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मंगलवार, फ़रवरी 03, 2009
आल्हा ए डबलपुर बिरादरी
जितने ब्लॉगर रहें डबलपुर शायद किसी शहर में नाय ।
अब तक तो सब रहे प्रेम से लेकिन आँच दई सुलगाय ॥
फूट पड गई बिलागरन में पहले चले व्यंग्य के तीर ।
छुप छुपकर जब सधे निशाने बेचारे हो गए अधीर ॥
लडे डबलपुरिया आपस में लोग तमाशा देखन जांय ।
हम तो ब्लॉगर बाहर वाले हमको कुछ भी मालुम नाय ॥
तू तू मैं मैं आजा आजा दिखा गया अपनी औकात ।
सुनने में भी शरम आरही करते ऐसी ऐसी बात ॥
बडे लोग जब बच्चों जैसे लडने लगें सडक पर आय ।
इनका कौन मेल करवाए बच्चे ताली रहे बजाय ॥
सदा मोह से दर्द उपजता लिखा हुआ शास्त्रों में साफ ।
फिर क्यों बँधे मोह माया में भाई हमको करना माफ ॥
जिन्हें शांति की जिम्मेदारी बैठे धरे हाथ पर हाथ ।
दोंनों ओर कह दिया चुपके भाई हम हूँ तेरे साथ ॥
जब तक तेरे पीछे हम हैं तुझको कौन पडी परवाह ।
खींचा तानी होती ऐसे ज्यों जल बीच लडे गज़ ग्राह ॥
बिलागरो कुछ शर्म करो अब घर की बात न बाहर आय ।
बाहर वाले मौज ले रहे चर्चा करते नमक लगाय ॥
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मैं तो इन सब से अन्जान था..आज चिट्ठा चर्चा में पढ़ा.. और अब आपकी इस कविता में..
जवाब देंहटाएंजब पहली बार आयोजन के बारें ्में सुना तो अच्छा लगा.. लगा था कि अनोपचारिक रुप से लिखने वाले ्भी एक मंच पर आ अपनी बा्ते शेयर करते है.. इससे लिखने की पेन को स्याही मिलती रहती है... लेकिन इस घटनाक्रम से ठेस पहुंची.. लेकिन कोइ बात नहीं... जल्द ही मंजर बदलेगा..
बाप रे बाप , एकदम आल्हा छाप दिए ! वाह !!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
घटना तो नही पता ,पर आपने लिखा बड़ा जबरदस्त है..
(लेकिन सावधान...जो पहले ही लड़ रहें हों,उन्हें वीर रस से युक्त आल्हा सुनकर और न गरमा दीजियेगा)
संस्कारधानी कही जाने वाली जबाली पत्तन (प्राचीन नाम) के ब्लॉगर बंधुओं पर एकदम धाँसू रचना.लोग तो मजे लेंगे ही. आभार.
जवाब देंहटाएंहमें तो भनक भी नही लगी, अब थोड़ा गौर से जायजा लेंगे, दपलपुर वासियों के ब्लोग्स का!!
जवाब देंहटाएंवैसे किस बात पर झगड़ा है पता नही।लेकिन आप ने ्बहुत बढिया लिखा है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंये रचना किन लोगो के सन्दर्भ में है इसका मुझे पता नही है पर रचना वीर रस से पूर्ण और हर्दय भेदी है .जिनके लिए आप ने लिखा है वो इस से जरूर सबक लेगे इसी आशा के साथ ..
जवाब देंहटाएंडबलपुर में तो खाते पीते घरों के हट्टे कटते ब्लोगर रहते हैं वहां लडाई की सम्भावना ही नहीं है...फ़िर कौन है जो लड़ रहे हैं और आप को दुखी कर रहे हैं...?????तनिक समझाईये ना.
जवाब देंहटाएंनीरज
जिन्हें शांति की जिम्मेदारी बैठे धरे हाथ पर हाथ ।
जवाब देंहटाएंदोंनों ओर कह दिया चुपके भाई हम हूँ तेरे साथ ॥
ये इशारा किस ओर है विवेक भाई ? हा हा हा !
