शनिवार, नवंबर 29, 2008

ढीली होती ना सुनी

१.
कडी सुरक्षा हो गई, सुनते हैं हर बार ।
ढीली होती ना सुनी अभी एक भी बार ।
अभी एक भी बार न यह खबरों में आया ।
था कोई बर्खास्त , पुन: पद पर बैठाया ।
विवेक सिंह यों कहें, सूचना आती छनकर ।
लोकतन्त्र में बिका मीडिया फिल्टर बनकर ।।

२.

हारे जब किरकेट में, हुए बहुत नाराज ।
देशवासियों की गिरी, खिलाडियों पर गाज ।
खिलाडियों पर गाज, घरों पर पत्थर बरसे ।
बेचारे अपने ही घर आने को तरसे ।
विवेक सिंह यों कहें गया वह जोश कहाँ पर ।
गुस्सा क्यों न तनिक दिखलाते नेताओं पर ॥

शुक्रवार, नवंबर 28, 2008

ना मूर्खों के सींग



विदेशियों को सौंपकर, अपने तीर-कमान ।
उनसे आशा कर रहे, रखें हमारा ध्यान ।
रखें हमारा ध्यान, धन्य हैं भारतवासी ।
साध्वी का अपमान, न दें फजल को फाँसी ।
विवेक सिंह यों कहें, प्रसन्न उदार कहाते ।
ना मूर्खों के सींग, युँही पहचाने जाते ॥

सोमवार, नवंबर 24, 2008

नीति-निर्धारकों का ओवरटाइम ?

सर्वविदित है कि किसी भी व्यक्ति की एक निर्धारित कार्यक्षमता होती है, जिससे अधिक जिम्मेदारी मिलने पर उसकी कार्यकुशलता प्रभावित होने लगती है । इस कार्यक्षमता का स्तर अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकता है, किन्तु असीमित किसी में भी नहीं होता । इसीलिए कोई भी जिम्मेदारी सौंपने से पहले व्यक्ति की सामर्थ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए । परन्तु हमारे देश में चलन है कि जहाँ कुछ व्यक्तियों के ऊपर जिम्मेदारियों का अम्बार है, वहीं दूसरे लोग खाली बैठे हैं ।
केन्द्र सरकार या राज्य सरकारों की बात करें तो जनता को लुभाने और वाहवाही लूटने के चक्कर में मन्त्रियों की संख्या को तो सीमित कर दिया गया पर यह नहीं सोचा गया कि एक ही मन्त्री कैसे कई विभागों की जिम्मेदारी सँभाल पाएगा । आखिर वे भी सुपरमैन तो हैं नहीं, आदमी ही हैं और ज्यादातर ऐसे हैं जो रिटायरमेंट की आयु पार कर चुके हैं तथा बिना सहारे के खड़े रह पाने की भी स्थित में नहीं हैं । अधिकतर सांसद अपनी दो करोड़ रुपये की धन राशि को ही ठिकाने नहीं लगा पाते, जो उन्हें अपने क्षेत्र में विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए मिलती है । ऐसे में मन्त्रियों की संख्या घटाने की अपेक्षा उनके ऊपर होने वाले फालतू खर्चों को घटाना चाहिए था । उस स्थिति में कोई सांसद मन्त्री बनने के लिए राजी ही न होता, ऐसा तो लगता नहीं ।
यही हाल नौकरियों में है । मैन पॉवर शॉर्ट रखी जाती है । जहाँ एक ओर कुछ कर्मचारी वेतन से भी अधिक धनराशि ओवरटाइम के रूप में ले लेते हैं, वहीं अन्य पढे लिखे बेरोजगार चप्पल चटकाते घूमते हैं । जिस देश में इतनी बडी संख्या में लोग बेरोजगार हों वहाँ ओवरटाइम नाम की चिडिया को तो हर जगह से ढूँढ ढूँढकर उड़ा देना चाहिए । एक व्यक्ति एक पद के सिद्धान्त को हरसंभव अमल में लाया जाना चाहिए ।
पर क्या करें जब व्यवस्था के नीति निर्धारक स्वयं ओवरटाइम कर रहे हों तो उनके पास इस दिशा में सोचने की फुर्सत कहाँ ?

