संसार में पाप कुछ भी नही है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है।
वैसे भी पाप करने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है । जिस राह जाना ही नहीं उसके कोस क्यों गिनना ? हाँ पुण्य कमाने का इरादा अवश्य है । इस पर यदि विचार करें तो पाते हैं कि जो पाप नहीं है वह पुण्य ही है । अलग-अलग कर्मों से मिलने वाले पुण्य की मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है । पर इस मात्रा की कोई सर्वमान्य यूनिट अभी हम नहीं जान पाए । वैसे तो जिस कार्य से कर्ता को जितना कष्ट हो पुण्य की मात्रा उतनी मानी जाती है । त्यौहार के दिन नहाने से, हवन करने से या दान करने से पुण्य मिलता है । बाकी कर्मों से मिलने वाले पुण्य की मात्रा निश्चित होती है । उसी हिसाब से पाप के नेगेटिव प्वॉइण्ट्स पुण्य के पॉजीटिव प्वॉइण्ट्स से कटते जाते हैं और शून्य के बाद पुण्य का स्टॉक बनने लगता है । पर गंगा-स्नान से आपके जितने भी पाप हैं सभी एक साथ धुल जाते हैं । मतलब गंगा जी के दरबार में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे ज्यादा लाभ मिलता है । जैसे कि हमारी सरकार जब किसानों के कर्ज माफ़ करती है तो जिसने कर्ज लिया ही नहीं वह किसान घाटे में रहता है । इसलिए पुण्य करना आरम्भ करने से पहले गंगा-स्नान कर लें तो फायदे में रहेंगे ।
आपने कुछ विद्यार्थियों को देखा होगा जो आठों पहर किताब लिए दिखाई देगें । पर जब परीक्षा-परिणाम घोषित होता है तो पता चलता है कि पप्पू पास न हो सका । दरअसल वे प्लानिंग से नहीं पढ़ते । ऐसे चैप्टर ज्यादा पढ़ते रहते हैं जिनसे परीक्षा में कम अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं ।
पुण्य करने वाले को भी प्लानिंग से पुण्य करना चाहिए ताकि कम मेहनत करके अधिक पुण्य कमाया जा सके । नीचे हम आपकी सहायतार्थ कुछ सूत्र प्रस्तुत कर रहे हैं जिनसे आप पुण्य में लगने वाली मेहनत और पुण्य की मात्रा का अनुमान लगा सकते हैं ।
- पीड़ित मानव की सेवा करके भी पुण्य कमाया जा सकता है ।
- यज्ञ करने से भी पुण्य मिलता है ।
- अश्वमेघ यज्ञ करने से और भी अधिक पुण्य मिलता है ।
- सौ अश्वमेघ यज्ञ करने से कोई व्यक्ति इंद्र पद का अधिकारी होने योग्य हो जाता है ।
- हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से, १०० बाजपेय यज्ञ करने से और पृथ्वी की लाख बार प्रदक्षिणा करने से जो फल मिलता है सो फल कुम्भ स्नान से प्राप्त होता है।
- गंगा स्नान करने से पुण्य मिलता है ।
- माघ मास में तीन दिन स्नान करने मात्र से मानव को अश्वमेघ यज्ञ बराबर पुण्य मिलता है । प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है। जो फल मनुष्यों को दस वर्ष नियम से माघ स्नान करने से होता है वह फल कुम्भ पर्व के समय तीन बार स्नान करने से प्राप्त होता है ।
- मौनी अमावस्या की शुभ घड़ी में मौन होकर किये गये स्नान से दस अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
- कार्तिक मास में एक हजार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।।
- जब सूर्य और चंद्र मकर राशि पर हों, गुरू वृषभ राशि पर और अमावस्या भी हो तो प्रयाग में कुंभ योग पड़ता है। इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्त्रों अश्वमेघ यज्ञों के बराबर माना जाता है। यहां कुंभ सैकड़ों यज्ञों और एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है।
- ब्राह्मण को भोजन कराने से भी पुण्य मिलता है ।
- ब्राह्मण को दान देने से भी पुण्य मिलता है ।
- ब्राह्मण को गोदान करने से और भी अधिक पुण्य मिलता है ।
- ब्राह्मण यदि वेदपाठी हो तो पुण्य क मात्रा और बढ़ जाती है ।
- तीर्थयात्रा करने से भी पुण्य मिलता है ।
- दूर के स्थान की तीर्थयात्रा का पुण्य अधिक होता है ।
- देश में मनाए जाने वाले महामहोत्सवों में जगन्नाथपुरी की रथयात्रा सबसे अहम और महत्वपूर्ण है। यह परंपरागत रथयात्रा न सिर्फ हिन्दुस्तान, बल्कि विदेशी सैलानियों के भी आकर्षण का केंद्र है। श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना गया है। रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुँचने का मौका जो मिलता है।
- श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि एकादशी व्रत का पुण्य हजार यज्ञों के पुण्य से भी अधिक है । शंखोद्धार तीर्थ एवं दर्शन करने से जो पुण्य मिलता है वह एकादशी व्रत के पुण्य के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं है । व्यतिपात योग में, संक्रान्ति में, चन्द्राग्रहण तथा सूर्यग्रहण में दान देने से और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य एकादशी का व्रत रखने पर मिलता है । जो फल वेदपाठी ब्राह्मणों को एक हजार गौदान करने से मिलता है उससे दस गुना फल एकादशी का व्रत रखने पर मिलता है । दस श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो पुण्य मिलता है वह एकादशी व्रत के पुण्य के दशवें भाग के बराबर होता है । सहस्रों वाजपेय औरअश्वमेध यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी के व्रत के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता है। संसार मेंएकादशी के बराबर कोई पुण्य नहीं।