बहुत ही बेहतरीन आल्हा ! क्या कहना ! ब्ला॓गजगत को तो इस डबलपुरी लड़ाई से कितनी नई नई उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं ये भी तो देखिए। इतना बेहतरीन आल्हा आप लिख सकते थे भला अन्यथा ? और आज आपकी चिठ्ठा चर्चा तो ग़ज़ब की थी और बिल्कुल वाज़िब थी।
माहौल भले ही कितना भी दुखद हो लेकिन आज एक बात साफ़ हो गई कि हमारे प्यारे विवेक सिंह जी बाहर से कितने भी कठोर हों भीतर से मोम ही हैं और उनके दिल में सबके लिए बहुत स्नेह है, वरना ऎसी घटनाएँ उन्हें व्यथित न कर पातीं।
हम आपकी पीड़ा समझते हैं विवेक भाई। इन अशोभनीय घटनाओं पर हमें भी बड़ा रंज है। आपने एक्दम दुरुस्त फ़रमाया ।
चूँकि बीचबचाव का काम आसान नहीं होता और ख़ुद चोट खा जाने का भय रहता है, इसलिए सही वक्त आने पर उचित क़दम उठा लिया जावेगा। हमारा आग्रह है के आप सब इन घरेलू झगड़ों से परेशान न हों। डबलपुर को जल्द-अस-जल्द ही जबलपुर में वापिस बदल लिया जाएगा।
वाह! लड़े चलो बहादुरों लड़े चलो!
जवाब देंहटाएंमुझे तो आल्हा बहुत अच्छा लगा. डबलपुरिया लोगों की आपसी खींचतान को आल्हा में अच्छा उतारा.
जवाब देंहटाएंहमने उनके लेख तो पढे....पर कुछ समझ में नहीं आया....आपके चिटठा चर्चा और आल्हा से कुछ बातें समझ में आयी!
जवाब देंहटाएंका हो भैय्या का करवा दिया हम तो बहुत तारीफ किया करे थे इन जबलपुर वालो की किस की नज़र लग गई . उड़नतश्तरी से तफ्शीश की दरखास्त है . आग बुझनी चाहिए अगर कही लगी है
जवाब देंहटाएंचर्चा करते नमक लगाय, सही कहा.
जवाब देंहटाएंलड़े चलो, लड़े चलो.
जवाब देंहटाएंडबलपुर वालो लड़े चलो.
फूट पड गई बिलागरन में पहले चले व्यंग्य के तीर ।
जवाब देंहटाएंछुप छुपकर जब सधे निशाने बेचारे हो गए अधीर ॥
अब कौन किस को तीर मार रिया है ये तो बतला दो भाई...........
लगता है सावधान रहना पढेगा अब
वाह भाई भतीजे ..आपके इसी आल्हा का तो मैं मुरीद हूं. और डबल्पुर वाली घटना अब चिट्ठा चर्चा पर जायेंगे तब पढेंगे. पर यहां जुगलबंदी के कमेण्ट से कुछ इशारा तो मिल ही गया है.
जवाब देंहटाएंऔर ज्ञानदतजी ने निर्णय दे ही दिया है, और कल ही उन्होने कहा था कि आपस की जुतमपैजारियता क्युं बंद हो गई है? :) धायद डबलपुर वालों ने उनकी राय से ही यह नाटक किया होगा?
वैसे भाई डबलपुर हमारे यहां की संसकारधानी है, वो लोग ऐसा कोई काम नही करेंगे, जिससे किसी का दिल दुखे. आप परेशान ना हो.
सब ठीक होगा.
रामराम.
राम बनैहें सब बनी जहियें बिगड़ी बनत बनत बन जाय
जवाब देंहटाएंविवेक जी
जवाब देंहटाएंकम से कम इस शहर को हम लोगो की आपसी तकरार वो ब्लागिंग के माध्यम से हो रही है पर खेद का विषय है कि आप जबलपुर को डबलपुर लिख रहे है . शायद आप जबलपुर शहर को जानते नही है इस शहर को विनोबा भावे ने संस्कारधानी के नाम से संबोधित किया था तो एक बार नेहरू जी ने जबलपुर की एक सभा में गुस्से में भाषण में "गुंडों का शहर" संबोधित किया था . जबलपुर में एक से एक व्यंगकार कवि साहित्याकार हुए है जिनका नाम सारे भारत में आदर से लिया जाता है . ब्लागिंग जगत में यह तो कुछ नही है इससे भी ज्यादा गली गलौज माँ बहिन की गलियो का प्रयोग हुआ है यह मै अच्छी तरह से जानता हूँ . यदि आप मेरे शहर को हम लोगो के मतभेद को लेकार ग़लत ढंग से संबोधित किया जाए तो यह उचित नही है . आप मेरे भाई है इसीलिए इतना लिख गया हूँ . यदि शहर को ग़लत ढंग से लिया जाता है तो कल दूसरे के शहरों को भी निशाना बनाया जा सकता है जिससे ब्लॉग जगत में गन्दगी फैलेगी .मुझे दुख है कि ग़लत ढंग से शहर को प्रस्तुत किया जाना उचित नही है . यदि शहर को इस तरह से निशाना बनाया जाता है तो भाई मै इस शहर के सम्मान की खातिर ब्लागिंग छोड़ने तैयार हूँ
सप्रेम
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
विवेक जी
जवाब देंहटाएंये बात सोलह आने सच है कि आपसी खींचा-तानी सदैव हानिकारक होती है, लेकिन जब संयम खो दिया जाए तब आप जैसा "विवेक " भी शून्य पड़ जाता है या फ़िर इतनी तीव्र गति से काम करता है कि वह शेष परिणाम कि परवाह किए बगैर अनियंत्रित हो जाता है. यहाँ मामला ज़रा पेचीदा बन पड़ा है (या बनाया गया है), उसे शीघ्र ही सुलझा लिया जायेगा , मैं ऐसी उम्मीद करता हूँ.
