अयोध्या में खुदाई शुरू हुई । राम को ढूँढ़ना था । लगभग सारी अयोध्या खोद डाली लेकिन राम नहीं मिले । खोदने वालों को राम को ढूँढ़ने में कोई खास दिलचस्पी न थी । उन्हें शायद पहले से पता था कि राम नहीं मिलेंगे । उनकी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा थी कि किस तरह अधिक से अधिक क्षेत्र में खुदाई कर दी जाय जिससे खुदाई का भुगतान होते ही मुकेश अम्बानी से टक्कर लेने लगें । इसी चक्कर में वे दिनरात एक करके खुदाई करते जा रहे थे । अयोध्या में राम बरामद नहीं हुए तो वे आसपास के इलाकों का अतिक्रमण करते हुए खुदाई करने लगे । इसी तरह वे खुदाई करते करते बनारस पहुँच गए । बनारस में एक जगह उन्हें एक बोर्ड लगा हुआ दिखाई पड़ा । उस पर लिखा हुआ था "आधुनिक राम" । वे उसी तरफ़ चल पड़े ।
देखा कि राम को साथ दो स्त्रियाँ खड़ी हैं ।
एक तो सीता माता होंगी । पर दूसरी कौन है ? इस पर लक्ष्मण जी भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे । हो सकता है लकड़ियाँ इकट्ठी करने गए हों । लेकिन यह दो स्त्रियों का क्या मतलब है ? और पास पहुँचे तो पता चला कि एक स्त्री की नाक कटी हुई है । वे लोग समझ गए कि सूर्पनखा की नाक काटने वाला सीन चल रहा है ।
उनका एक साथी भावुक होकर सीता मैया के चरणों में गिर गया और बोला, " माता ! आपको सूर्पनखा ने कोई चोट तो नहीं पहुँचाई ?"
लेकिन प्रश्न पूछते ही तथाकथित सीता माता ने उसे एक जोरदार कण्टाप जड़ दिया और बोली, "बेवकूफ ! मैं सूर्पनखा हूँ । आधुनिक युग में नाक सीता की कटती है, सूर्पनखा की नहीं । सूर्पनखा की नाक तो तभी कटेगी जब वह राम को ब्लैकमेल करने लगे ।"
खुदाई वाले चुपचाप अपने फावड़े अदि उठाकर जिधर से आए थे उधर ही चले गए ।
बोलो मर्यादा पुरुषोतम भगवान् राम चन्द्र महाराज की जय....क्या व्यंग लिखा है...आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंनीरज
vivek jee aap ne kal yug kee raamaayan ka ek sheen dikhaa kar aaj ke vyavsthaa par karaara chantaa maara hai.
जवाब देंहटाएंJai ho .... Kalyug ki ramayan ...
जवाब देंहटाएं"लगभग सारी अयोध्या खोद डाली लेकिन राम नहीं मिले । "
जवाब देंहटाएंकैसे मिलते???????? वो तो सरयु नदी में हैं :)
गोस्वामी विवेक महाराज की जय :)
तब तो हो गई ना राम राम हो गई ... सही कह रहें हैं... नाक आजकल सीता की ही कटती है ... शूर्पनखा तो झटक कर दूर खड़ी हो जाती हैं ...
जवाब देंहटाएं"आधुनिक राम की करतूत"
जवाब देंहटाएंविवेक जी, आपने जो भी व्यंग लिखा है - विवेक से ही लिखा होगा मैं ये मानता हूँ.
पर हेडिंग सही नहीं लगाईं..............
शानदार खुदाई.........
जवाब देंहटाएंजानदार खुदाई........
अजी शूर्पनखा अब सायानी हो गई है, अब उस का ही जमाना है, सीता बेचारी क्या करे शर्मा कर दुर खडी है हकीबकी.....
जवाब देंहटाएंराम मिले तो नैया पार लगे (संसद के).
जवाब देंहटाएंजमाना बदल गया है ... बढ़िया लेख
जवाब देंहटाएंएक बार जरुर पढ़े :-
(आपके पापा इंतजार कर रहे होंगे ...)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html
पुराने तेवर और स्पीड में देख अच्छा लग रहा है..
जवाब देंहटाएंविवेक भैया. अभी तक के सबसे जोरदार व्यंग्य(जो मेरी नज़रों के नीचे से गुज़रे) में से एक... बधाई..
जवाब देंहटाएंअरे राम तो इधर हैं :)
जवाब देंहटाएं"बेवकूफ ! मैं सूर्पनखा हूँ । आधुनिक युग में नाक सीता की कटती है, सूर्पनखा की नहीं । सूर्पनखा की नाक तो तभी कटेगी जब वह राम को ब्लैकमेल करने लगे ।"
जवाब देंहटाएंबहुत ही सच्ची और सही बात लेकिन ये आपको कैसे पता चली ??,मैंने तो किसी को नहीं बतायी :):)
महक
जोरदार तड़का।
जवाब देंहटाएं………….
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