गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के

कितने आये, चले गए सब, हाथ झाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ ने दुनिया बुरी बताई, रोते रह गए ।
कुछ ईश्वर की रचना को, 'अतिसुन्दर' कह गए ॥
लेकिन कुछ ने देखा इसको, आँखें फाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ की शादी ना हो पायी, कुआँरे मर लिए ।
कुछ ने कीर्तिमान शादी के, नाम कर लिए ॥
किन्तु कुछ हुए सन्यासी, सब छोड़ छाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ घूमे जंगल-जंगल की, खाक छानते ।
कुछ सागर के तल में जाना, अच्छा मानते ॥
कुछ चढ़ते-चढ़ते पहुँचे, ऊपर पहाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

आती जाती रही यहाँ पर, फैशन नित नई ।
कुछ को भाया बुरका, कुछ को, जीन्स भा गई ॥
लेकिन कुछ ने जीवन काटा, तन उघाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ खेतों में अन्न उगाते थे, किसान थे ।
पाली कुछ ने तालाबों में, मछली शान से ॥
लेकिन कुछ बस रहे लगाते, बाग ताड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ उद्योगों के मालिक, पैसा अकूत था ।
घर में धन के ढेर किन्तु, बेटा कपूत था ॥
ढेर बचे दर्शन को अब, केवल कबाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

ऐसे भी साम्राज्य  कि  जिनमें, सूरज कभी न डूबा ।
कई मुल्क से मिलकर जिसका, बना एक ही सूबा ॥
रखा समय ने उनका भी, नक्शा बिगाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ सस्ते दामों में देश, बेचे जा रहे ।
कुछ सीमाओं पर दुश्मन की, गोली खा रहे ॥
कदम हटाए पीछे, दुश्मन को पछाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ बिल्ली की म्याऊँ सुनकर, बिल में घुस गए ।
कुछ खतरों से डरकर, चापलूस बन गए ॥
लेकिन कुछ ने हिला दिया, जंगल दहाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कुछ ने तख्ता-पलट कर दिया, क्रांति हो गई ।
कुछ को 'मैं हूँ ईश्वर' ऐसी, भ्रान्ति हो गई ॥
कुछ सहमे से खड़े रहे, पीछे किवाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

कितने आये, चले गए सब, हाथ झाड़ के ।
ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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  2. कितने आये, चले गए सब, हाथ झाड़ के ।
    ले ना जा पाए दुनिया से, कुछ उखाड़ के ॥


    बहुत सुंदर


    bahut khub


    shekhar kumawat


    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. आप बड़ी तेजी से मंचोन्मुख हो रहे हैं. बधाई..

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  4. इस उखाड़ने में आपने सबकी उखाड़ दी |
    बहुत ही बढ़िया|
    रत्नेश त्रिपाठी

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  5. उखाडो या ना उखाडो जाना तो सभी को खाली हाथ ही है, अगर कुछ साथ जायेगा तो वो है हमारे कर्मो का लेखा जोखा, बहुत सुंदर लिखा आप ने, हम भी कभी चले जायेगे हाथ झाड के

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  6. Sab jaante hain,samajhte nahi! Kitna moh lekar jeete hain!

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