रविवार, दिसंबर 21, 2008

नाम, रूप, गुण कैसे कैसे !


जब नाम से किसी को जानें ।
किंतु रूप से ना पहचानें ॥
तो अजीब स्थिति होती है ।
मन में एक मूरत होती है ॥
जैसा नाम रूप, गुण वैसे ।
लोग मान लेते हैं ऐसे ॥
नाम, रूप, गुण, कार्य मिलें सब ।
लेकिन ऐसा होता है कब ?
सत्य सामने जब आता है ।
अक्सर मन चकरा जाता है ॥
शेरसिंह कुत्तों से डरते ।
जलसिंह पानी में न उतरते ॥
झूठ बोलकर दाम कमाते ।
लेकिन हरीचन्द कहलाते ॥
शांतिस्वरूप क्रोध करते हैं ।
भीष्म लडकियों पै मरते हैं ॥
हर्ष विषादग्रस्त रहते हैं ।
सुखपाल भी दुखी रहते हैं ॥
नाम कबीर पूजते मूरत ।
सुन्दर को देखा बदसूरत ॥
बलराम की हुई बरबादी ।
राधा से हो गई है शादी ॥
मोहनचन्द दूसरे भाई ।
राधा जी उनकी भौजाई ॥
कैसे कैसे मिले अजूबे ।
साहूकार कर्ज़ में डूबे ॥
अमर बिचारे स्वर्ग सिधारे ।
जंगजीत जूए में हारे ॥
तेजसिंह का काम है धीमा ।
चक्कर खा गिर पडता भीमा ॥
काला अक्षर भैंस बराबर ।
इनका नाम रहा विद्याधर ॥
गलती से पड गए जो छींटे ।
लछिमन रामचन्द को पीटे ॥
कर्ण जरा ऊँचा सुनते हैं ।
लक्की अपना सिर धुनते हैं ॥
राजकुमार लगाता ठेला ।
दानवीर ने दिया न धेला ॥
साधूराम डकैती डालें ।
लाखों का सामान पचा लें ॥
शीतल को लगती है गर्मी ।
धरमवीर सा नहीं अधर्मी ॥
मेघराज पानी को तरसे ।
बादल अब तक कभी न बरसे ॥
दारासिंह हड्डी के ढाँचे ।
शिवशंकर जी कभी न नाचे ॥
विश्वनाथ अनाथालय में ।
लता न गाती बिल्कुल लय में ॥
नन्हे खाँ दिखते हैं फूले ।
झूलेलाल कभी ना झूले ॥
दयावती को दया न आई ।
करी सास की खूब पिटाई ॥
ऐसा पृथ्वीराज मिला है ।
भूमिहीन में नाम लिखा है ॥
कल्लोदेवी देखीं उजली ।
चन्दा तारकोल की पुतली ॥
यादराम जी की लाचारी ।
इन्हें भूलने की बीमारी ॥
कुलभूषण की बात सुनाएं ।
दुराचार कुछ कहे न जाएं ॥
कुल की साख लगाया बट्टा ।
सत्यनारायण खेलें सट्टा ॥
नाम नयनसुख देखे भेंगे ।
कुँआरे दूल्हेराम मरेंगे ॥
पर कुमार की दो-दो शादी ।
आशा घोर निराशावादी ॥
अन्नपूर्णा मरती भूखी ।
मृदुला की बातें हैं रूखी ॥
परमानन्द दुखी बेचारे ।
लाख प्रयत्न किए पर हारे ॥
बेटे का दिमाग है खिसका ।
होशियारचन्द नाम है जिसका ॥
ध्यानचन्द जी कभी न खेले ।
टाँग तुडाकर बैठे पेले ॥
अर्जुन बडे युधिष्ठिर छोटे ।
लाखन को रुपयों के टोटे ॥
घोर गरीबी ऐसी छाई ।
जाने कैसी किस्मत पाई ॥
धनीराम यूँ जीवन काटें ।
सेठ भिखारी कर्ज़ा बाँटें ॥
श्रवण कुमार झगडते माँ से ।
बुड्ढे को ले जाओ यहाँ से ॥
इसका सरक गया है भेजा ।
इसको वृद्धाश्रम में लेजा ॥
लज्जा देवी नहीं लज़ाती ।
नहीं इमरती मीठा खाती ॥
ऐसे भी जगपाल यहीं हैं ।
घर में आटा दाल नहीं है ॥
बेचारे ये रोज कमाते ।
तभी शाम को खाना खाते ॥
घर में मित्र प्रकाश आगया ।
बत्ती गुल अंधेर छागया ॥
किस्मत के मिट सके न लेखे ।
ज्ञानदत्त अज्ञानी देखे ॥
गौर वर्ण के देखे कल्लू ।
नाम विवेक मगर हैं लल्लू ॥
अत: सज्जनो नाम है जैसा ।
आवश्यक न रूप, गुण वैसा ॥

