मैं सपनों की बात सुनूँ, या जनमत का सम्मान करूँ ।
पशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ क्या न करूँ ॥
उम्र गुजरती जाती है, पर मंजिल अब तक नहीं मिली ।
बाँछें बहुत खिलीं-मुरझायीं, लेकिन मेरी नहीं खिलीं ॥
शुभचिन्तक उकसाते हैं, पर आस टूटती जाती है ।
जनमत साथ न मेरे, किस्मत हाय रूठती जाती है ॥
तेन्दुलकर तो जमे हुए हैं, शायद मंजिल पा लेंगे ।
दो हज़ार ग्यारह में भी, उनको तो लोग खिला लेंगे ॥
लेकिन दो हज़ार चौदह तक, मैं भी क्या टिक पाऊँगा ।
अब जो भी एक बार फिर, किस्मत तो अजमाऊँगा ॥
मुझ पर खाकर तरस कदाचित्, जनमत साथ खड़ा हो ले ।
ढलता सूरज धूप बिखेरे, मेरा अक्स बड़ा हो ले ॥
जो विधि का विधान वह होगा, फिर क्यों चिन्ता में घुलता ।
मन को समझाता हूँ, फिर भी बढ़ती जाती व्याकुलता ॥
जी करता है माया तज, साधू बन प्रभु का ध्यान धरूँ ।
पशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ, क्या न करूँ ॥
पशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ क्या न करूँ ॥
उम्र गुजरती जाती है, पर मंजिल अब तक नहीं मिली ।
बाँछें बहुत खिलीं-मुरझायीं, लेकिन मेरी नहीं खिलीं ॥
शुभचिन्तक उकसाते हैं, पर आस टूटती जाती है ।
जनमत साथ न मेरे, किस्मत हाय रूठती जाती है ॥
तेन्दुलकर तो जमे हुए हैं, शायद मंजिल पा लेंगे ।
दो हज़ार ग्यारह में भी, उनको तो लोग खिला लेंगे ॥
लेकिन दो हज़ार चौदह तक, मैं भी क्या टिक पाऊँगा ।
अब जो भी एक बार फिर, किस्मत तो अजमाऊँगा ॥
मुझ पर खाकर तरस कदाचित्, जनमत साथ खड़ा हो ले ।
ढलता सूरज धूप बिखेरे, मेरा अक्स बड़ा हो ले ॥
जो विधि का विधान वह होगा, फिर क्यों चिन्ता में घुलता ।
मन को समझाता हूँ, फिर भी बढ़ती जाती व्याकुलता ॥
जी करता है माया तज, साधू बन प्रभु का ध्यान धरूँ ।
पशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ, क्या न करूँ ॥
जो विधि का विधान ...वही होना है ...तो फिर फिक्र कैसी ...
जवाब देंहटाएंजनमत का सम्मान जरुरी.... समझता कौन है .. !!
जी करता है माया तज, साधू बन प्रभु का ध्यान धरूँ ।
जवाब देंहटाएंपशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ, क्या न करूँ ॥
न ना विवेक जी ऐसा कभी मत करें क्या देख नही रहे आज कल के साधूयों को क्या क्या गोरख धन्धे करने पडते हैं । बस विधी का विधान कहता है कि आप बहुत अच्छी चल रहे हैं यूँ ही चलते रहें। बहुत अच्छी लगी रचना। देर बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ असल मे आपका ब्लाग ब्लागवाणी पर आज ही नज़र आया। धन्यवाद्
सपनो की सुनिये क्योंकि सपने जनमत के आधार पर ही जन्म लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंबड़ी उलझन है खोया मेरा दिल है...
जवाब देंहटाएंमेरा दिन कब आएगा ?.......कौन है यह ?
जब भ्रम लगे तो सिर्फ अपने दिल से पूछो , जो दिल कहे उसे मान लो सही जवाब मिलेगा !
विवेक समर्थ हैं ....और अपने बल पर समर्थ हैं
मैं सपनों की बात सुनूँ, या जनमत का सम्मान करूँ ।
जवाब देंहटाएंपशोपेश में पड़ा हुआ हूँ, काम क्या करूँ क्या न करूँ
Bahut,bahut sundar rachana!
अच्छी रचना .. ढेरो शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना , शुभकामाएं।
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