मेरी तुमसे न थी शत्रुता, फ़िर भी तुमने वार किया ।
मेरे ही घर आकर तुमने, मुझ पर अत्याचार किया ॥
मैं सोया तुमने शोर किया, मैंने समझा उसको लोरी ।
मैं करता रहा क्षमा तुमको, तुम समझे मेरी कमजोरी ॥
मैं चला अहिंसा के पथ पर, इसलिए न तुमको कष्ट दिया ।
पर तुमने उकसा उकसाकर, आखिर मुझको पथभ्रष्ट किया ॥
तुम रक्त-पिपासा के कारण ही, फ़िदायीन बन पाते हो ।
पर जैविक हमले करके तो, सब हदें पार कर जाते हो ॥
मैंने माना तुम क्षुद्र जीव, तुम तीसमारखाँ बनते हो ।
जितना अनदेखा करता हूँ, तुम और ऐंठकर तनते हो ॥
मुझमें कितनी है शक्ति, तुम्हें शायद इसका अहसास नहीं ।
यदि फ़ूँकूँ तो उड़ जाओगे, छू दूँ तो लोगे साँस नहीं ॥
सारा घर तुमको सौंप दिया, यह जगह चुनी अनजानी सी ।
तुम किन्तु यहां भी आ पहुँचे, यह बात लगी बेमानी सी ॥
मच्छर ! तुम बच न सकोगे अब, मेरे हाथों मर जाओगे ।
पर देकर अपनी जान हाय, हिंसक मुझको कर जाओगे ॥
सूचना : हर्ष का विषय है कि श्री समीर लाल जी 'उडनतश्तरी' वाले स्वप्नलोक पर टिप्पणियों का अर्धशतक ठोकने में कामयाब रहे हैं । उन्हें कम्पनी की ओर से बहुत बहुत बधाइयाँ !
मज़ा आ गया भाई
जवाब देंहटाएंमेरी तुमसे न थी शत्रुता, फ़िर भी तुमने वार किया ....
जवाब देंहटाएंसब के सब लाइनें उम्दा हैं .
वाह वाह मच्छर की जगह "घरवाली" कर दें तो कविता में ओर ज्यादा जान आ जायेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है !!
जवाब देंहटाएंकिसको संबोधित है यह क्या केवल क्षुद्र मच्छर को ?
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.. एसे मच्छर चालिसा लिखा जा सकता है..
जवाब देंहटाएंसमीर जी को कम्पनी के शुभचिंतकों की और से भी शुभकामनाऐं..
आज कल मच्छर विरोधी सेना ओडोनिल लगा कर सोई हुई है।
जवाब देंहटाएंमच्छर की जगह………ये दूसरे वाले विवेक भैया क्या कह रहे हैं?अपन तो खैर इस मामले मे बोलने की मिनिमम क्वालिफ़िकेशन रखते ही नही हैं इसलिये चुप ही रहेंगे।समीर भाई को और आपको हमारी भी बधाई।
जवाब देंहटाएंविवेक जी अब इन्हें क्षमा करने का समय नहीं रहा.
जवाब देंहटाएंमेरी तुमसे न थी शात्रुता, फिर भी....
जवाब देंहटाएंसही है...५० पूरे हुए और अब पुण्य शुभ अंक ५१ अर्पित है.
बिचारा मच्छर ha ha ha ha ..
जवाब देंहटाएंregards
लगता है आपके नाम राशिः अग्रवाल साहब घरवाली से काफी त्रस्त हैं , इन्हें उन कवि से संपर्क करना हो ' घरवाली को केंद्र बना कर सारी कविताएँ करते हैं |
जवाब देंहटाएंवैसे मजा आ गया और देवानंद वाली सी आई डी याद आगई ' कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ' इंस्पेक्टर अब तक ५६ ने सही कहा है ' एक मच्छर आदमीं को हि ..........ही ही ही ,बनादेता है '
विवेक जी,
जवाब देंहटाएंअब तो आप जबरदस्त वापसी कर रहे हो.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई ।
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन भाई. कई बार लगा कि 'इंसानों' के लिए लिखा है. वो तो बाद में पता चला कि मच्छर के लिए लिखी है यह कविता. लेकिन जो भी है, शानदार है. वापसी पर कवि बहुत घातक सिद्ध हो रहा है. मच्छरों के लिए....:-)
हमारी २१ वी प्रतिक्रिया ले लो...दो खाली अनुराग के नाम से भी है ....
जवाब देंहटाएंअभी तो गर्मी बहुत है, ये फिदायीन जी हमारे घर आये नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त लिखा भाई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह विवेक जी............ क्या बात कही है.......... वाकई इन मछरों को अब मसल देना चाहिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विवेक भाई आपने बडे ही गहरे खींचा है। समीर भाई की तो सेन्चुरियां लगती ही रहती हैं
जवाब देंहटाएंअब मच्छर मार दवाई के लिये इस कविता भस्म काम करेगी! समीरलालजी को पचासा पूरा करने के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंवाकई कभी कभी कुछ ऐसा किया जाय कि ये मच्छ्रर मसले जा सके .....खुबसूरत अभिव्यकति
जवाब देंहटाएं"सारा घर तुमको सौंप दिया, यह जगह चुनी अनजानी सी ।
जवाब देंहटाएंतुम किन्तु यहां भी आ पहुँचे, यह बात लगी बेमानी सी ॥ "
कितना कुछ कह गये न आप !
वाह जी वाह, दर्द है कि दहला देता है:)
जवाब देंहटाएंपहले तो मै समझा यह डवलपुरियों का चक्कर होगा लेकिन मच्छर का मामला निकला
जवाब देंहटाएं:-) क्या खूब लिखा है विवेक भाई
जवाब देंहटाएं--
- लावण्या
Bahut badhiya
जवाब देंहटाएंसंकेतों ही संकेतों में कह गए गहरी बात
जवाब देंहटाएंकछु करने तैयार खड़े करने तुम पर घात
करने तुम पर घात सोचते सृजन रुकेगा
स्वपन दर्शी का सपन में भी ह्रदय दुखेगा
मित्र तुम्हारे साथ है कविता-शक्ति अपार
फिर भी करना नहीं कभी पहला वार !
कभी न पहला वार कुंठाएँ मिट जाएँगी
चालबाजों की चाल पल में पिट जाएँगी
वाह जी...
जवाब देंहटाएंठीक ही कहते हैं... 'जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि'
अर्धशतक बाद भी यही कहते हैं-
जवाब देंहटाएंमेरी तुमसे न थी शत्रुता, फ़िर भी तुमने वार किया ।
मेरे ही घर आकर तुमने, मुझ पर अत्याचार किया ॥
वाह! भई वाह!!
मच्छर राजा जरा थम के...ठहरो
जवाब देंहटाएंविवेक जी सो न पाए जम के घहरो....
हा हा हा हा