शनिवार, नवंबर 22, 2008

यहाँ टिप्स हैं टिप्पणियों के


आओ ब्लॉगरो तुम्हें बताएं ।
ब्लॉगिंग में कैसे टिपियाएं ॥
यूज करें कट पेस्ट टेक्निक ।
माउस से बस करें दो क्लिक ॥
कम ना समझें टिप्पणियों को ।
बना चुकी हैं ये कइयों को ॥
जम कर सबको दें टिप्पणियाँ ।
जुडें आपकी सबसे कडियाँ ॥
मेहनत करलें शुरुआत में ।
करें खूब आराम बाद में ॥
कर्जदार सब हो जाएंगे ।
बैठे आप ब्याज खाएंगे ॥
चंद नमूने यहाँ बाँच लें ।
जो पसंद हों उन्हें छाँट लें ॥

"अरे वाह क्या खूब लिखा है ।
इसमें गहरा राज छिपा है ॥
आप उच्च श्रेणी के लेखक ।
स्वीकार करते हम बेशक ॥
लिखते रहिए रोज कुछ न कुछ ।
पढते ही पाठक हों बेसुध ॥
जुदा लगा अंदाज आपका ।
क्या कहना तुम्हरे प्रताप का ॥
ऐसे लेखक कम मिलते हैं ।
शब्द आपने खूब चुने हैं ॥
बात सुनें अब मेरे मन की ।
इच्छा है तुम्हरे दर्शन की ॥
आप बधाई तो स्वीकारें ।
मेरे भी ब्लॉग पर पधारें ॥
नहीं आपका जबाब कोई ।
पढकर हमने सुध बुध खोई ॥
बेशक आप तिरेपन के हैं ।
कार्य आपके बचपन के हैं ॥
है अंदाज जवानों जैसा ।
सत्य यही है संशय कैसा ॥
ब्लॉगजगत की आप धुरी हैं ।
कुछ लोगों की नज़र बुरी हैं ॥
बुरी नज़र ना लगे आपको ।
फेंकें आस्तीन के साँप को ॥
लिखें साथ में जब घरवाली ।
ट्यूब आपकी कभी न खाली ॥
अपना अलग बिलाग चलाते ।
साझे में शामिल हो जाते ॥
यह साझा भी सुन्दर कैसा ।
कौए और गिलहरी जैसा ॥
पूछे कोई ब्लॉगिंग क्या है ।
हमने सबको बता दिया है ॥
आप जो लिखें ब्लॉग वही तो ।
कहते हैं सब लोग यही तो ॥
कलम आपकी जो चल जाए ।
मिट्टी भी सोना बन जाए ॥
ब्लॉग जगत के आप हैं राजा ।
बजा रहे हैं सबका बाजा ॥
बैंगन व मूँगफली टमाटर ।
धन्य आपकी दृष्टि पाकर ॥
मेरा यही विनम्र निवेदन ।
करते रहें लक्ष्य का बेधन ॥
टिप्पणियों से ना हों विचलित ।
ये तो आती रहतीं हैं नित ॥
नाम टिप्पणीकार हमारा ।
ब्लॉग रोज पढते हैं थारा ॥
हम न किसी की भी मानेंगे ।
खाक लिखो वो भी छानेंगे ॥
जिस ब्लॉगर का सिक्का खोटा ।
उसे विषय का रहता टोटा ॥
आप जहाँ भी दृष्टि डाल दें ।
पानी से अमृत निकाल दें ॥
माना कलयुग में हो रहते ।
कथा मगर द्वापर की कहते ॥
आप जहाँ भी हाथ लगाते ।
अनायास ही बस छा जाते ॥
बन जाते हो कभी निठल्ले ।
सदा आपकी बल्ले बल्ले ॥
नहीं कभी टाइम का टोटा ।
समय दण्ड पकडे हो मोटा ॥
सारे ब्लॉगजगत में जाहिर ।
टाँग खींचने में हो माहिर ॥
टाँग किसी की जो दिख जाए ।
फिर न आपसे वह बच पाये ॥
कसकर पकड खींच लेते हो ।
किन्तु मुस्करा कर कहते हो ॥
अरे मित्र हो गया ये लोचा ।
मैंने ऐसा कभी न सोचा ॥
मैंने रैण्डमली खींची थीं ।
दोनों आँख रखीं मींची थी ॥
छोडो इसमें रोना कैसा ।
आगे से न करेंगे ऐसा ॥
भैंस आपकी है हीरोइन ।
ब्लॉगिंग में सब सूना इस बिन ॥

