कहा गया है कि " निंदक नियरे राखिए , आँगन कुटी छवाय " . कहा तो यह भी गया है कि " कहना आसान है पर करना कठिन " . हमें दूसरी कहावत पहली पर भारी पडती हुई लगती है . आजकल कोई निंदक नियरे रखना चाहे तो भी निंदक नियर आते ही नहीं . वे तो दूर दूर रहकर ही पीठ पीछे निंदा करना पसंद करते हैं . वैसे भी निंदकों को यह मंजूर नहीं कि उन्हें आँगन में बनी कुटी यानी झोंपडी में रहना पडे . जब दूर से ही निंदा करके वे एसी में रह रहे हों तो झोंपडी में रहने का कष्ट क्यों सहें . उस पर भी पास रहकर निंदा करने का रिस्क फैक्टर अलग . क्या इसी दिन के लिए निंदक बने थे . प्रमोशन तो सभी चाहते हैं पर कोई अपना डिमोशन भी चाहता है क्या ? हाँ कोई बेरोजगार अनुभवहीन निंदक मिल जाय तो झोंपडी में रहना स्वीकार कर भी सकता है . पर अनुभवहीन का क्या भरोसा कहीं निंदा करने की बजाय S.O.G. ( Soaping , Oiling , Greasing ) कर्म करने लगा तो लेने के देने पड जाएंगे .
अब वह जमाना गया जब निंदक पास में रहते थे . पहले की बात अलग थी जब विदुर धृतराष्ट्र के पास रहकर ही चौबीसों घण्टे अपनी सेवाएं देते रहते थे . आजकल तो दूर रहकर निंदा करने वाले भी मुश्किल से मिलते हैं . जिसे देखिए चिकनी चुपडी बातों से आपको भरमाने की कोशिश कर रहा है . आजकल तो इस विषयपर किताबें भी धडल्ले से बिक रहीं हैं . पर हमारी सरकार का इस तरफ ध्यान ही नहीं कि इन किताबों की वजह से लोग कितने तेलू होते जारहे हैं . निंदा कैसे करें टाइप किताबों का सर्वथा अभाव है . अच्छी चीजों का मार्केट ही नहीं है और सरकार सबसिडी देती नहीं . सबको पता है कि निंदा करेंगे तो उनकी निंदा होना तय है . उस पर भी कोई एक दो परोपकारी महापुरुष निंदक कर्म अपनाने का वीडा उठाते हैं तो तुरंत तथाकथित स्वयंभू समाज सुधारक तबका सक्रिय हो जाता है . और पूर्व नियोजित षडय्ंत्र के तहत उनका जोश ठण्डा करने में देर नहीं लगाते . ऐसी स्थिति में समाज निंदाजनित लाभों से वंचित होता जाता है . सब एक दूसरे की झूठी या अर्धझूठी प्रसंशा के पुल बाँधते रहते हैं और विकास की गति मंद पड जाती है .
अगर आपको निंदाजनित लाभों को प्राप्त करना है तो आपकी निंदा होना अतिआवश्यक है और आपकी निंदा कोई फ्री-फोण्ड में कर देगा इस गलफहमी में रहना मत . आप किसी की निंदा करोगे तभी तो कोई आपकी निंदा करेगा .
इसलिए हे भक्तगणों निंदा करिए !
bahut badhiya .
जवाब देंहटाएंविवेक भाई , S.O.G. के जमाने में विदुर धृतराष्ट्र की बातें किताबो में अच्छी लगती है.
जवाब देंहटाएंsahi kaha...nindak niyare rakhne wala jamana chala gaya.ab to na aankh se aankh mila ninda karne wala milta hai aur yadi mil bhi gaya to aisi ninda bardasht karne wala jigar nahi bacha.
जवाब देंहटाएंवाहवा... विवेक जी, बिल्कुल सही लगे हैं आप.. वाह....
जवाब देंहटाएंओह विवेक जी कैसे कैसे भड़काऊ भाषण देने लगे हैं आजकल....निंदा करो निंदा करो....." हा हा हा हा हा हा हा ये लो जी हमने तो अमल भी कर दिया....शुरुआत आपसे ही......गुरु जी अब मुह मत बनाना ख़ुद ही तो सिखा रहे हो हा हा हा हा हा ..."
