मैं कर्ण बल्द श्री अधिरथ, एतत् द्वारा घोषणा करता हूँ कि मेरी और दुर्योधन की मित्रता आज से समाप्त समझी जाय ।
मेरी तबियत अब कुछ ठीक नहीं रहती लिहाजा मैं महासचिव पद से इस्तीफ़ा देता हूँ और अंग का राज्य भी वापस करता हूँ । मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे और दु:शासन के झगड़े में दुर्योधन द्वारा मेरा पक्ष न लिए जाने को लेकर मुझे भारी आघात पहुँचा जिसके कारण मेरी तबियत बिगड़ गयी ।
मुझे याद है, जब द्यूत-क्रीड़ा भवन में द्रौपदी जी को अपमानित किया जा रहा था तो मेरे भी मुख से कुछ अपशब्द निकल पड़े थे । यद्यपि उस घटना के लिए दुर्योधन और दु:शासन ही मुख्य अभियुक्त हैं तथापि मुझे अपने द्वारा कहे गए शब्दों का हमेशा पश्चाताप होता रहेगा । हो सके तो महारानी द्रौपदी मुझे माफ़ कर दें और कोई छोटा-मोटा पद देकर मुझे अपना सेवक स्वीकार करें । मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ और पूर्ण निष्ठापूर्वक सेवा करते रहने का वचन देता हूँ ।
Kya kahna ispe?Bahut khoob!
जवाब देंहटाएंजय हो आप की! बहुत नजदीकी से मारा है।
जवाब देंहटाएंयह त्यागपत्र तो मुझे कुछ शब्दों के हेरेफ़ेर के साथ पिछले दिनों कई अखबारों में पढ़ने को मिला था।
जवाब देंहटाएंमैं कोई चोरी का आरोप नहीं लगा रहा हूँ, केवल ऐसा मुझे सहसा प्रतीत हुआ सो बता दे राहा हूँ...
वैसे महारानी द्रौपदी का रुख इस घोषणा के बाद क्या रहा यह मालूम नहीं पड़ा। :(
कर्ण ने कलयुग में भी दिखा दिया कि वही सबसे बड़ा सत्यवीर और दानी है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बहुत अच्छे जा रहे हो !सामयिक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छॆ, कर्ण की भावनाएँ वाह भाई वाह..
जवाब देंहटाएंेअरे वाह इतने गूढ शब्दों मे शायद अमर सिंह का दर्द ---? शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमाया महाठगिनि मैं जानी!
जवाब देंहटाएंकर्ण की घोषणा...क्या जमाना आ गया है...यहाँ माल गोदाम से निकला नहीं कि चुराने वाले भी तैयार बैठे रहते है. देख लीजिए :)
जवाब देंहटाएंदुर्योधन की मित्रता में कर्ण के दिल-जिगर-गुर्दे सही सलामत बच पाये या नहीं?
जवाब देंहटाएंWah Vivek sir,
जवाब देंहटाएंbina naam liye sab kah diya saaf saaf...
laat maar peechhe se kahte hain gustakhi maaf.... ha ha ha
Jai Hind...
गजब है भाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लिखा है
जवाब देंहटाएंBAHUT
जवाब देंहटाएंGAHRI
MAR
MAARI
HAI.
बहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएं