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बुधवार, अक्तूबर 29, 2008
नहीं बची है शर्म
आज भरोसा खो चुकी है लालू की रेल । कांग्रेस अब खेलती छुपकर ओछा खेल । छुपकर ओछा खेल राज ठाकरे है मोहरा । खेल वोट के सौदागर ही खेलें दोहरा । विवेक सिंह यों कहें देशहित तो है बौना । नहीं बची है शर्म दिखाया रूप घिनौना ॥
एक सफ़ेद कबूतर, उसके दो पर, एक इधर, एक उधर। दो व्यक्ति, पहने हुए, सफ़ेद धोती, सफ़ेद कुर्ता, सफ़ेद टोपी, एक सफ़ेद कबूतर के इधर, एक उधर, नोचने को तैयार, सफ़ेद कबूतर के पर। अगली सुबह, सफ़ेद कबूतर माँग रहा था प्राणों की भीख, बेचारा चिल्लाय भी तो कैसे, चिल्लाना शोभा नहीं देता उसे, जो हो शांति का प्रतीक।
लालू की रेल हो गई है फेल . बकरे की माँ कब तक खेर मनाती. महाराष्ट्र की सत्ता बचाने को ,बिहारिओं की बलि चडा दी .
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है, दोस्त।
जवाब देंहटाएंआज भरोसा खो चुकी है लालू की रेल ।
जवाब देंहटाएंकांग्रेस अब खेलती छुपकर ओछा खेल ।
बहुत सुंदर
'कॉंग्रेस के राज्य में नेहरू के कबूतर'
जवाब देंहटाएंएक सफ़ेद कबूतर,
उसके दो पर,
एक इधर,
एक उधर।
दो व्यक्ति,
पहने हुए,
सफ़ेद धोती,
सफ़ेद कुर्ता,
सफ़ेद टोपी,
एक सफ़ेद कबूतर के इधर,
एक उधर,
नोचने को तैयार,
सफ़ेद कबूतर के पर।
अगली सुबह,
सफ़ेद कबूतर माँग रहा था प्राणों की भीख,
बेचारा चिल्लाय भी तो कैसे,
चिल्लाना शोभा नहीं देता उसे,
जो हो शांति का प्रतीक।
-हर्ष
परेशान मत हो भाई विवेक!
जवाब देंहटाएंछुपकर ओछा खेल राज ठाकरे है मोहरा ।
जवाब देंहटाएंखेल वोट के सौदागर ही खेलें दोहरा ।
बहुत सही और सटीक कविता है भाई विवेक जी ! बहुत धन्यवाद !
बिल्कुल सटीक कहा...ज्यादा परेशान न हों सब सियासी नौटंकी है. भाई, आज की चिट्ठा चर्चा की भी एक कविता लिख पोस्ट कर हमें बचाये लो!!! लिख नहीं पा रहे हैं.
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