जब धरती पर अनाज सड़ गया तो बड़ा हंगामा हुआ । सरकार की खूब लानत मलानत हुई । अधिकारियों पर गाजें गिरीं । इससे कुछ अधिकारियों के सिर से खून बहने लगा । उन्हें तत्काल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में दाखिल कराया गया । बाकी अधिकारीगण जो अनुभवी थे उन्होंने गाज का सामना हेल्मेट पहनकर किया । इससे कुछ गाजें टूटकर इधर-उधर बिखर गईं । उन्हें अन्य फालतू चीजों की तरह ही चपरासी उठा ले गया, शायद घर पर कुछ काम आ जायें । मीडिया की बाँछें खिल गईं पर उसने उन्हें उसी प्रकार छिपाए रखा जिस प्रकार संजीव कुमार शोले फिल्म के ठाकुर का रोल करते समय अपनी बाहों को छिपा लिया करते थे ।
अनाज सड़ने की जाँच होनी थी तो हुई भी । एक सदस्यीय जाँच आयोग को पहले खड़ा किया गया गया फिर जाँच करने के लिए बिठा दिया गया । जाँच आयोग के अध्यक्ष ने जब बैठने और खड़े होने की स्वतंत्रता माँगी तो उन्हें दे दी गयी लेकिन शर्त रखी गयी कि जाँच रिपोर्ट तीन महीने से पहले नहीं आनी चाहिए ।
जब जाँच आयोग अनाज सड़ने के कारणों का पता वैज्ञानिक विधियों से न लगा सका तो उसे अपनी इज़्ज़त पर आँच आती हुई दिखाई देने लगी । उसने कोशिश की कि इस तरह के पुराने केसों की कोई रिपोर्ट मिल जाए तो कॉपी-पेस्ट मार दिया जाय । लेकिन सभी कोशिशें बेकार गयीं क्योंकि मीडिया लगातार पीछे लगा हुआ था और बैठने-खड़े होने की आजादी का भी हनन करने के प्रयास में लगा था । ऐसे में भला जाँच रिपोर्ट बने तो कैसे ? हालत यह हो गई कि जाँच रिपोर्ट लिखने के लिए स्टेशनरी की जिस दुकान पर भी एक हज़ार पन्नों की नोटबुक माँगी गयी वहीं मीडिया का एक संवाददाता पहिले से ही लाइव खड़ा हुआ मिला । मानो धरती पर आम आदमी कोई रहता ही न हो । सब संवाददाता हो गए हों ।
असहाय जाँच आयोग एक बाबा के पास चला गया । यहाँ मीडिया को अन्दर जाने की मनाही थी । बाबा को जब मामले की जानकारी दी गई तो सहर्ष ही मदद को तैयार हो गए ।
अन्त में जब जाँच रिपोर्ट आयी तो इतनी सी थी ।
आयोग ने धरती पर अनाज सड़ने के हर संभव कारण की तलाश की लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह नहीं मिला । लिहाजा आयोग ने स्वर्ग में जाकर जाँच करने का फैसला किया । स्वर्ग में जब अनाज का नाम लिया गया तो इसे नर्क का मामला बताकर मामला नर्क में ट्रांसफ़र कर दिया गया । पहले तो नर्क के आधिकारियों ने इस मामले पर बात करने से ही इनकार कर दिया लेकिन यमराज के एक भैंसे ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "नर्क में आने वाली आत्माओं की संख्या में आशातीत वृद्धि होने के कारण सबको दण्ड देना यहाँ संभव नहीं रह गया था । नरकवासियों को उचित ट्रीटमेंट न मिलने के कारण स्वर्ग और नर्क का फ़र्क लगभग खत्म हो चला था । अपने दुख से दुखी न होकर दूसरे के सुख से दुखी होने वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी । यही स्वर्ग में रहने वाली आत्माओं के साथ हुआ । जब उन्होंने नर्कवासियों को कोई भी प्रताड़ना आदि न मिलने की बात पता चली तो सबने हस्ताक्षर अभियान चलाकर ऊपर भगवान विष्णु से शिकायत कर दी । सुना है यमराज को भगवान विष्णु ने अपने ऑफिस में बुलाकर खूब हड़काया था । और नर्क में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने पर जोर देने की नसीहत भी दी, अन्यथा पद से त्याग-पत्र देने को कहा । उसी दिन यमराज ने सौ सौ कोड़े सभी आत्माओं को गुस्से में फटकार दिए थे , इससे सबको अंदेशा हो गया था कि अवश्य ही यमराज कोई न कोई कड़ा कदम उठाएंगे । हुआ भी वही । उधर धरती पर आत्माओं को भेजने की संभावना पर विचार हुआ । पर वहाँ भारत में जीवन स्तर में लगातार सुधार होते जाने से नारकीय जीवन जीना अपेक्षाकृत बहुत मुश्किल हो गया है । बाकी देश तो हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं ही । तभी हाल ही में नर्क में आए एक रिश्वतखोर सचिव ने यमराज को सलाह दी कि क्यों न कुछ आत्माओं को अस्थायी तौर पर कीड़े मकोड़े बनाकर भारत भेज दिया जाय ? इससे यहाँ लोड कम हो जाएगा और जाने वालों को सजा भी मिलती रहेगी । यमराज के पूछने पर उसने यह भी बताया कि अनाज के भण्डारगृहों में कीड़े पैदा करने की व्यवस्था हो सकती है ।"
अत: आयोग इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि अनाज सड़ने के मामले में धरती पर रहने वाले किसी प्राणी का कोई हाथ नहीं है । यह पूरी तरह से दैवीय प्रकोप है ।
जबरदस्त ... कम से कम किसी आयोग की रिपोर्ट तो आई ... अच्छा और सटीक व्यंग्य
जवाब देंहटाएंवाह ! बढ़िया व्यंग्य !!
जवाब देंहटाएंआतंकी घटना विदेशी हाथ
अब अनाज का सड़ना यमराज का हाथ
खेलों में हुई धांधली के लिए भी कोई हाथ बता दीजिए बेचारा कलमाड़ी आजमा लेगा :)
आज कल सांसद मै भी यम राज ही है
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !