जमाना बदल रहा है । पर जैसा कि हमेशा होता आया है बदलाव को स्वीकार करने वालों से ज्यादा लोग इसका विरोध कर रहे हैं । समलैंगिकता पर बहस करना आजकल एक फ़ैशन सा हो गया है । फ़िलहाल अधिकतर बहसों में इसके विरोधियों की संख्या ही अधिक मालूम होती है । सब काम छोड़कर लोगों को अचानक समाज की चिन्ता सताने लगी है । ऐसा लगता है कि समाज पर बहुत बड़ा संकट आ गया है । पर जो लोग समझदार हैं वे अल्पमत में होते हुए भी इसके समर्थन में डटे हुए हैं और बहुमत से लोहा ले रहे हैं । असल में यही वे लोग हैं जिन्हें समलैंगिकता को बढ़ावा देने के फ़ायदे समझ आ गए हैं बाकी तो यूँ ही बस ध्यानाकर्षण हेतु हो हल्ला कर रहे है ।
समझ लीजिए अगर समलैंगिकता को बढ़ावा दिया जाए और देश में समलैंगिकों की पर्याप्त संख्या हो जाए तो कई समस्याएं तो स्वयं ही VRS ले लेंगी ।
जिन्हें समाज में लगातार गिरते जारहे स्त्री पुरुष अनुपात की टेंशन लगी रहती है उन्हें अब निश्चिंत हो जाना चाहिए । जब स्त्री पुरुष अनुपात ही सन्दर्भहीन हो जाएगा तो इसके उठने या गिरने से किसी को का क्षति-लाभ ?
कुछ लोगों की शिकायत रहती है कि अगर दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ रही जनसंख्या पर लगाम कसी जा सके तो हमें विकसित देश का तमगा हासिल करने से ब्रह्मा भी नहीं रोक सकते । देश के विकसित होने की गारण्टी तो हम नहीं ले सकते पर इतना तय है कि जनसंख्या वृद्धि दर में अवश्य कमी आ जाएगी और यदि स्थितियां अनुकूल रहीं तो क्या पता जनसंख्या घटने भी लगे । फ़िर देश के विकसित होने की राह में इसके रोड़ा बनने का बहाना न चल सकेगा ।
आजकल परिवार में पति-पत्नी के बीच आए दिन झगड़े होते रहते हैं । कभी कभी तो यह झगड़े न्यायालय तक भी पहुँच जाते हैं और इनकी वजह से ज्यादा जरूरी मामलों को निपटाने के लिए अदालतों के पास समय की कमी हो जाती है । इन झगड़ों के होने का कारण दरअसल शक्तिसन्तुलन का न होना है । लेकिन जब टक्कर बराबरी की होगी तो झगड़े की स्थिति ही न बनेगी । समझ लीजिए जैसे दो परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के बीच तनाव तो होता रहता है पर हमला कोई नहीं करता ।
बेचारी अबलाओं को तो जैसे मोक्ष ही मिल जाएगा । खूब चैन की बाँसुरी बजेगी ।
दहेज प्रथा जैसी बुराइयाँ अपना अस्तित्व खो देंगी । क्योंकि जब दोनों पक्ष बराबर हों तो कौन किसे दहेज देगा ?
जब समलैंगिकों का बहुमत हो जाएगा तो देश में लड़का-लड़की की शादी को अवैध और अप्राकृतिक करार दे दिया जा सकता है या इसे टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है । जिससे देश की सरकार को काफ़ी राजस्व मिलने की संभावना है ।
दरअसल दूसरों की खुशियाँ देखकर विचलित हो जाने का गुण हमारे समाज में कूट कूटकर भरा गया है । इसीलिए तो इतने सारे फ़ायदों के बावजूद समाज का बहुमत समलैंगिकता के खिलाफ़ खड़ा नजर आ रहा है ।
बताइये , यह देश विकसित बने भी तो कैसे ?
vivek bhai..bahut hee santulit hokar likhaa magar
जवाब देंहटाएंmujhe nahin lagtaa ki samlaingiktaa abhi bhaarat mein itnee vyapak hai..aur fir bahas to swaabhaavik hai..aapko padhnaa achha laga..hameshaa kee tarah....
बहुत सही है..:)
जवाब देंहटाएंमजा आया पढ़ कर..
कंपनी को धन्यवाद..
बहुत ही कमाल लिखा है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कंपनी का चिंतन बहुत बढ़िया है. अगले तीन-चार साल में ही हम विक्सित देश हो जायेंगे. साल २०२० का टारगेट अब साल २०१३ कर देना चाहिए.
