संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
रविवार, सितंबर 21, 2008
काटोगे जो इसे
ले आए हम पकड़ कर, जुल्मी बकरा एक । पर घर में थीं बकरियाँ, लिया उन्होंने देख । लिया उन्होंने देख, बनाया प्रेशर भारी । काटोगे जो इसे, न देंगे वोट तुम्हारी । विवेक सिंह यों कहें, काटना मेरा जिम्मा । कब तक खैर मनाएंगी बकरे की अम्मा ?
बहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंकब तक खैर मनाएंगी बकरे की अम्मा ?
जवाब देंहटाएंkhoobsurat likha hai
जवाब देंहटाएंबहुत सही!!
जवाब देंहटाएं