जाता है कि उन्हें ओवर टाइम मारना पड़ता है. रही बात मंत्रियों की, उनके ऊपर तो जितना काम लादा जाये उतना कम है. मंत्रालय चाहे कम हो या ज्यादा, ये मंत्री-शंत्री काम तो करते ही नहीं हैं.
जवाब देंहटाएंजिस देश में इतनी बडी संख्या में लोग बेरोजगार हों वहाँ ओवरटाइम नाम की चिडिया को तो हर जगह से ढूँढ ढूँढकर उड़ा देना चाहिए । एक व्यक्ति एक पद के सिद्धान्त को हरसंभव अमल में लाया जाना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक बात कही आपने और नीचे की लाइन में जवाब भी आपने बिल्कुल सही दे दिया की जब नीतिनिर्धारक ही ओवरटाईम की मलाई मार रहे हों तो कौन क्या कर सकता है! पर देर सवेर ये अंधेरगर्दी तो बंद होगी ही ! बहुत शुभकामनाएं !
नीति निर्धारकों को फुर्सत मिलेगी तो ये सोचने की जगह ओवरटाइम में आरक्षण नहीं लगायेंगे ?
जवाब देंहटाएंबहुत सही है.
जवाब देंहटाएंप्रिय विवेक भाई,
जवाब देंहटाएंये बिल्कुल वाजिब बात कही आपने जी. सच, हमारे यहाँ मैन पावर का अजीब मिस्मैनेज्मेंट है भाई. किसी को कोई जिम्मेदारी सौंपने के पहले उसकी सामर्थ्य का ख़याल ज़रूर रखना चाहिए. ओवर टाइम के सम्बन्ध एकदम सही नज़रिया पेश किया है आपने. इसे सनद में आना चाहिए लोगों की.
बिलकुल ठीक बात विवेक जी,
जवाब देंहटाएंBAHUT HI SADHRAN TARIKE SE AAPNE BAT KAHI HAI.......PAR WAQUI.....VICHAR KARNE YOGYA HAI
जवाब देंहटाएंठीक बात विवेक जी!!!!
जवाब देंहटाएंएक अच्छा लेख !
जवाब देंहटाएंन सोचा करो भाई इतना की भेजा retirement मांग ले /
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा सोचा है आपने /
हो प्याला गर गरल भरा भी
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों से पी जाऊं
या मदिरा का प्याला देना
मैं उसको भी पी पाऊँ
प्यार रहे बस अमर हमारा
मैं क्यों न फ़िर मर जाऊं
आपकी रचना बेजोड़ है
स्वागत और बधाई
विवेक भाई ,
जवाब देंहटाएंकई दिन से मैं ब्लॉग भ्रमण न कर सका ,आपने जो दरवार को प्यार दिया उसका धन्यबाद , कभी तो मुलाकात होगी .
विवेक भाई ,
जवाब देंहटाएंकई दिन से मैं ब्लॉग भ्रमण न कर सका ,आपने जो दरवार को प्यार दिया उसका धन्यबाद , कभी तो मुलाकात होगी .
अरे भईया आपने लास्ट में कह तो दिया..............तो उनके पास इस दिशा में सोचने की फुर्सत कहाँ ?............... अब क्या चाहते हो आप........???
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