आज 2 अक्टूबर है, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का जन्म दिवस । लालबहादुर शास्त्री जी का भी जन्म दिवस आज ही है । गाँधी जी के साथ अहिंसा का अटूट सम्बन्ध है और अहिंसा के साथ हिंसा अटूट रिश्ता है । हिंसा एक प्रकार की ऊर्जा है जो एक व्यक्ति उत्सर्जित करता है ।
ऊष्मा भी ऊर्जा का ही एक रूप है । जब किसी वस्तु में ऊष्मा का घनत्व अधिक होता है तो उसका ताप बढ़ जाता है । ऐसी स्थिति में उससे ऊष्मा का उत्सर्जन भी बढ़ जाता है । जब ऊष्मा के स्रोत से ऊष्मा का उत्सर्जन होता है तो यह सीधी रेखा में प्रवाहित होती है । मार्ग में आने वाली हर वस्तु पर इसका प्रभाव पड़ता है । अब यह उस वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह उत्सर्जित ऊष्मा से कितनी ऊष्मा अवशोषित करती है । कुछ वस्तुएं ऊष्मा का बिल्कुल भी संग्रह नहीं करती हैं । जितना उत्सर्जन इनके ऊपर पड़ता है ये आगे पार निकल जाने देती हैं जैसे भृष्ट चुंगी अधिकारी तस्करी के सामानों से भरे ट्रक को निकल जाने देता है ।
कुछ वस्तुएं ऊष्मा को परावर्तित कर देती हैं । इनका सिद्धान्त जैसे को तैसा वाला होता है । यदि ऊष्मा सीधी आपतित होती है तो ये भी सीधा उसे स्रोत की ओर परावर्तित करके ईंट का जवाब पत्थर से देती हैं । यदि ऊष्मा किसी अन्य कोण से कटाक्ष की तरह आपतित होती है तो ये भी उसे उसी कोण से दूसरी ओर भेज देती हैं । जैसे रैगिंग से पीड़ित विद्यार्थी सीनियरों द्वारा ली गयी रैगिंग का बदला जूनियर छात्रों की रैगिंग से लेता है । दर्पण का व्यवहार भी ऐसा ही होता है ।
कुछ वस्तुएं जिन्हें ब्लैक-बॉडी या कृष्णिका कहा जाता है अपने ऊपर आपतित ऊष्मा की सारी मात्रा को अवशोषित कर लेती है और बाद में उसे अपनी शर्तों पर उत्सर्जित करती है । यही स्थिति आदर्श अहिंसक की होती है जो सारी हिंसा को सह लेता है । वह हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देता ।
चूँकि कृष्णिका आदर्श अवशोषक होती है इसलिए हर वस्तु इस स्तर को प्राप्त नहीं कर सकती । जिस आदर्श को हर कोई पा ले वह आदर्श ही क्या ? इसीलिए आदर्श ऊँचे रखे जाते हैं ताकि कुछ श्रेष्ठ लोग ही उन तक पहुँच सकें और बाकी लपलपाते रहें । कुछ छ्द्म आदर्श भी होते हैं जो दूर से देखने पर आदर्श लगते हैं लेकिन पास आते ही उनकी पोल खुल जाती है और वे नकलची साबित होते हैं । इस श्रेणी में ऐसे लोगों को रखा जा सकता है जो संस्कृत के कुछ कठिन श्लोकों को रटकर देवभाषा ज्ञाता होने का स्वांग रचते हैं और ऐसा जाहिर करते हैं कि जिसे संस्कृत नहीं आती मानो वह निरा मूर्ख ही है । कुछ अंग्रेजी के कठिन से स्पेलिंग याद कर डालते हैं और और जहाँ चार लोग जमा दिखें वहीं अपने अंग्रेजी ज्ञान का उत्सर्जन करने लगते हैं ।
संतुलित लोग ग्रे-बॉडी की तरह होते हैं जो उत्सर्जित ऊष्मा का कुछ भाग आवश्यकतानुसार अवशोषित कर लेते हैं । कुछ भाग ऊष्मा स्रोत को भी उसकी औकात के हिसाब से परावर्तित कर देते हैं ताकि उसके भाव न बढ़ जाएं । बाकी को आगे जाने देते हैं ताकि यह किसी और जरूरतमंद के काम आ सके ।
वैसे तो अब तक आप समझ चुके होंगे । लेकिन जो न समझे हों उन्हें बता दें कि यह एक घटिया पोस्ट है जो हमारे एक बढ़िया पाठक की भारी माँग पर लिखी गयी है ।
आखिर घटिया चीजों का भी अपना मार्केट होता है !
तो क्या समझे कि गांधी जी में उष्मा नहीं थी या फिर वे उत्सर्जित ऊष्मा का कुछ भाग आवश्यकतानुसार अवशोषित कर लेते थे ? :-))
जवाब देंहटाएंस्वप्नलोक में आपके अनुसार घटिया चीजों की मार्केटिंग में शब्द और श्रम खर्च करना युक्तिसंगत नहीं होगा.
जवाब देंहटाएंयह सही है कि घटिया चीजों का अपना मार्केट होता है। इसी से प्रेरित होकर हम पहले भी लिख चुके हैं- खराब लिखने के फ़ायदे
जवाब देंहटाएंरही बात देवभाषा और आंग्लभाषा के उत्सर्जन की तो आप तापभौतिकी के प्रवाह के नियम पर तवज्जो दीजिये न! नियम शायद कहता है- ऊष्मा का प्रवाह उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ़ होता है और ऊष्मा प्रवाह की दर दोनों वस्तुओं के तापान्तर की कुछ घात के समानुपाती होती है। तो जिसका भाषा का तामपान ज्यादा होता है वह दूसरे की तरफ़ शब्द उत्सर्जित कर देता है।
वैसे अहिंसा ऊष्मा के बीच में भाषा का घालमेल गैरजरूरी था। शायद घटिया लिखने की मांग के चलते ऐसा किया आपने।
वैसे देवभाषा में ही एक श्लोक है जिसे अनुनाद जी से हमने आग्रह करके उनके ब्लाग पर दुबारा लगवाया अर्थ सहित है!
अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।
बकिया एक घटिया पोस्ट बिना पोस्ट से आलवैजै बेटर है।
आज दो अक्टूबर है. दो अक्टूबर से याद आया कि आज गाँधी जी का जन्मदिवस है. दो अक्टूबर को जितना मान दिया जाता है उतना अगर गाँधी जी को दिया जाता तो अच्छा लगता. अच्छा लगता कैसे नहीं? गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे. गाँधी जी पुजारी तो थे लेकिन वे संस्कृत के श्लोक बोलकर लोगों को डराते नहीं थे क्योंकि वे अहिंसा का पालन करते थे और अहिंसा के पालन के लिए संस्कृत जानना ज़रूरी नहीं है. डराने की बात पर याद आया कि अंग्रेज़ गाँधी जी से इसलिए डरते थे क्योंकि उन्होंने हिंसावादी लोगों की सारी ऊष्मा समेटकर अपने अन्दर रख ली थी. ऊपर से तो वे नर्म रहते थे लेकिन अन्दर से गर्म. अंग्रेज़ लोग पढ़े लिए थे इसलिए उन्हें नर्म-गर्म के सिद्धांत की जानकारी थी और वे गाँधी जी की नरमी के बारे में जितना जानते थे उससे ज्यादा उनके अन्दर अहिंसा की गर्मी के बारे में जानते थे. और जैसा कि होता है, जानकार आदमी समझदारी से काम लेता है. अंग्रेज़ समझदार तो थे लेकिन गाँधी जी उनसे ज्यादा समझदार थे. भारत छोड़ना उचित रहेगा यह बात अंग्रेजों को समझ में आ गई और वे गांधी जी की समझ को सलाम करते हुए भारत छोड़कर चले गए.
जवाब देंहटाएंचूंकि अंग्रेज़ हिंसावादी थे और ज्यादातर भारतीय अहिंसावादी इसलिए तत्कालीन भारतीयों ने अंग्रेजों की हिंसा वाली ऊष्मा को अपने अन्दर ले लिया. यहाँ एक गलती हो गई. ज्यादातर भारतीय इस ऊष्मा को संभाल नहीं पाए और गाँधी जी की तरह अहिंसावादी न रह सके. माने ऊपर से नरम और अन्दर से गरम वाली स्थिति को प्राप्त नहीं हो सके. यही कारण था कि गर्मी से ओत-प्रोत भारतीय तब से लड़े जा रहे हैं और आज तक लड़ रहे हैं. पहले पकिस्तान वालों से लड़े और आज ब्लॉगर बनकर लड़ रहे हैं. कभी पोस्ट के नाम पर तो कभी टिप्पणियों के नाम पर. कभी धर्म के नाम पर तो कभी.....................
वैसे तो अब तक आप समझ चुके होंगे. लेकिन जो न समझे हों उन्हें बता दें कि यह एक घटिया टिप्पणी है जो हमारे ................
भारत के लाल ' शास्त्री जी ' को जयंती के पावन अवसर पर कोटि - कोटि नमन |
जवाब देंहटाएंतो यह लीजिए इस शानदार पोस्ट पर घटिया टिप्पणी | आखिर पोस्ट के साथ टिप्पणी भी तो घटिया हो सकती है |
जवाब देंहटाएंखैर जो भी हो पोस्ट पढ़कर मजा आ गया |
अहिंसा के साथ हिंसा अटूट रिश्ता है ......... yeh kaafi sahi likha aapne....
जवाब देंहटाएंविवेक जी सही है जी..... अहिंसक ब्लैक ब्रांडी की तरह होता है और हिंसक ब्लेक वाइन की तरह होता है .......
जवाब देंहटाएंअजी,पूरी पोस्ट अवशोषित हो गई केवल टिप्पणी बाहर निकली है.जो कृष्णिका दसवीं में समझ नहीं आई वह आज पूरी तरह भेजे में उतर गयी है.
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया.
गाँधी जी के दिन पर सारे दिग्गज सत्य बोल रहें हैं !
जवाब देंहटाएंएक वरिष्ठ ब्लागर के गरिष्ठ उष्मान्वित लेख पर बधाई।दो अक्तूबर गुज़र जई, इसलिए इस पर अगले वर्ष ही बात करेंगे:)
जवाब देंहटाएंएक दोलन करने में लोलक जितना समय लेता है उसे लोलक का दोलन-काल कहते हैं। हमें तो बस इतनी ही भौतिकी आती है। अब दोबारा मत पूछना। हा हा। विवेक भाई मज़ा आ गया। कितनी गंभीर बात और क्या स्टाइल ? वाह वा।
जवाब देंहटाएं११ वीं १२ वी कि भौतिकी का रिवीजन करा दिया.. कंपनी का आभार..
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