इस ब्लॉगिंग रूपी बगिया में
हम ब्लॉगर भँवरे आते हैं
कर करके कितने ही जुगाड़
हम अपना ब्लॉग सजाते हैं
मन के विचार मानो कलियाँ
जो खिलकर बनतीं पोस्ट फूल
टिप्पणियों को मकरन्द समझ
मँडराते रहते झूल झूल
हम लिखकर पोस्ट बैठ जाते
अब टिप्पणियों का इंतजार
कुछ उधार वापस मिल जाएं
चढ़ जाए कुछ कर्ज का भार
यदि हो आवश्यक काम कहीं
उठते हैं बुझे हुए मन से
आत्मा ब्लॉग पर ही रहती
बाहर जाते हैं बस तन से
अच्छी मिल जाएं या कि बुरी
कुछ मिले प्रशंसा या निन्दा
अवसर हो घमण्ड करने का
या फिर बेशक हों शर्मिन्दा
हम लेखक, और प्रकाशक भी
हम पाठक, हम टिप्पणीकार
हम नामचीन, हम बेनामी
हम ही रोटी, हम ही अचार
हम चर्चित, चर्चाकार हमीं
हम ही कहते, "है अर्ज़ किया"
इरशाद बोलकर हमने ही
फिर वाह वाह का फ़र्ज़ किया
हम झगड़ालू, हम अशान्तिप्रिय
तू तू मैं भी करते हैं
हा हा ठी ठी भी कर लेते
फिर शान्तिपाठ भी पढ़ते हैं
घर पर पत्नी के डण्डे खा
ब्लॉग पर पुरुषवादी बनते
कर दें पतिदेव पिटाई भी
नारीवादी बनकर तनते
अपने बारे में कुछ लिख दो
यह आभासी दुनिया ठहरी
चिल्ला चिल्लाकर खूब कहो
समझो पब्लिक तो है बहरी
साइकिल की दुकान खोली हो
पर बोले रेल चलाते हैं
चाहे पान ही लगाते हों
कहते हथियार बनाते हैं
ये धंधा करें कमीशन का
पर बहुत बड़े व्यवसायी हैं
बूढ़ी अम्मा प्रोफाइल में
लिखती अपने को ताई हैं
लिख दिया कि हैं कलकत्ते में
पर ड्यूटी अपने साथ करें
हर पोस्ट सीरियस लिखते हैं
बच्चों से दो दो हाथ करें
अब कहें कहाँ तक आप कहो
बस अभी काम पर जाना है
खुद को मालिक की नज़रों में
अतिआवश्यक जतलाना है
rpc.blogrolling.com
जवाब देंहटाएंकोई मालवेयर दिखा रहा है.. बड़ी रिस्क लेकर आये हैं..
हम लेखक, और प्रकाशक भी
हम पाठक, हम टिप्पणीकार
हम नामचीन, हम बेनामी
हम ही रोटी, हम ही अचार
हम चर्चित, चर्चाकार हमीं
हम ही कहते, "है अर्ज़ किया"
इरशाद बोलकर हमने ही
फिर वाह वाह का फ़र्ज़ किया..
वाह वाह..
हम चर्चित, चर्चाकार हमीं
जवाब देंहटाएंहम ही कहते, "है अर्ज़ किया"
इरशाद बोलकर हमने ही
फिर वाह वाह का फ़र्ज़ किया ...
वाह वाह ... बहुत अच्छी लगी आपकी व्यंगात्मक रचना विवेक जी इसलिए वाह वाह किया है .... अन्यथा न लेना ...
अले वाह, कित्ती सुन्दर कविता..बधाई.
जवाब देंहटाएं_____________________________
'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.
मजेदार है! चकाचक तुकबंदी!
जवाब देंहटाएंतुसी ग्रेट हो..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंसाइकिल की दुकान खोली हो
जवाब देंहटाएंपर बोले रेल चलाते हैं
चाहे पान ही लगाते हों
कहते हथियार बनाते हैं
वाह भाई वाह...पूरी ब्लॉग सम्प्रदाय की पोल खोल दी आपने तो...क्या कहना.
नीरज
बहुत ही बढ़िया आकलन किया है!
जवाब देंहटाएं--
बधाई हो!
ओह लगता है ..इन दिनों लगता है बहुत गहन चिंतन चल रहा है ...तभी इत्ता प्रकाशमय लिख रहे हैं ....आनंदम आनंदम ..
जवाब देंहटाएंvaah bhaayi vah vivek ji bhut khub mzaa aa gyaa bhut bhut bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
जोरदार । मजा आगया पढ कर ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियों को मकरन्द समझ
मँडराते रहते झूल झूल
हम लिखकर पोस्ट बैठ जाते
अब टिप्पणियों का इंतजार
कुछ उधार वापस मिल जाएं
चढ़ जाए कुछ कर्ज का भार
यह और कितनी ही ऐसी और कडियां पसंद आईँ ।
साइकिल की दुकान खोली हो
जवाब देंहटाएंपर बोले रेल चलाते हैं
चाहे पान ही लगाते हों
कहते हथियार बनाते हैं
--तहलका डॉट कॉम टाईप खुलासा...पहली बार एक्सक्लूजिव!!
---न्यूज ट्रेकर पर ब्रेकिंग न्यूज चलाओ---
ये हुई ना बात.. बहुत ही धांसू लिखा है विवेक भाई..
जवाब देंहटाएंपान वाले भाईसाहब तो हमें ही चूना लगाते रहे..
आत्मा ब्लॉग पर ही रहती
बाहर जाते हैं बस तन से
ये मस्त लिखेला है बॉस
हम लिखकर पोस्ट बैठ जाते
जवाब देंहटाएंअब टिप्पणियों का इंतजार
कुछ उधार वापस मिल जाएं
चढ़ जाए कुछ कर्ज का भार
..................क्या कहना....क्या कहना.
प्रिय बंधुवर विवेक सिंह जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
क्या ख़ूब पोल खोली है …
यदि हो आवश्यक काम कहीं
उठते हैं बुझे हुए मन से
आत्मा ब्लॉग पर ही रहती
बाहर जाते हैं बस तन से
सब का यही हाल है क्या ?
मैं सोच रहा था कि मेरे साथ ही ऐसा है …
हा हाऽऽ हा …
वाह भाईजी वाह !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह वाह ! भाईसाब , तै ही नहीं कर पी क्या क्या कोट करू ??
जवाब देंहटाएंसारी की सारी कविता ही जबरजस्त है ....
यहाँ भी पधारें ...
विरक्ति पथ