जवाब देंहटाएंsahi kahte hai aap.....or boht achha l;ikhte hai....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंकमाल है बहुत टेक्स आयेगा सारा सरकारी घाटा फ़ायदे में बदल जायेगा आखिर शादी सबसे बड़ा उद्योग है भारत में।
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि इसके विरोध मे विदेशी ताक़तो का हाथ है जो नही चाहती भारत विकसित हो।
जवाब देंहटाएंशानदार । दृष्टिकोण जमा । प्रविष्टि का आभार ।
जवाब देंहटाएं:) :)
जवाब देंहटाएंजो समाज जितना ज्यादा रूढिवादी होता है, वहाँ पर उन विचारों को हमेशा चुनौती मिलती है, जिसके द्वारा उसके परम्परागत ढांचे को चुनौती मिलती हो।
जवाब देंहटाएंवैसे लिखा अच्छा है आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपने बिल्कुल ठीक लिखा है. अगर डाल्फिन्स को छोड़ दें तो मनुष्य के अलावा कोई भी जन्तु मात्र लैंगिक आनन्द के लिये सहवास नहीं करता. समलैंगिकता की तो बात बहुत दूर है.
जवाब देंहटाएंनये विचारो के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहते हो जी (कौन पंगा ले!)।
जवाब देंहटाएंरामराम!
sahi hai.. :)
जवाब देंहटाएं'जब समलैंगिकों का बहुमत हो जाएगा तो देश में लड़का-लड़की की शादी को अवैध और अप्राकृतिक करार दे दिया जा सकता है या इसे टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है ।'
जवाब देंहटाएं- अच्छा व्यंग्य किया है.
समलैंगिकता सिर्फ़ लडके को ही लिया जा रहा है, क्या ओरते नही इस मै शामिल?
जवाब देंहटाएंबाकी आप ने तर्क अच्छे दिये है.
धन्यवाद
बहुत बढ़िया और शानदार लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंआपने एकदम अलग एंगल से दिया है। उम्मीद है सबको मजा मिला होगा :)
जवाब देंहटाएंसचमुच अब इस देश को विकसित होने में कोई माई का लाल नहीं रोक सकता!!!....जय इन्डिया!!!!!!
जवाब देंहटाएंजै सारी - गे हो!
जवाब देंहटाएंलगता है इस कानुन के बनने के बाद देश के विकास की गति शायद बढ जाये्गी ! इसीलिए तो हमारी समझदार सरकार यह कानून बनाने जा रही है
जवाब देंहटाएंमुगेरी लाल के भयानक सपने हा हा
जवाब देंहटाएंEk bahut vicharneey post hai
जवाब देंहटाएंaaj aisa kyu ho raha hai ki sab badal gaya hai jalan apno se hi hone lagi hai
aapke vicharon ki gharayi aur kalam ki taqat is lekh se bayan ho rahi hai
समलैंगिकता!- ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?.....न बीवी, न बच्चे, न जूते पडे़ सिर पर---तो परिवार क्या है!!!!!
जवाब देंहटाएंवाकई ...इसे कहते हैँ
जवाब देंहटाएं"reverse psychology "
;-)
स्नेह ,
- लावण्या
mujhe lagta hai ese mudda banana hi nahi chahiye..desh me kai mudde aise hai jipar bahas ho to sarthak hoga
जवाब देंहटाएंशादी का लायसेंस देने हेत ऑफिस में बाबू की जरुरत पड़ेगी मेरी पोस्टिंग कर दें . बिना टेस्ट किये कि शादी के योग्य है कि नहीं लायसेंस नहीं दूंगा वेतन नहीं चाहिए जो मिलेगा आधा-साझा .यानि आधा सरकार का आधा मेरा | | पक्की चलिए इसी बात पर मैं भी आपसे सहमत हो जाता हूँ |
जवाब देंहटाएंजरुरी सूचनाये यहाँ उपलब्ध हैं ::---- " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "
आपने इस विषय पर बहुत विस्तृत द्रष्टिकोण रख कर यह आलेख को प्रस्तुत किया मैं आपकी हर बात से सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंबधाई ऐसे चिंतन के लिए
हमने तो तय कर लिया है कि हम ऐसी किसी भी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं देंगे जिसमें सम, समाजवाद या समलैंगिकता शब्द का इस्तेमाल किया गया हो.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकमाल का लिखा है ......... मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंविवेक भईया अच्छा लिखा है पढकर मजा आया लिखते रहो
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