आजकल देखने में आ रहा है कि ब्लॉगरगण कुछ परेशान लग रहे हैं । कुछ इसलिए परेशान हैं कि प्रिंट मीडिया उनकी रचनाओं को छापने लायक नहीं समझता तो कुछ इसलिए परेशान हैं कि प्रिंट मीडिया रचनाएं छाप तो देता है लेकिन शाबाशी रचनाकार को पहुँचाने की बजाय खुद हड़प कर जाता है । कित्ती तो गलत बात है ।
इसी चिन्ता में हम पंखे के नीचे समाधि लगाकर ध्यान-मग्न हो गए तो बोध की प्राप्ति भी शीघ्र ही हो गई । और समस्या का जो हल सूझा वह इस प्रकार है :
जब आप परेशान हों तो 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' के मार्ग पर चलें । और कुछ नहीं तो मानसिक शान्ति तो मिल ही जाएगी ।
जो लोग अपने चिट्ठे की प्रिंट मीडिया द्वारा की जा रही अवहेलना से व्यथित हैं उन्हें प्रिंट मीडिया को भाव देना बन्द कर देना चाहिए । जमकर मीडिया की अवहेलना करें । कोई पूछे, " आज का अखबार देखा ?" तो उत्तर के बदले प्रश्न करें, " ये अखबार क्या होता है भाई ?"
जो महानुभाव इस बात से त्रस्त हैं कि प्रिंट मीडिया उनके ब्लॉग से सामग्री लेकर मनमाफिक तरीके से छाप रहा है, उनके लिए सलाह है कि अखबार को पूरा का पूरा ब्लॉग पर छाप दें । बस नाम को छोड़कर ।
बाकी तो हम अधिक क्या कहें थोड़े लिखे को बहुत समझें, क्योंकि आप स्वयं समझदार हैं!
आपकी राय अच्छी लगी........
जवाब देंहटाएंधाँसू तरकीब !
जवाब देंहटाएंआईडिया पेटेंट करा लिजिये विवेक बाबू।
जवाब देंहटाएंबढिया है !!
जवाब देंहटाएंजय पंखा. जय विवेक.
जवाब देंहटाएंई ‘शठ’ का मतलब का भवा? मूरख या दुष्ट...?
जवाब देंहटाएंहम तौ इम्मे से कछु नाइ बन्ना चाहब।
प्रिन्ट मीडिया गई ठेंगे पे...।
सही उपाय है.
जवाब देंहटाएंअभी ३६ टिपणियां नही हुई हैं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
मतलब जैसे को तैसा ?
जवाब देंहटाएंइसी में तो स्वप्नलोक की सार्थकता है
जवाब देंहटाएंऐसी चीजों को हम तुरंत क्यों सीख जाते हैं ?
" ये अखबार क्या होता है भाई ?"achhi baat hai...apki post bhi achhi lagi...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
"एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिये महत्वपूर्ण है, यदि सार्थक हो !"
" ये टिप्पणी क्या होता है भाई ?"
vaakai sahi kaha aapne
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha aapne
जवाब देंहटाएंअरे भय्या, कुछ लोग यही कर रहे हैं उन्हीं से परेशान होकर अखबारों ने यह तरीका निकाला था बदला लेने का.
जवाब देंहटाएंआपने अपने आलेख मे जिस प्रिंट मीडिया का जिक्र किया है वह प्रिंट मीडिया क्या है भाई!
जवाब देंहटाएंक्या अंतर है जी पीपल और फ़ैन की छांह में? ज्ञान तो कहीं भी मिल सकता है ना:)
जवाब देंहटाएंबुद्धम् शरणम् गछामी............
नहीं तो ताऊ से लठ्ठ ले के पिल पड़ो और कहो कि हम तो अखबार नहीं पढ़ते हैं हम तो ब्लॉग ही पढ़ते हैं।
जवाब देंहटाएंपंखा न हुआ बौद्धिवृ्क्ष हो गया:)
जवाब देंहटाएंउपाय तो एकदम मैगी टाइप है! दो मिनट में मामला बराबर!
जवाब देंहटाएंZabardast idea...
जवाब देंहटाएं