मौसम कैसा यह गरमी का,
घर से निकल न पायें ।
मम्मी के ये नियम कायदे,
बिल्कुल हमें न भायें ॥
मन करता है बाहर खेलें,
परमीशन जो पायें ।
गेट खुला मिल जाये तो हम,
चुपके बाहर जायें ॥
खेलें खूब, दोस्तों के संग
मिलकर मौज मनायें ।
भूख लगे तो घर आकर बस,
आइसक्रीम ही खायें ॥
सूरज दादा से रिक्वेस्ट है,
थोड़ी धूप बचायें ।
खूब इकट्ठी जब हो जाये,
जाड़ों में ले आयें ॥
सामयिक है बधाईयां
जवाब देंहटाएंविवेक भाई, हम सब के अन्दर एक बालक होता है पर हर बार वह दिखाई नहीं देता !
जवाब देंहटाएंआपने अपने वाले से मिलवाया ........ बहुत बहुत आभार !
एक उम्दा पोस्ट के लिए बधाई !
bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएं....और अगर फ़िर भी बच जाए ,
जवाब देंहटाएंतो बारिश मे भी लाएं,
हम जैसे नन्हे मुन्नों को,
इंद्रधनुष दिखलाएं.....
Kitna pyara likha hai!
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंबाजिब बात है! लेकिन सूरज दादा माने तब न!
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