शाखा में छिप सर्दी काटी,
लम्बा समय बिताया ।
कोंपल ने जब बाहर देखा,
उसका मन हरषाया ॥
जाड़ा मिला नदारद उसको,
बसन्त का मौसम था ।
दिन में कुछ गरमाया सा था,
रातों को कुछ नम था ॥
अवसर यह अनुकूल जान,
उसने बाहर आने का ।
किया पैक सामान सभी,
इस दुनिया में लाने का ॥
परमीशन पेढ़ से माँगकर,
कोंपल बाहर आयी ।
आसपास की शाखाओं ने,
भेजी उसे बधाई ॥
उसका सपना था, बढ़कर वह,
डाली एक बनेगी ।
किसी धूप से त्रस्त पथिक के,
ऊपर कभी तनेगी ॥
करके पर-उपकार, लक्ष्य
जीवन का मिल जाएगा ।
होगा जीना व्यर्थ, किसी के
काम न यदि आयेगा ॥
किन्तु हाय वह क्या जाने,
उसका जीवन अब कम था ।
समझा जिसे बसन्त, असल में
गरमी का मौसम था ।
अत्याचारी लू ने,
बेचारी को आ धमकाया ।
प्राण पखेरू उड़े, रह गयी,
केवल नश्वर काया ॥
देख देखकर मृत शरीर,
कोंपल का सूखा-सूखा ।
आज रो दिया कौआ भी,
जो था कुछ रूखा-रूखा ॥
हमने अपनी आँखों से,
देखी यह करुण कहानी ।
अपनी भी आँखों में आया
मामूली सा पानी ॥
किसी धूप से त्रस्त पथिक के,
ऊपर कभी तनेगी ॥
करके पर-उपकार, लक्ष्य
जीवन का मिल जाएगा ।
होगा जीना व्यर्थ, किसी के
काम न यदि आयेगा ॥
किन्तु हाय वह क्या जाने,
उसका जीवन अब कम था ।
समझा जिसे बसन्त, असल में
गरमी का मौसम था ।
अत्याचारी लू ने,
बेचारी को आ धमकाया ।
प्राण पखेरू उड़े, रह गयी,
केवल नश्वर काया ॥
देख देखकर मृत शरीर,
कोंपल का सूखा-सूखा ।
आज रो दिया कौआ भी,
जो था कुछ रूखा-रूखा ॥
हमने अपनी आँखों से,
देखी यह करुण कहानी ।
अपनी भी आँखों में आया
मामूली सा पानी ॥
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबड़ी मार्मिक कहानी है।
जवाब देंहटाएंwaah sir ek kopal ki karun kahani waah...
जवाब देंहटाएंbahut khoob
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
badi anuthi rachna hai :-)
जवाब देंहटाएंkonpal ne bahar aane ka saman bhi pack kiya
aur bichara garmi mein mara gaya
kya karen insaan mar raha hai waha ped kaise bache ........
सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंbahut baddhiya....
जवाब देंहटाएंहमने अपनी आँखों से,
जवाब देंहटाएंदेखी यह करुण कहानी ।
अपनी भी आँखों में आया
मामूली सा पानी ॥
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
इतनी सह्रदयता कि कोंपल का मन झांक कर देख आये विवेक !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये !
अनमोल रचना। प्रकृति और मनुष्य के बीच ऐसे संवाद कम ही देखने में आ रहे हैं।
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