- विजय
अरे भाई...ये क्या मामला है ?
जवाब देंहटाएंहमें तो इस पूरे किस्से की कोई ख़बर ही नहीं है।
जुद्ध नै हथो तैं पर भी ले हाथ नगड़िया आल्हा गाएं
जवाब देंहटाएंलाल लंगोटी दिखा दिखा खें रए नरियन खों भड़काएं
आभासी दुनिया के भइया बैठे ऊंट पे बैल चराएँ
एक भाई अब इन पै बिफरो ब्लागिंग तज देहों धमकाय
बड़े लड़ैया ब्लॉगर भैया - इनको भेद प्रभू न पाए
जबलपूर की संतुलित शिला सी मित्र भावना कबहूँ नै जाय
.... मित्रों की सलाह पर मीट रखी गयी थी जिसके बाद विद्रोही स्वर उभरे मैंने उसे नज़र अंदाज़ किया बाई ने वन मेन शो,बिलोरन यानि बिगाड़ करना,कलम से भी विकलांग (वास्तव में मुझे पोलियो है ),कहा . आप सभी विस्तार से प्रकरण का दूसरा पक्ष देखना चाहतें हैं तो मेरे ब्लाग्स पर सामग्री उपलब्ध है. सादर आमंत्रित है
वैसे अब इस विवाद का मेरी और से अंत ही है
गिरीश जी की हरकत देख चुके है .....कल किसी से खजाना ब्लॉग में क्षमा मांगी थी आज सुबह से टिप्पणी में फ़िर से बकबास कर रहे है . सिरफिरा आदमी है कब पलट जाए . कल अनूप शुक्ल को इनने लिखा था की विवाद ख़त्म हो गया है आज सुबह से फ़िर उन्हें लड़ने का जूनून पैदा हो गया है इसे लोगो की ओकात ही नही होती है समझ सकते है क्या है समझ में नही आता
जवाब देंहटाएंयमराज तक आये हैं आल्हा सुनने नकाब पहन के। क्या जलवे हैं गुरू! छा गये!
जवाब देंहटाएंगूगल अर्थ पर ढूँढते ढूँढते सुबह की शाम हो गयी.. ससुरा डबलपुर हमे कही मिला नही... कौन जगह पर है ये डबलपुर भाई?
जवाब देंहटाएंसंगमरमर के पहाड़ों के शहर जबलपुर के ब्लागरों को तो संग-संग जीने और संग-संग मरने की मिसाल पेश करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंअभी तो हिन्दी ब्लोगिंग का शैशव काल भी नही बीता ,और अभी से यह हाल कि आल्हा -गान की नौबत आगई , तो आगे कौउन हवाल ?
खुजा खता मत कीजिए मत दौडो जी तेज़
जवाब देंहटाएंब्लागिंग का समझो मरम, करलो यूज़ विवेक !
शहर नहीं बदनाम चार लोगन के कारन
बंद करलो अय मित्र अपना गाल बजावन
करलो यूज़ विवेक, बनो मत नाटक भैया
परसाई के शहर बहत है नरबदा मैया .
मैं यहाँ देर से आया और जबरदस्त आल्हा पढ़कर चकराया। विवेक जी ने किस्सा ठीक सुनाया ...लेकिन आज इस्तीफा क्यों भिंजवाया। यह गड़बड़झाला समझ न आया। ????
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंलिखे आल्ह और छाप दिए हैं, पढि-पढि कर सब मौज मनाय
जवाब देंहटाएंहमरे शिष्य विवेक के चर्चे, जगह-जगह पर छिटकत जाय
आल्हा पढि मन मुदित होई गवा, शिष्य लिखे आल्हा हर्षाय
गुरु का सीना चौड़ा होइ ग, मन भी ओनकर उडि-उडि जाय
शुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
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