अब विराम बस तारीफों पर ।
एक नज़र डालें दोषों पर ॥

ब्लॉगजगत खेमों में बाँटा ।
इसी बात का है बस काँटा ॥
जल्दी बुरा मान जाते हो ।
टंकी पर भी चढ जाते हो ॥
मान मनौती करवाते हो ।
वापस किन्तु लौट आते हो ॥
तीसमार खाँ खुद हो बनते ।
अन्य किसी को कहीं न गिनते ॥
झगडा स्वयं मोल लेते हो ।
सारा दोष हमें देते हो ॥
पोस्ट गैर की चार लाइना ।
अपनी किन्तु माइक्रो कहना ॥
दस टिप्पणी मँगा लेते हो ।
तत्पश्चात एक देते हो ॥
यह क्या तुम नाराज़ हो गए ?
किस खयाल में आप खो गए ?
कहा सुना सब माफ करो जी ।
लिखते रहो युँही मनमौजी ॥ ॥ "

एक नज़र इस पर भी डालें ।

शायद कुछ पसंद का पा लें ॥

सोमवार, नवंबर 17, 2008

ब्लॉगिंग पर रोक ?

"जी हाँ ! अगर सूत्रों की मानें तो सरकार ब्लॉगिंग पर रोक लगाने का पूरा मन बना चुकी है । ब्लॉगिंग पर रोक लगाने की इस कवायद को काफी सधे हुए कदमों से अंजाम दिया जारहा है ताकि ब्लॉगरों को कानोंकान खबर न हो अन्यथा ये लोग अपने अपने ब्लॉग में सरकार के खिलाफ लिखकर ऐण्टी-इनकम्बेंसी फैक़्टर को मजबूत बना सकते हैं । दर असल इस पूरे प्रकरण का आधार पिछले दिनों कराया गया एक गुप्त सर्वेक्षण है जिसके अनुसार ब्लॉगिंग देश के लिए आने वाले दिनों में एक लाइलाज महामारी के रूप में सामने आसकती है । इसलिए इस जहरीले पौधे को दरख्त बनने से पहले ही उखाड देना बेहतर होगा .इससे जुडे हुए लोग वैसे तो देश के हर हिस्से में हर गली कूचे और ऑफिस में हैं तथा काफी लोगों को इसकी लत पड चुकी है. और दूसरे सीधे सादे लोगों को भी अपने ब्लॉग पढा पढाकर उत्तेजित करते रहते हैं . मगर आज हम बात कर रहे हैं चिकित्सा जगत में फैली हुई इस बुराई की . जी हाँ अपने को भगवान का प्रतिनिधि मानने वाले और पब्लिक में सम्मान प्राप्त डॉक्टर लोग जिनके कंधों पर देश का स्वास्थ्य टिका हुआ है बडी संख्या में ब्लॉगिंग की पकड में आ चुके हैं . ऐसे डॉक्टर का ध्यान मरीजों का इलाज करने से ज्यादा ब्लॉगिंग में रहता है .ये लोग रात को ढाई तीन बजे ही कुछ उल्टा सीधा लिखकर ( जिसको ब्लॉगिंग की भाषा में पोस्ट कहा जाता है ) इण्टरनेट पर डाल देते हैं ताकि बाकी लोग उसे पढकर या बिना पढे अपनी प्रतिक्रिया दे सकें जिसे इनकी भाषा में टिप्पणी कहा जाता है . इसके बाद सारा दिन इनकी एक आँख मरीज की तरफ तो दूसरी कम्प्यूटर स्क्रीन पर लगी रहती है . बीच बीच में ये खुद भी टिप्पणियाँ भेजते रहते हैं ताकि दूसरा ब्लॉगर भी, शिष्टाचारवश ही सही, टिप्पणी भेजने पर मजबूर हो जाय . एक बार तो ऐसा देखा गया कि कोई डॉक्टर पेशेण्ट को इन्जेक्शन लगारहा था कि अचानक उसके ब्लॉग पर टिप्पणी आगई . टिप्पणी पढने के चक्कर में उन महाशय ने सही दवा की बजाय खाँसी की सीरप को ही सिरिंज में भरके मरीज के शरीर में प्रविष्ट करा दिया . बेचारा मरीज जब चिल्ला रहा था तो आप हिल जाएंगे सुनकर कि डॉक्टर ने क्या बोला . अरे भाई पाँच ऐम ऐएल में ही इतनी त्वरित प्रतिक्रिया दे रहे हो, तुम्हें तो ब्लॉगिंग में होना चाहिए . इसी तरह आने वाले समय में हम आपको बताते रहेंगे कि अन्य व्यवसायों में यह बीमारी किस प्रकार नुकसान पहुँचा रही है . सरकार का मानना है कि ऐसे डॉक्टरों की पहचान करना और इन पर लगाम कसना टेढी खीर है . मगर जब ब्लॉगिंग को ही बैन कर दिया जाएगा तो न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी . "
टीवी एंकर ऐसा कह ही रहा था कि मेरी आँख खुल गई, और सपना अधूरा ही रह गया .

