संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
सोमवार, सितंबर 08, 2008
कर दी है ताकीद
छीना दिन का चैन भी, उड़ी रात की नींद । भूलो यह विश्राम अब्, कर दी है ताकीद । कर दी है ताकीद, मिलेगी तनख्वाह मोटी । तुमने मेरा ब्लॉग, अगर पहुँचाया चोटी । विवेक सिंह यों कहें, हुआ यूँ एक महीना । उड़ी रात की नींद, चैन दिन का भी छीना ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें