रविवार, जुलाई 12, 2009

मेरी 116वीं पोस्ट

बगल में जो मक्का की फ़सल दिखाई दे रही है वह हमारी गाढ़ी मेहनत का नतीजा है । घर के सामने पड़ी खाली जमीन को घास छीलकर खेती योग्य बनाया गया और फ़ावड़े से गुड़ाई करने के बाद इसमें कई तरह की पौध लगायी गयी जिनमें फ़ूलगोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, और शिमला मिर्च का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा । भिण्डी, पालक, लौकी, तोरई, अरबी आदि के बीज बोये गये । और मक्का का आइडिया सबसे बाद में आया । अब इसमें छर्रा निकल आया है और भुट्टे की दाढ़ी भी लटकने लगी है । पालक ने अब तक कई बार साग खिलाया है । बैंगन ने भी इतना निराश तो नहीं किया कि उस बेचारे की बदनामी आपके सामने ही करूँ पर टमाटर धोखेबाजी में सबसे आगे रहे और बिना बताये ही खिसक लिए जैसे हम क्लास के पिछले दरवाजे से चुपचाप खिसक जाया करते थे । गोभी से हमें आशा न थी फ़िर भी काफ़ी दिन तक उसने हमारा साथ दिया तो आस बँधने लगी थी लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि उससे हमने उम्मीदें लगा लीं हैं बेचारी उम्मीदों का बोझ नहीं झेल पाई और कोई न कोई बहाना करके सभी पौधे निकल लिए । मिर्च पर हमें कभी संदेह न था । पर अब रोजाना एक पौधा हमारे देखते देखते मुरझा जाता है फ़िर सूख जाता है और हम मजबूर हैं कुछ नहीं कर पा रहे । लौकी को पड़ौसियों की नज़र खा गई । खूब लम्बी बेल है । फ़ूल भी खूब आते हैं । चोइया लगता है और दो दिन बाद सूख जाता है । अरबी को कई बार चेक कर लिया है पर धरती के ऊपर जैसा हालचाल दिखाई देता है वैसा नीचे नहीं है फ़िर भी कहते हैं कि आशा पर दुनिया टिकी है तो हमने भी उसे कह दिया है कि बिना टेंशन लिए जितना हो सके उतना ही करे । जान जोखिम में न डाले ।



मक्का पर तो हमें गर्व होता है । इसने हमारा मन मोह लिया है । इसकी दाढ़ी के तो कहने ही क्या । बचपन में ही जैसे इसे बुढ़ापा आ गया हो । जब अपनी मेहनत का पहला भुट्टा खाने को मिलेगा उस दिन का हम सभी को बेसब्री से इन्तजार है । अभी से योजनाएं बनने लगी हैं कि किस किस पड़ौसी के घर कितने भुट्टे दिये जा सकते हैं । यह मक्का मेरा राजा बेटा है । जिसके बिना मेरा खेती करने का सारा उत्साह जाता रहता । पर अब मुझे एक नया जोश मिल गया है । क्योंकि सफ़लता जोश भर ही देती है । चाहे वह कितनी ही असफ़लताओं के बाद क्यों न मिली हो । असफ़ल व्यक्ति में कमियाँ ढूँढ़ना बड़ा आसान होता है । और उससे भी कहीं अधिक आसान किसी सफ़ल व्यक्ति के गुण ढूँढ़ना होता है ।


नोट : हमारे गुरु श्री शिवकुमार मिश्र जी स्वप्नलोक पर अब तक 44 टिप्पणियाँ करने में सफ़ल रहे हैं । कम्पनी उन्हें विनम्रतापूर्वक बधाई देती है ! यह भी एक सुखद संयोग ही है कि उनका चवालीसा हमारी 116 वीं पोस्ट की पूर्व संध्या पर पूरा हुआ !

22 टिप्‍पणियां:

  1. Hahahaha sabzi ke saath aapka aasha nirasha ka khel aur usko likhne ka andaaz kya kahun
    hanste hanste pet dukh aaye

    aur upar se daadhi makke ki
    baantne ka already soch rahe hain
    sahi hai ji aap bhi kamaal hai

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  2. सचमुच सफ़लता जोश भर ही देती है

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  3. विवेक जी ये चोइया क्या होता है मैने तो पहली बार सुना है और जब भुट्टे तैयार हो जायें तो हमे जरूर बतायें घर के भुट्टे खाये 2 साल हो गये आपको 116वीं पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई और आपकी सब्जिओं को आशीर्वाद्ो आपकी तरह फलें फूलें बधाई

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  4. अरे ये क्या इतनी बडी टिप्पणी की वो पोस्ट ही नहीं हुई आपके टमाटरों की तरह धोखा दे गयी हाँ तो मैने पूछा था कि ये चोइया कया बला है मैने तो पहली बार नाम सुना है और जब भुट्टे तैयार हो जायें हमे जरूर बतायें हम खुद आ कर खा जायेंगे इसी बहाने आपका बगीचा भी देख लेंगे 116 वीं पोस्ट के लिये बधाई और आशीर्वद्

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  5. @ Nirmla Kapila जी,

    चोइया किसी फ़ल की शुरूआती अवस्था को कहते हैं . यह हमारे गाँव का शब्द है विस्तार से अजित वडनेरकर जी ही बता सकते हैं ! धन्यवाद !