हैप्पी बड्डे आगया

हैप्पी बड्डे आगया , असली वाला आज ।
तीस साल के हो गए सुन ले ब्लॉग समाज ॥
सुन ले ब्लॉग समाज बधाई भिज़वा देना ।
बड़े हो गए हम भी अब छोटा मत कहना ॥
विवेक सिंह यों कहें शर्म है इसमें कैसी ।
देउ मुबारकवाद , आपकी श्रद्धा जैसी ॥

शनिवार, नवंबर 15, 2008

बलम तुम हुक्का छोडौ

बलम तुम हुक्का छोडौ ।
कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

बीन बान कैं कण्डा लाई आँच दई सलगाय ।
खोल चपटिया देखन लागी हाय तमाकू नाय ॥

बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

हुक्का हरि कौ लाडिलौ और सबकौ राखै मान ।
भरी सभा में ऐसें सोहै ज्यों गोपिन में कान्ह ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

हुक्का में गंगा बहै और नै में बहै पहाड ।
चिलम बिचारी कहा करै जाके मुह पै धरियौ अंगार ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

नोट: यह मेरी रचना नहीं है . बृज का लोकगीत है .

गुरुवार, नवंबर 13, 2008

फुरसतिया ब्राण्ड टाइमपास

लिखने बैठे ब्लॉग मगर क्या लिखें नहीं खुद जानें ।
ऊटपटाँग अगर लिख जाए प्लीज बुरा मत मानें ॥

लिखना हमको आ जाए तो फिर क्या ब्लॉग लिखेंगे ?
टीवी, अखबार में बसेंगे बाहर ना निकलेंगे ॥

टीवी का तो मत पूछें यह बहुत बुरी बीमारी ।
बेचारा अखबार दशा इसकी ना जाय निहारी ॥

राजा सिर्फ एक दिन का यह उसके बाद भिखारी ।
जाने क्या क्या पोंछ पोंछकर फेंकें अत्याचारी ॥

पडा रहा जाकर कूडे में बिलख बिलखकर रोया ।
कैसी किस्मत पायी सब सुख एक रात में खोया ॥

किस्मत का क्या कहना इसके देखे खेल निराले ।
अंधों के हाथ बटेर मरें भूखे सब आँखों वाले ॥

मरता कुछ भी कर सकता है पापी पेट बताया ।
ईश्वर के इस अद्भुत जग में कहीं धूप कहीं छाया ॥

ईश्वर ने जो ऊँट बनाया उसके मुँह में जीरा ।
जीरे का अब भाव बढ गया हो जैसे यह हीरा ॥

हीरे की तो परख जौहरी ही बतला सकता है ।
हीरा डाक्टर सदा मरीजों का रास्ता तकता है ॥

तकने और ताकने में भी बडा फर्क है भाई ।
ताक झाँक की आदत तो लोगों ने बुरी बताई ॥

तकना मतलब इंतजार करना है जमकर तकिए ।
जब सोना हो तो तकिए को सिर के नीचे रखिए ॥

सोने की कीमतें आजकल आसमान छूती हैं ।
आसमान से बारिश हो तो छतें खूब चूती हैं ॥

चूने से सब गीला गीला होता कोना कोना ।
चूना घर पर करदें तो हो इसका रूप सलौना ॥

रूप रंग में क्या रक्खा है हृदय उतरकर जानें ।
हृदय उतरकर मिलें रक्त में नस नस को पहचानें ॥

खूनी लाल रक्त का रंग तो डरावना होता है ।
आवश्यक है रक्त तभी तो रक्तदान होता है ॥

काले गोरे सबके भीतर एक लहू ही पाए ।
गोरे करें न गर्व रंग यह दो दिन में ढल जाए ॥

अगर तीन दिन तक न ढले तो थोडा घमण्ड करलें ।
चौथे दिन तक बचा रहे तो आसमान सिर धरलें ॥

खुबसूरत लोगों के पडते कभी न पैर जमीं पर ।
इनके गुण ही सब देखें बस परदा पडा कमी पर ॥

सबकी आँखों के तारे ये सूरज चाँद कहाए ।
सोचो इनके बीच कभी गलती से धरती आए ॥

होगा क्या बस चंद्रग्रहण सबको दिखलाई देगा ।
मिलें बधाई सूरज को चंदा मामा को ठेंगा ॥

