संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
गांधीजी तो यकीनन यही करते, पर जो लोग यह कह रहे हैं "बापू हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं" वे लोग शायद असली कातिल हैं, गाँधी वृद्ध थे, सन अड़तालीस में नहीं तो सन पैंसठ-सत्तर में स्वर्ग सिधारते. पर गोडसे ने उनकी देह को ही मारा, मौत के बदले मौत कहने वाले उन्ही के संगठन के लोगों ने तो गाँधी की आत्मा और विचार को ही नरक पहुँचा दिया. पंचायत राज के प्रबल समर्थक गाँधी के सहयोगी नेहरू ने अधकचरा विदेशी जुगाड़ लाकर देश के भविष्य का कबाडा कर दिया.
सत्य वचन तुमने लिखे, बात कहूँ पर एक लिखने में लेते नहीं भैय्या काम विवेक भैय्या काम विवेक, अगर ऐसा हो जाता गाँधी बाबा हर प्राणी से गाली खाता कातिल ऐसे घूमते जैसे छुट्टा सांड खुशी मनाते नाचते करके हत्या कांड नीरज
shaandaar ,
जवाब देंहटाएंbahut sahi kahaa gaandhi ke baare me...
main to kisi tathaakathit gazal par aapki tippani padh kar chalaa aaya...
aur aaker achhaa lagaa
विवेक जी, अच्छी रचना है बधाई....
जवाब देंहटाएंbilkul koi do raay nahi isme.
जवाब देंहटाएंक्यों? गाँधी क्या देश के कानून से ऊपर थे जो मनमाना फ़ैसला सुनाते। वे तो एक वकील भी थे।
जवाब देंहटाएंvivek bhai , bahut hee gahree baat bilkul sahajtaa se kah gaye aap.
जवाब देंहटाएंमगर ये हो न सका ! और अब ये आलम है कि...
जवाब देंहटाएंविवेक जी बहुत अच्छी रचना है...बधाई....
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो गाँधी जी जज न बनकर वकील बने . बहुत शानदार रचना देश के महामना को याद करने के लिए.
जवाब देंहटाएंभतीजे आज गांधीजी को ३० जनवरी को इस रुप मे याद करके घणा शिक्षादायी काम करया सै तन्नै.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शानदार रचना !
जवाब देंहटाएंतो आप भी समीरलालजी के नक्शेकदम पर चले :) कुण्डली और मुण्डली और मण्डली में अधिक अंतर तो नहीं !!
जवाब देंहटाएंयों कहें - यदि नाथूराम गांधीजी को जान लेता तो ऐसा कृत्य ही न करता.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंये है बापू को सच्ची श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंgandhi ji ne to aisa kaha tha shayd
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा विवेक जी आपने.. ऐसा ही करते बापू..
जवाब देंहटाएंआज शहीदी दिवस पर, गांधी आये याद।
जवाब देंहटाएंकवि विवेक कविता करें, होता वाद-विवाद॥
होता वाद-विवाद, सही या गलत हुआ क्या?
हत्या थी या मुक्ति देश की, होती व्याख्या॥
देख रहे सिद्धार्थ, कलंकित करता उन्हें समाज।
गान्धी जी का कत्ल, कर रहे बहुतेरे हैं आज॥
बहुत ख़ूब विवेक कविराय। महात्मा जी का एकदम सही पक्ष रखा आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है....
जवाब देंहटाएंक्या बात है, क्या बात है!
जवाब देंहटाएंआप ने अभी लिखी प्यारी कविता, बापू की श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंइसी बहाने सिद्धार्थ जी की भी प्यारी कविता पढने को मिल गयी ।
अगर गाँधी जी जीवित होते तो प्रेम और अहिंसा से काम लेते और नाथूराम ख़ुद आत्मग्लानी से आत्महत्या कर लेता . लेकिन ऐसा हो न सका अफ़सोस इस बात का है .
जवाब देंहटाएंगांधीजी तो यकीनन यही करते, पर जो लोग यह कह रहे हैं "बापू हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं"
जवाब देंहटाएंवे लोग शायद असली कातिल हैं, गाँधी वृद्ध थे, सन अड़तालीस में नहीं तो सन पैंसठ-सत्तर में स्वर्ग सिधारते. पर गोडसे ने उनकी देह को ही मारा, मौत के बदले मौत कहने वाले उन्ही के संगठन के लोगों ने तो गाँधी की आत्मा और विचार को ही नरक पहुँचा दिया. पंचायत राज के प्रबल समर्थक गाँधी के सहयोगी नेहरू ने अधकचरा विदेशी जुगाड़ लाकर देश के भविष्य का कबाडा कर दिया.
सत्य वचन तुमने लिखे, बात कहूँ पर एक
जवाब देंहटाएंलिखने में लेते नहीं भैय्या काम विवेक
भैय्या काम विवेक, अगर ऐसा हो जाता
गाँधी बाबा हर प्राणी से गाली खाता
कातिल ऐसे घूमते जैसे छुट्टा सांड
खुशी मनाते नाचते करके हत्या कांड
नीरज
bahut sahi kaha.. gandhi jarur hi aisa hi karte..
जवाब देंहटाएंजय हो.
जवाब देंहटाएंगाँधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि है यह कविता.