संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
इब समझ म्ह आया कि आज उबने को दिल क्यों कर रहा है ? शायद आप का उपदेश ही यह सब करवा रहा है ! अब आज के बाद तो शुक्रवार छोडकर छुट्टियां ही हैं सो हम तो आपको धन्यवाद देते है कि आपने याद दिला दिया ! सो अब हम तो चले उबने .. मेरा मतलब छुट्टियाने !
लिखी पोस्ट और काम कह रहे अपना ऊंचा नाम कर रहे ऊब-सूब पर कविता लिखकर सबका काम-तमाम कर रहे स्वप्नलोक में जो बैठे हैं उन्हें ऊब से काहे डरना लिखें ब्लॉग पर उम्दा कविता लोगों को हलकान कर रहे
दरअसल आपकी यह कविता अच्छी है किंतु अगर परिप्रेक्ष्य ना समझें तो अर्थ का अनर्थ समझ आयेगा . मैंने 'आज की पीढी 'से जो आपने लिंक दिया हैउसे पढने के बाद जब आपकी कविता पढी तो भावार्थ बदल गया . और अच्छी लगी .गूढ़ विषय को रोचक बना दिया आपने .
विवेक जी, आज तो गजबे ना हो गिया। एक ठो टेलीपेथिया कुछ होता है, सुने थे। आज ऊस पे विश्वासे हो गिया आपका पोसटवा पढके। तब्हें आज ससुर सुबहे से ही जो जम्हाई सुरु हुई है जो सुरु हुई है तो पुछिये मत, मुंहवां बंदे नहीं हो रहा था। यदी ऊब ऐइसा होता है तब तो बहूत ही मजेदार होता है।
दिन भर कोई ब्लोग न पढ़ना!
जवाब देंहटाएंअगर पढ़ो तो टिप्पणी मत करना!
अरे वाह, क्या बात है!
जवाब देंहटाएंएक सोई रही पीढी आवाहन करती हैं
जवाब देंहटाएंजागो उठ कर सोने वालो नयी पीढी मे उबने वालो
सोने और उबने का अधिकार सिर्फ़ हमारा हैं
अरे आज की पीढी जागो ।
जवाब देंहटाएंआप ऊबने से मत भागो
आज का नारा जागो जागो ...बहुत खूब
Regards
apake har ek labj ek naya paigam de jaye hai
जवाब देंहटाएंवाह, चलो कुछ नया करते हैं। आज कुछ ऊबा जाये! :-)
जवाब देंहटाएंवाह वाह ..बहुत खूब रही.....चलिए हम भी कुछ नया करे...
जवाब देंहटाएंसब एक साथ कैसे ऊबने लगे
जवाब देंहटाएंइब समझ म्ह आया कि आज उबने को दिल क्यों कर रहा है ? शायद आप का उपदेश ही यह सब करवा रहा है ! अब आज के बाद तो शुक्रवार छोडकर छुट्टियां ही हैं सो हम तो आपको धन्यवाद देते है कि आपने याद दिला दिया ! सो अब हम तो चले उबने .. मेरा मतलब छुट्टियाने !
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाई आज कुछ मिल भगत के पोस्ट लिखी है सबने .....ज्ञान जी पर बड़ी लम्बी टिप्पणी चेपी है .इसलिए यहाँ सिर्फ़ ......जम्हाई छोड़ कर जा रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंऊब हो रही है टिप्पणी करने मे . फिर लिखूंगा तब तक आराम बड़ी चीज़ है मुँह ढक के सोयिये
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलिखी पोस्ट और काम कह रहे
जवाब देंहटाएंअपना ऊंचा नाम कर रहे
ऊब-सूब पर कविता लिखकर
सबका काम-तमाम कर रहे
स्वप्नलोक में जो बैठे हैं
उन्हें ऊब से काहे डरना
लिखें ब्लॉग पर उम्दा कविता
लोगों को हलकान कर रहे
विवेक जी से प्रेरित.
:---) :---)
अब ये ऊब संक्रामक बन फैलेगी -तय है !
जवाब देंहटाएंदरअसल आपकी यह कविता अच्छी है किंतु अगर परिप्रेक्ष्य ना समझें तो अर्थ का अनर्थ समझ आयेगा .
जवाब देंहटाएंमैंने 'आज की पीढी 'से जो आपने लिंक दिया हैउसे पढने के बाद जब आपकी कविता पढी तो भावार्थ बदल गया .
और अच्छी लगी .गूढ़ विषय को रोचक बना दिया आपने .
प्रेरक कविता है, ऐसी रचनाएं कम ही पढने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंजागने और जगाने वाला ही फल पाएगा
जवाब देंहटाएंऊब से जो उबरेगा वही उबटन-जल पाएगा।
ऊब हो रही है इसलिए टिप्पणी .....धीरे....धीरे.......क्योंकि सृजन इसी में है
जवाब देंहटाएंविवेक जी,
जवाब देंहटाएंआज तो गजबे ना हो गिया।
एक ठो टेलीपेथिया कुछ होता है, सुने थे। आज ऊस पे विश्वासे हो गिया आपका पोसटवा पढके।
तब्हें आज ससुर सुबहे से ही जो जम्हाई सुरु हुई है जो सुरु हुई है तो पुछिये मत, मुंहवां बंदे नहीं हो रहा था। यदी ऊब ऐइसा होता है तब तो बहूत ही मजेदार होता है।
जवाब देंहटाएंक्या ऊब महामारी फ़ैली है.. ब्लागजगत में ?
इसे कहते हैं
जवाब देंहटाएं" बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी "
कविता अच्छी लगी जी
- लावण्या
ye kya ho gaya bhai sab ek sath kaise ubne lage!hamara thoda sarvar daun hai!
जवाब देंहटाएंसुनो भाई साधो
जवाब देंहटाएंउंगो नही जागो दुश्मन जाग रहा है . हा हा
ye to badi kamaal ki baat keh di aapne boriyaate boriyaate...Ranjan ji ki pratikriyaa ne bhi hasaa diyaa :)
जवाब देंहटाएंvyang mein meri pehli koshish ko yahaan padhe:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_26.html