जवाब देंहटाएंRegards
Regards
ham aapake is post ki ninda karte hain.. :P
जवाब देंहटाएंबहुत निंदनीय पोस्ट लिखी है आपने ..:) बढ़िया है .
जवाब देंहटाएंक्या विवेक जी.. आज लिखने को कुछ नहीं मिला... ये क्या लिख डाला.. सैकडो़ साल पहले की बार दोहराने का क्या मत्लब.. जो कह ्दिया सो कह दिया.. कबीर की बात कबीर करें विवेक क्यों करे..
जवाब देंहटाएंहो गई निन्दा? या और करें... :)
सही कहा विवेक, कभी कोई थम के कहे.. भाई ये ठिक नहीं.. ऐसा नहीम वैसा करलो.. तो शायद गुणवत्ता बढे़.. नहीं तो रोज वही..
बहुत 'निन्दनीय' आलेख!:)
जवाब देंहटाएंनिंदक की निंदा की निंदा करते हुवे एक सुंदर निन्दिका ...............
जवाब देंहटाएंजे हो निंदक समाज की
लो जी, आप भी क्या बात करने लगे? हम तो लोगो को समझाते समझाते थक गये कि भैया दुसरों को बिगाडने मे जितना पुण्य है उतना कही नहीं, और दुसरे की निन्दा मे जितना परमानन्द है उतना स्वर्ग के सुखों मे भी नही.
जवाब देंहटाएंअति उपयोगी और परम कल्याणकारी सलाह. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
निंदा कैसी की जाती है, पहले इस पर एक लेख लिखकर बतायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभाव
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
बिल्कुल सही लिखा है एक निन्दक कई दोस्तों से अच्छा होता है , एक निन्दक ही हमें अपनी गलतियों का अहसास कराता है !
जवाब देंहटाएंसही लिखा है.
जवाब देंहटाएंसमझ गये आप भी ये खेल .....या उब गये ?
जवाब देंहटाएंपरनिन्दा परमोधर्मः . सुंदर रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंतो इस समय निंदा रस में डूब्यो हो आप !
जवाब देंहटाएंमैं तुम्हारी निंदा करता हूँ आजकल बहुत लिख रहे हो .छा रहे हो . नम्बर वन से टक्कर लेते हो ,मैं तुम्हारी फिर से निंदा करता हूँ , अक बार फ़िर से निंदा करता हूँ . अब तो मेरी निंदा शुरू करो भाई
जवाब देंहटाएंek 'natkhat bachcha' kya nahin dikhataa a???sabse bada NATKHAT NINDAK???
जवाब देंहटाएंकौन निँदा कर रहा है भई ?
जवाब देंहटाएं- लावण्या
हूँ, निंदा ही निंदा सर्वव्याप्त है:)
जवाब देंहटाएंयह तो निन्दा विधा का इक्कीसवीं शताब्दी कर संस्करण है।
जवाब देंहटाएंअपार सम्भानाएं नजर आ रही हैं।
अरे भाई अब तक तो वाह वाह की टिपण्णी ही करते आया. कुछ निंदा के सैम्पल तो दे देते... कॉपी पेस्ट कर जाते :-)
जवाब देंहटाएंसनत को जन्म दिन की बधाई और आशीर्वाद !
मौका तड़े बैठे हैं..बस, जल्दी ही हाथ लगते ही निंदा तीर दागेंगे. पहले कुटिया तो छवाओ. :)
जवाब देंहटाएंअरे ई का निंदा-चक्र चला रखे हो? मैं तुम्हारे इस लेख की निंदा करते हुए एक लेख लिखूंगा.......
जवाब देंहटाएंचलो एक बार फिर से निंदनीय बन जाएँ हमदोनो.....
Bouth he aacha post yar good going
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दुखद अतिनिंदनीय अफसोसजनक!!!
जवाब देंहटाएंसही लिखा है.
जवाब देंहटाएंनिंदा का प्रेम-परस्पर तो यहीं देख पा रहा हूं .
जवाब देंहटाएं'itna sunhara mauka kaise haath se nikal gaya'..kisi ki to kya ninda karti--apni hi ninda karti KI- -itni nidak post kyun kar padh daaali!!! :D
जवाब देंहटाएंNo deposit bonuses - POKER money bankrolls
जवाब देंहटाएंall possible no deposit bonuses starting bankrolls for free Good luck at the tables.
Donald Duck