- देवउठनी एकादशी को तुलसी-शालिग्राम विवाह में कन्यादान करने से असीम फल की प्राप्ति होती है इसमें कन्यादान करने से 100 बाजपेयी यज्ञ और 1000 अश्वमेघ करवाने के बराबर पुण्य मिलता है।
- ब्रह्मयोनि तीर्थ के बारे में मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना इसी तीर्थ के किनारे पर बैठकर की थी। इसलिए इस तीर्थ को जन्म मरण व मोक्ष का साक्षी माना जाता है। यहां बने मंदिर काफी प्राचीन हैं और यहां स्नान करने से सौ स्नानों के बराबर पुण्य मिलता है।
- कुम्भ के अवसर पर पुष्य नक्षत्र में पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से सहस्रों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है । कुंभ के अवसर पर सोमवती अमावस्या को गंगा स्नान करने से सहस्रों अश्वमेघ यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है ।
- वैसे यदि सोमवती अमावस्या के दिन मौनव्रत रहकर तीर्थयात्रा की जाए और वहाँ यथोचित दान-पुण्य भी किया जाय तो व्यक्ति को एक सौ गो-दान करने के बराबर पुण्य मिलता है । यही नहीं यदि इस दिन श्राद्ध किया जाय और 108 पत्तल पूरी व खीर कौओं और गायों को खिलाया जाय तो 108 अश्वमेघ यज्ञों का पुण्य मिलता है ।
- यमुना के सात दिन स्नान, गंगा में एक बार स्नान करने से जो पुण्य मिलता है उससे कहीं अधिक पुण्य मां नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है ।
- मकर संक्रान्ति को दिये गए दान से सहस्रों गो-दान के बराबर पुण्य मिलता है ।
- ओंकारेश्वर मंदिर में पंचकेदारों के दर्शन से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना कि केदारनाथ व अन्य चार केदार स्थानों पर दर्शन का मिलता है।
- जो स्वयं अथवा दूसरे के द्वारा तालाब बनवाता है, उसके पुण्य की संख्या बताना असंभव है।
- यदि एक राही भी पोखरे का जल पी ले तो उसके बनाने वाले पुरुष के सब पाप अवश्य नष्ट हो जाते हैं
- जो मनुष्य एक दिन भी भूमि पर जल का संग्रह एवं संरक्षण कर लेता है, वह सब पापों से छूट कर सौ वर्षों तक स्वर्गलोक में निवास करता है।
- जो मानव अपनी शक्ति भर तालाब खुदवाने में सहायता करता है, जो उससे संतुष्ट होकर उसको प्रेरणा देता है, वह भी पोखरे बनाने का पुण्य फल पा लेता है।
- जो सरसों बराबर मिट्टी भी तालाब से निकालकर बाहर फेंकता है, वह अनेक पापों से मुक्त हो, सौ वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है।
- जिस पर देवता अथवा गुरुजन सन्तुष्ट होते हैं, वह पोखरा खुदाने के पुण्य का भागी होता है- यह सनातन श्रुति है।
- ‘कासार’ (कच्चे पोखरे) बनाने पर तडाग (पक्के पोखरे) बनाने की अपेक्षा आधा फल बताया गया है।
- कुएँ बनाने पर चौथाई फल जानना चाहिए।
- बावड़ी (वापी) बनाने पर कमलों से भरे हुए सरोवर के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
- नहर निकालने पर बावड़ी की अपेक्षा सौ गुना फल प्राप्त होता है।
- धनी पुरुष पत्थर से मंदिर या तालाब बनवावें और दरिद्र पुरुष मिट्टी से बनवावे तो इन दोनों को समान फल प्राप्त होता है, यह ब्रह्माजी का कथन है।
- जो धनी पुरुष उत्तम फल के साधन भूत ‘तडाग’ का निर्माण करता है और दरिद्र एक कुआँ बनवाता है, उन दोनों का पुण्य समान होता है।
- जो पोखरा खुदवाते हैं, वे भगवान् विष्णु के साथ पूजित होते हैं।
तो इन्तजार किस बात का है ? सलेक्ट कर लीजिए अपना पसंदीदा पुण्य । जिसमें मेहनत हो कम, पर पुण्य में फिर भी हो दम । पुण्य कमाने के इच्छुक लोगों की सहायता करके आशा है हमें भी कुछ पुण्य तो मिल ही जाएगा ।
इस देश में अफसर और बिल्डर मिलकर सारे तालाब पाटे डाल रहे हैं. और तो और नदियों के साथ भी यही किया जा रहा है..
जवाब देंहटाएंपुण्य के लिये इतना कुछ करना होगा.
जवाब देंहटाएंआज़ बिना तारीफ़ के नहीं जा सकता
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट आलेख
अरे भाई, आपने तो कन्फ्यूज़ कर दिया!
जवाब देंहटाएंमैं दूसरों के लिए गड्ढा खोदता हूँ, क्या मुझे कोई पुण्य नहीं मिलेगा?
main to soch rahaa thaaa.. aap lokhenge..ki logo ke blog par comment kar ke bhi punya kamayaa jaa sakataa he..:)
जवाब देंहटाएंPunya hamare body ke kis part me jama hota he
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