ठेंगा अगर दिखाएंगे तो भैंस बिदक जाएगी ।
अक्ल बडी या भैंस पूछकर सबको भरमाएगी ॥

जिसकी लाठी भैंस उसी की और अक्ल भी उसकी ।
सदा भैंस वालों की तर है बाकी सबकी खुसकी ॥

काला अक्षर भैंस बरावर अब काला मत लिखना ।
इतने छोटे कम्प्यूटर में मुश्किल उसका फिटना ॥

कम्प्यूटर भी चीज अजब है क्या क्या गुल खिलवाए ।
इण्टरनेट लगालें तो यह किस किस से मिलवाए ॥

इण्टरनेट बिना रक्खा है बुद्धू बक्से जैसा ।
हम भी बुद्धू यह भी बुद्धू है जैसे को तैसा ॥

बुद्धू बुद्धिमान क्या दोंनों अलग अलग होते हैं ।
इनमें मेल खूब रहता है साथ साथ सोते हैं ॥

मेल मिले तो पढकर उसको डिलीट कर देते हैं ।
अगर लगे आवश्यक तो रिप्लाई भी देते हैं ॥

इतना धैर्य धरा है तो बस और जरा सा धरलें ।
अच्छी बुरी जिस तरह भी हो एक टिप्पणी करदें ॥

डरें न हडकाना चाहें तो हडका भी सकते हैं ।
निश्चित है हम यह न कहेंगे साहब क्या बकते हैं ?

गुरुवार, नवंबर 06, 2008

ओबामा की गोटी लाल

अमरीका में गल गयी, ओबामा की दाल ।
व्हाइट हाउस में हुई, इनकी गोटी लाल ।
इनकी गोटी लाल, सँभल कर पाँसे फेंके ।
हाथ खूब बेचारे जॉन मैक्केन पर सेंके ।
विवेक सिंह यों कहें ये अंकल सैम नए हैं ।
पौ बारह हो गई तभी तो तने भए हैं ॥

मंगलवार, नवंबर 04, 2008

कुँआरी लडकी नीचे खडी

सुनिए मेहरबानो सुनिए ।
गाड़ी आपकी जाने वाली है ।
वक्त थोड़ा खाली है ।
चार बातें काम की बताएंगे ।
आशा है घर जाके आप खूब लाभ उठाएंगे ।
जब कोई कुँआरी लडकी नीचे खडी हो जाती है ।
तो बेमतलब का झमेला हो जाता है ।
आदमी असल को भूल जाता है ।
ब्याज के लिए सिर खपाता है ।
करना कुछ और होता है ।
कर कुछ और देता है ।
राह से भटक जाता है ।
खामख्वाह लड़ाई मोल लेता है ।
अपने स्वजनों को दुश्मन समझने लगता है
दिन में परेशान रहे रातों को जगता है ।
कुँआरी लड़की नीचे खडी किसी के भी बीच हो सकती है ।
पति पत्नी में हो जाय ।
प्रेमी प्रेमिका में हो जाय ।
क्या देर लगती है ।
पिता पुत्र के बीच हो जाय,
सास बहू में हो जाती है ।
फालतू मन मुटाव हो
घर तुडवाती है ।
बडे बडे शहरों में अक्सर ये होता है ।
सज्जन खुश रहें तो दिल दुर्जनों का रोता है ।
औरों की खुशी को ये देख नहीं सकते हैं ।
कुँआरी लडकी नीचे खडी होने की राह तकते हैं ।
इंतजार करते हैं ।
जल जल के मरते हैं ।
कुँआरी लडकी नीचे खडी जब खुद नहीं होती है ।
तो खुद ये काम करते हैं ।
अवसर मिलते ही छोटी बडी जैसी भी हो सके ।
सज्जनों के बीच कुँआरी लडकी नीचे खडी पैदा करते हैं ।
मौका ए वारदात से चुपके खिसक जाते हैं ।
दूर खडे होकर नजारा करते हैं ।
क्योकि पास रहने से भेद खुलने से डरते हैं ।
मैनें हिन्दी से काम चलाया अब तक लेकिन ।
अंग्रेजी न बोला तो कुँआरी लडकी नीचे खडी हो जाएगी
आपके और मेरे बीच भी ।
अंतिम हथियार का इस्तेमाल करते हैं ।
अंग्रेजी में आप से ये सच बयान करते हैं ।
ताकि हो नके कोई मिस अण्डर स्टैण्डिंग दोस्तों के बीच ,
कि ये वक्त थोडा खाली है ।
न दी किसी को गाली है ।

मित्रगण