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  6. विवेक जी

    सर्वप्रथम 116वी पोस्ट के लिये बधाई.

    चलो 116वी पोस्ट मे ही सही पता चला कि आप टमाटर जैसे क्लास से मेरे जैसे क्लास से खिसक जाते थे.

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  7. बहुत सुंदर लगा कि आप को भी बागवानी का शॊक है, मुझे भी बहुत शॊक है, टमाटरो के पोधे पर पानी कभी भी उपर से मत डाले, बरसात के समय इसे किसी झोपडी नमुना पलश्टिक से ढक कर रखे, फ़िर देखे.. मजा आ गया.
    धन्यवादोर आप को बधाई भी.

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  8. प्यारे विवेक भाई,
    आप बुरा मत मानना यार पर एक बात कहूँ ? आप सिर्फ़ कवि ही नहीं, एक पुख़्ता साहित्यकार हो। मेरे भाई, आप हर बात को जिस दक्षता से प्रस्तुत करते हैं वैसा हर कोई नहीं कर सकता। आपकी बाग़बानी को हमारी ढे़र सारी दुआएँ। हमें बचपन में पढे़ हुए कोर्स की एक कहानी याद आ गई-“जीप पर सवार इल्लियाँ”।

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  9. विवेक भाई,
    आपकी खेती-बाडी के बारे में जानकार अच्छा लगा. भारत में बागवानी तो हमने भी काफी की है मगर मक्का की खेती कभी नहीं की. यहाँ भी घास और फूलों के अलावा सिर्फ भूत जलोकिया, खीरा, टमाटर, बैंगन, ब्रोकली, स्ट्राबेरी ही उगाए हैं

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  10. अब ११७ वीं लिखोगे, उसकी बधाई अभी से ले लो!!

    यार, मक्का देख तो ललच गये हम.

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  11. bahut badhiya kheti ho rahi hai .lage raho fal jarur milega .

    tippni box me paste karne me dikkat aa rahi hai .

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  12. किसानी में सफलता के लिए और 116वें पोस्ट के लिए डबल बधाई! काश हमारे पास भी जमीन होती किसानी आजमाने के लिए! हम तो बालकनी में गमले में तुलसी उगाकर ही संतोष कर रहे हैं, और अब आपका पास्ट पढ़कर भी।

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. "क्योंकि सफ़लता जोश भर ही देती है । चाहे वह कितनी ही असफ़लताओं के बाद क्यों न मिली हो । असफ़ल व्यक्ति में कमियाँ ढूँढ़ना बड़ा आसान होता है । और उससे भी कहीं अधिक आसान किसी सफ़ल व्यक्ति के गुण ढूँढ़ना होता है.." बहुत खुब..

    वैसे हम भी आ जाये भुट्टा खाने? बहुत मेहनत की विवेक भाई...

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  15. 116वी पोस्ट के लिये बधाई.और आपकी सब्जियों और मक्का से मिल कर भी बहुत अच्छा लगा . और सफलता का राज आपने पा ही लिया...सच ही कहा है "क्योंकि सफ़लता जोश भर ही देती है । चाहे वह कितनी ही असफ़लताओं के बाद क्यों न मिली हो । असफ़ल व्यक्ति में कमियाँ ढूँढ़ना बड़ा आसान होता है । और उससे भी कहीं अधिक आसान किसी सफ़ल व्यक्ति के गुण ढूँढ़ना होता है ।
    "

    regards

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  16. बहुत बधाई!
    @ बवाल - बुरा न मानना... एक बात कहूं... साहित्यकार लगते हो! :-)

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  17. विवेक भैया, घास छीलना कोई ब्लगरी नहीं है कि देखते ही देखते फल देने लगे। ये तो इसक नहीं आसां, इतना ही समझ लीजे...:)

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  18. बहुत महान काम किया है आपने...सामने की घास को खोद खाद कर उसमें सब्जियां उगाने का ख्याल लाजवाब है...आपने जिस अंदाज़ में इस दास्ताँ को बयां किया है वो भी कमाल का है...भुट्टे की हमें भी एक बाईट दीजिये न ...
    नीरज

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  19. pahle lagaa ki 116 vin post, aisa kya khas hai? sabhi 100, 150, 200 aadi post ki soochana dete hain.
    jab ise padha to lagaa ki kuchh to hai.
    badhaaaaaaiiii

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  20. भाई सबसे पहले तो चवालीसा की बधाई लिजिये और देख भाई इमानदारी से भुट्टे भेजने कीलिस्ट मे हमारा नाम उपर ही उपर लिख लेना.:)

    रामराम.

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  21. दो चार किलो इधर भी पार्सल करवाना...

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  22. "क्योंकि सफ़लता जोश भर ही देती है । चाहे वह कितनी ही असफ़लताओं के बाद क्यों न मिली हो । असफ़ल व्यक्ति में कमियाँ ढूँढ़ना बड़ा आसान होता है । और उससे भी कहीं अधिक आसान किसी सफ़ल व्यक्ति के गुण ढूँढ़ना होता है.."

    बहुत बढ़िया. खेती-बाड़ी के बहाने क्या बात कह दी है. हमेशा याद रहने वाली बात.

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