संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
रविवार, जनवरी 18, 2009
लो आज हो गई हडकाई !
हम भी दर्द लिखेंगे अब ,
लो अपना दिल भी टूट गया ।
हम झगडा किससे करते थे ,
पर यार कौन सा रूठ गया ॥
लो आज हो गई हडकाई ,
अब खुश हो लें जलने वाले ,
ढल गए वक्त के साथ सभी ,
पर हम न हुए ढलने वाले ॥
क्या जबरदस्त हडकाई थी ,
सब रोम रोम हिल गया आज ।
शायद अब याद रहे आगे ,
क्या खूब सबक मिल गया आज ॥
इस कम्प्यूटर की भाषा में ,
भावना नहीं लिख पाते हम ।
लिखना तो खुशी चाहते हैं ,
पर लिख जाता है गम ही गम ॥
सबने विवेक से काम लिया ,
पर हम किससे लें काम कहो ।
दिल ने तो कहा रखो संयम ,
बेकार भावना में न बहो ॥
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अरे भाई, किसने हड़का लिया हमारे आशुकवि को। बताइए! उससे हाथ जोड़ा जाय... :)
जवाब देंहटाएंसबने विवेक से काम लिया ,
जवाब देंहटाएंपर किससे लें काम कहो ।
bahut pyari panktiyaan, vivek ji
chhutti ke din khush rahiye.. dard ko baaki dino ke liye rakh dijiye..
इस कम्प्यूटर की भाषा में ,
जवाब देंहटाएंभावना नहीं लिख पाते हम ।
लिखना तो खुशी चाहते हैं ,
पर लिख जाता है गम ही गम ॥
कम्प्युटर ससुरी है ही बुरी चीज.. :)
तो मानते काहे नही हो ?फ़िर कविता ठेल दी
जवाब देंहटाएंविवेक भाई,
जवाब देंहटाएंबता दो किसने हड़का दिया आपको. अभी लेता हूँ उसकी खैर. मेरे रहते हुए चिंता करने की जरुरत नहीं
बहुत बढ़िया . . कविता लिखी है पर दिल तोड़ने वाली कविता है . कभी दिल जोड़ने वाली कविता भी जरुर लिखे..
जवाब देंहटाएंदिल ने सही कहा है......संयम रखो .....बेकार भावना में मत बहो।
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंमैं तो सीधे-सीधे संगीता जी से सहमत हूं.....
जवाब देंहटाएंवैसे बढ़िया है....
धीरज धरो। कहा गया है- दुख की पिछली रजनी बीच,बिलसता सुख का नवल प्रभात। कल हड़काये गये आज देखो प्यार दरवाजे पर इंतजार कर रहा होगा।
जवाब देंहटाएंये क्या विवेक जी,
जवाब देंहटाएंआप तो ऐसे ना थे।
विवेक के साथ कौन अविवेकी बर्ताव कर गया भाई !
जवाब देंहटाएं"सबने विवेक से काम लिया ,
जवाब देंहटाएंपर हम किससे लें काम कहो ।"
आप हमसे लो, हम हैं न.
दिल ने तो कहा रखो संयम ,
जवाब देंहटाएंबेकार भावना में न बहो ॥
भैय्ये दिल की मानते चलो . जब दुनिया तुमसे जलने लगे तो समझो तरक्की पर हो
एक अच्छी कविता के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंविवेक जी को सलाम....इस हट कर कही गयी "हड़काई" पे
जवाब देंहटाएंक्षणिकायें,हाइकु,गज़ल,गीत की ही विधा की परछाई
हाय रे हाय रे हाय रे ये तेरी हड़काई
हड़काने वाला कोई अपना ही होगा...सबसे ज्यादा तकलीफ अपनों को ही होती है...है ना?
जवाब देंहटाएंनीरज
क्यों? कब? किसने?
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र
किसने हड़काया? बताओ?
जवाब देंहटाएं(ऐसा तो नहीं सोच रहे कि हम उसे हड़कायेंगे)
हमें उन्हें बधाई और साधुवाद कहना है. :)
अरे विवेक, किसे हड़का दिया भाई? ई तो बताये ही नहीं. मेरे शिष्य को भी हड़काने वाले हैं??? कौन है भाई? विवेक जैसे शांत और शिष्ट नवजवान को हड़काने की ज़रूरत क्यों पड़ गई भला?
जवाब देंहटाएंजिसने भी हड़काया है, उनसे अनुरोध है कि अपनी हड़काहट वापस ले लें.
कविता अच्छी लगी, पर संदर्भ नहीं पता। अभी मालूम करता हूँ।
जवाब देंहटाएंसबने विवेक से काम लिया ,
जवाब देंहटाएंपर हम किससे लें काम कहो ।
दिल ने तो कहा रखो संयम ,
बेकार भावना में न बहो ॥
प्यारे विवेक भाई, बहुत ख़ूब लिख डाला यार क्या कहना ।
हड़काया जिसने तुमको है, उसको हम भी हड़का देंगे
क्यूँ दर्द दे गया हँसमुख को, इस बात पे भी झिड़का देंगे
पर बात यहाँ पे ये देखो, दूजे रस में भी तुम आए
नये रस में तुम्हारी कविता हुई, नये रंग में भी सबको भाए
"हम भी दर्द लिखेंगे अब ,
जवाब देंहटाएंलो अपना दिल भी टूट गया ।
हम झगडा किससे करते थे ,
पर यार कौन सा रूठ गया ॥
" ओह ये क्या कैसे कब कहाँ क्यूँ हो गया
दुःख का दरिया हमारे ब्लॉग की जगह
आज स्वप्नलोक मे कैसे बह गया????? "
Regards
बहुत दर्द है जी :) किसने कब यह हादसा हो गया आपके साथ विवेक जी ..पूरी दास्तान कहें
जवाब देंहटाएंजब दिल ने कह ही दिया है तो काहे भावनाओ में बहके हलकान हुए जा रहे है
जवाब देंहटाएंहड़काई?
जवाब देंहटाएंमतलब?
किस ने हड़का दिया आप को?
जवाब देंहटाएंवो भी आप को?
आप से पूरी सहानुभूति है...अगली कविता में वृतांत लिख डालिए.
गद्यात्मक कविता लिख डालिए..छंद मुक्त..
आप भी विवेक से ही काम लीजिये .
जवाब देंहटाएंआख़िर बड़े बड़े होते हैं
(हड़काई का मतलब बताने के लिए धन्यवाद )
bahut shai vivek bhai...
जवाब देंहटाएंहम भी दर्द लिखेंगे अब ,
जवाब देंहटाएंलो अपना दिल भी टूट गया ।
हम झगडा किससे करते थे ,
पर यार कौन सा रूठ गया ॥
वाह, वाह।... आप भी खूब कटाक्ष करतें है।... मजा आ गया।
सही बात है. आजकल दिल भी कांच का सामान हो गया. ज़रा सी चोट लगी और टूट गया.
जवाब देंहटाएंघना अनर्थ हो गया दिखे जी. कुछ उपाय बताया जाए?
जवाब देंहटाएंऒऎ पुत्तर, कुझ लोड़ नईं, जी ।
प्यार विच्च तकरार ते हुँदी ऎ,
काल तों सब चँगा होवेंगा !
बहुत बढ़िया सौम्य कविता ! यह अंदाज़ पसंद आया !
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