शनिवार, जून 13, 2009

स्वप्नलोक में फ़िर स्वागत है !



फ़ेर न पायें जिन्हें पाठ वे,
जल्दी बहुत विसरते हैं .
एक बार फ़िर से बतला दो,
ब्लॉगिंग कैसे करते हैं .
तारतम्य सा टूट गया है,
कोई विषय नहीं मिलता .
कीचड़ है मौजूद अभी भी,
लेकिन कमल नहीं खिलता .
जिस ब्लॉगिंग बिन चैन नहीं था,
उसको छोड़ जिये कैसे ?
परखा स्टेमिना स्वयं ही,
निकल गए इस लत में से .
प्रथम सूत्र यह फ़ुरसतिया का,
पालन हुआ सफ़लता से .
कार्य कठिन था फ़िर भी हमने,
पूरा किया चपलता से .
निपटाये सब काम जरूरी,
अब फ़िर से फ़ुरसत पाई .
चलो गिरा दें सब दीवारें,
और पाट दें सब खाई .
स्वप्नलोक में फ़िर स्वागत है,
सपने फ़िर से देखेंगे .
शायद अब हम जल्दी जल्दी,
यहाँ हाज़िरी दे देंगे ..

33 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ कहाँ गए थे vivek भाई..
    आप हमसे यूँ जुदा हो के..
    सपनो का क्या कहें..
    नींद चली गई खफा हो के..

    आये वापस तो मन किया...
    आपके ब्लॉग को गले लगा लूँ मैं..
    कल से सपने देखेंगे..
    क्या सारे जहां को बता दूं मैं..

    विवेक भाई..सिर्फ एक वादा कर दो..अब यूँ न जाओगे रूठ कर...

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  2. शायद शब्द हँटा करके हो ब्लागिंग की शुरूआत।
    सुन्दर सपने स्वप्न लोक के तभी बनेगी बात।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail

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  3. चलिये आप आ गये । तसल्ली हुई । सपने देखने वालों की जरूरत है यहाँ बहुत ।
    हम भी निरन्तर हाजिरी लगायेंगे । आभार ।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. आप चले तो आये पर मेरा मन अब मुरझाता है
    जाने क्यों मुझे भी जगत यह रास नहीं आता है

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  6. सुन्दर। जय हो। बहुत अच्छा। लगे रहो।

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  7. wow..
    nice poem..
    mean koi aise vishay per bhi poem likh sakta hai..
    mai to soch hi nahi sakti.. :D
    u r so creative..so ur poems..
    mujhe tukant kavitaye bahut pasant hai..kyonki unko padhne kaa apne ek maza hai..

    welcome back.. :)

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  8. बहुत बढ़ीया.. मन खुश हो गया...

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  9. स्वागत है विवेक जी ! बहुत खुशी हुई आपकी वापसी पर !

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  10. स्वागत है। अब हम भी स्वपनलोक मे रोज़ हाज़िरी देगे।

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  11. एक कविता सिर्फ कविता जैसी सुन्दर्

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  12. फ़ेर न पायें जिन्हें पाठ वे,
    जल्दी बहुत विसरते हैं .
    एक बार फ़िर से बतला दो,
    ब्लॉगिंग कैसे करते हैं .
    बहुत बढ़िया आपका स्वागत है .

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  13. स्वप्नलोक में फ़िर स्वागत है,
    सपने फ़िर से देखेंगे .
    शायद अब हम जल्दी जल्दी,
    यहाँ हाज़िरी दे देंगे ..

    स्वागत है विवेक जी आपका.............. आप दिल से दूर गयी ही नहीं थे कभी.......

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  14. अरे भाई मुझे पता था आप जरुर वापिस आयेगे, क्योकि आज कल इतनी लू जो चल रही है फ़िर टंकी पर गर्मी भी तो खुब लगती होगी.
    चलिये आप का फ़िर से स्वागत है, अब आईंदा हमारे साथ ही रहे, यह एक परिवार सा बन गया है इस से दुर रह पाना अब कठिन है, लडो झगडो लेकिन रुठॊ नही.
    मुझे बहुत खुशी हुयी आप की वापसी की, मेरे मजाक को सिर्फ़ मजाक ही समझना बुरा ना मनाना ऊपर लिखी बातो का.
    धन्यवाद

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  15. अरे विवेक भाई,
    कल हममे आपस के कैसी अजीब सी गलतफहमी बन गयी, मिलते-मिलते रह गए. चलो आपकी बात बड़ी हो गयी, हम ही आते हैं जल्दी ही पानीपत.

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  16. लागी छूटे ना......:) भई विवेक जी, हमारी ओर से भी स्वागत है।

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  17. लिखो, कम लिखो, मत लिखो पर सदा साथ बने रहो। आपका लौटना हर्षदाई है।

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  18. khoob achha svaagat ho raha hai....aur kyon naa ho...likhte rahiye

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  19. kahi kuch kami lag rahi thi blog jagat me aapke bina..... swagat hai

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  20. विवेक जी आपने बहुत ही सुंदर कविता लिखा है!

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  21. पैदल चलना और ब्लागिंग, जो एक बार कर ले, फिर भूल नहीं सकता. वापसी पर कविता के माध्यम से जो कुछ कहा, उसे पढ़कर मन प्रसन्न हो गया.

    जय हो.

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