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गुरुवार, अक्तूबर 09, 2008
लुढ़कने वाला लोटा
तब था खतरा जान को, हुए फोन भी टेप । अब घावों पर लग गया, कैसा ठण्डा लेप । कैसा ठण्डा लेप ,मित्रता अब तो गहरी । बना मैम का मित्र, बड़े भैया का प्रहरी । विवेक सिंह यों कहें लुढ़कने वाला लोटा । है बाहर से चिकना पर अन्दर से खोटा ॥
बहुत जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंविजय दशमी पर्व की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
वाह बेट्टा!
जवाब देंहटाएंक्या बात है।
जवाब देंहटाएंबोले तो बिना पेंदी का लोटा !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंआज कल यह बेपेंदी के लोटे बहुत डिमांड में हैं.