28 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है |
    छा गए गुरु |
    जथा नाम तथा गुण शायद सतयुग में भी नहीं था |

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  2. कंडा थोपे लक्ष्मी ,हल जोते धनपाल
    अमर सिंह तो मर गए हम रह गए ठन ठन गोपाल .

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  3. वाह क्या बात है | आज तो लट्ठ गाड़ दिए हो विवेक जी !

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  4. नाम कर्म लेखा खोल बैठे हैं आज तो। रविवार का खूब सदुपयोग किया है।

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  5. नयन सुख जी सूरदास और करोड़ीमल जी भिखारी तो सुने थे, पर आपकी लिस्ट बहुत लम्बी है!

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  6. कमाल कर दिया भाई आज तो ! नई नई बातें बताई आपने ! सच मे मजा आगया और विचार करने पर आपकी बात सौ प्रतिशत खरी लगी !
    राम राम !

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  7. स्क्रोल डाउन करते करते थक से गये नामों की महिमा पढ्ते. बहुत ही सुंदर. आभार.

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  8. अरे वाह ! बहुत मेहनत करके लिखा है.....सबको पसंद आ रही है....बधाई।

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  9. बढ़िया है विवेक भाई आपकी रचना में रवानगी है।

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  10. लल्लू को इस कल्लू की बधाई।

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  11. रसगुल्ले में पडी़ खटाई
    लम्बी बिछ गई दरी चटाई
    वाह वाह वा वा विवेक भाई
    बात मगर है बड़ी सुझाई

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  12. वाह! बढ़िया है । बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। देखिए, घुघूती केवल सपनों में है उड़ती !
    घुघूती बासूती

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  13. विवेक जैसा नाम वैसा गुण . एक यही नाम अपवाद है इस लम्बी लिस्ट मे . बहुत विवेकशील हो लल्लू

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  14. बहुत सोच के सारी लिस्ट तैयार की है नामोँ की - वाह !

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  15. कहां कहां से नाम ढुढे है भाई..
    हर एक नाम की वाट लगाई

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  16. नाम विवेक मगर हैं लल्लू ॥
    अत: सज्जनो नाम है जैसा ।
    आवश्यक न रूप, गुण वैसा
    " हा हा हा हा , कमाल की रचना ....काबिले तारीफ..."

    Regards

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  17. अरे भाई विवेक जी, क्या बात है. हमें भी सिखा दो ये कविगर्दी. हम भी लिख तो सब कुछ लेते हैं लेकिन ससुरे ये श्लोक ही नहीं लिखे जाते.

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  18. ज्ञानदत्त अज्ञानी देखे ॥

    अब इसका क्या मातबल है समझाओ... और हा इस जबरदस्त पोस्ट के लिए बधाई लेजाओ

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  19. bahut mast vivek jee...bahut khub rahi.....maza aa gaya phad ker...

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  20. झकास है बीडू......लिस्ट भी ओर लिस्ट लगाने वाला भी.....दीवार में जरा ढंग से चिपकाना !

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  21. kya bat hai bahut sundar!
    vivek bahi aap jis kampani or jis jagah rahte hai mai vahan pahle rahta tha!lekin ab mera duti badal gaya to mai idhar aa gaya!

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  22. वाह विवेक जी ! मज़ा आ गया ! हँसाने के लिए शुक्रिया !

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  23. छा गए गुरु..छा गए.
    अद्भुत लेखन है. आनंद आ गया.

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  24. कहते कहते रुक गयी क्यों कुछ जुबान हुज़ूर की
    मुझको थी उम्मीद मेरा नाम लब पर आयेगा

    वैसे विवेक का विवेक तो सही चल रहा है .
    कोई कुछ कह ना सके इसलिए पहले ही लल्लू बन गए

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