गंगाराम पटेल और बुलाकी नाई के किस्से आपने सुने ही होंगे । फिर भी हमने जैसा सुना वैसा आपको सुना देते हैं ।
गंगाराम पटेल को जब गंगा-स्नान का विचार आया तो उन्होंने बुलाकी नाई को बुलाकर अपने साथ चलने का हुक्म सुना दिया । बुलाकी नाई की शादी को अभी ज्यादा अरसा नहीं हुआ था इसलिए उसका मन नई दुल्हन को छोड़कर घर से दूर जाने का न था फिर भी सीधे-सीधे मना न कर सकता था । गाँव में रहना था तो पटेल जी से बिगाड़ नहीं होना चाहिए । लिहाजा उसने अपनी छत्तीस विद्याओं में से एक का प्रयोग किया । बोला, " मालिक ! मैं चलने को तो तैयार हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है । मैं हर पड़ाव पर आपसे एक सवाल पूछूँगा । उस सवाल का जवाब यदि आप संतोषजनक न दे सके तो मैं वहीं से वापस आ जाऊँगा । "
गंगाराम पटेल ने अपने बाल धूप में सफेद न किए थे । वे अनुभवी आदमी थे तुरंत ताड़ गए कि यदि शर्त न मानी गई तो बुलाकी विद्रोह कर सकता है । उन्होंने शर्त को स्वीकार कर लिया ।
यात्रा की तैयारियाँ हो गईं और वह दिन भी आ पहुँचा जब गंगाराम पटेल और बुलाकी नाई गंगा-स्नान करने के लिए यात्रा पर चल पड़े । पहले दिन जोश थोड़ा ज्यादा था । घोड़ा भी तरोताजा था । शाम तक काफी दूर निकल गए । जब नजदीक आया तो उन्होंने डेरा जमा लिया । बुलाकी को जल्दी थी । वह आत्म विश्वास से लबरेज था । उसने रुकते ही अपने सवाल का जवाब देने का आग्रह किया । लेकिन गंगाराम पटेल बोले, " उतावला न हो । घोड़े को पेड़ से बांध । शहर जा । आटा दाल ला । घोड़े के लिए दाना-घास ला । आकर खाना पका । हमें खिला । फिर तू खा । हमारे लिए हुक्का भर । फिर तू हमारी पैर-चप्पी करना और हम तेरे सवाल का जवाब देंगे । "
बुलाकी ठगा सा रह गया । पर करता क्या ? जल्दी जल्दी सब काम निपटाने के इरादे से शहर की तरफ निकला । शहर से आते समय एक अजीब दृश्य देखकर वहीं खड़ा होकर देखने लगा । जब उसकी समझ में कुछ न आया तो सोचा कि आज क्यों न गंगाराम पटेल से यही सवाल पूछ लूँ ? उसने ऐसा ही किया । जल्दी-जल्दी पटेल के बताये सभी काम निपटाकर वह हुक्का भर लाया । गंगाराम पटेल हुक्का गुड़गुड़ाने लगे और बुलाकी उनके पैर दबाने लगा । तब गंगाराम पटेल ने उसे अपना सवाल पूछने को कहा ।
बुलाकी बोला ," मालिक! जब मैं शहर से लौटकर आ रहा था तो मैंने एक अजीब दृश्य देखा । एक युवक अपने छोटे भाई को पीटे जा रहा था । भाई चिल्लाकर कह रहा था कि, " भाई मुझे मत मार, मैंने पिताजी से कोई झूठ नहीं बोला, सब सच ही तो कहा था ।" इस पर भाई बोला, " अब तुझे पिताजी से यह कहना है कि तूने जो कहा था सब झूठ था ।"
आगे बुलाकी नाई बोला, " मालिक! आप मेरी जिज्ञासा शांत करिये कि आखिर उन दोनों के बीच क्या समस्या थी ?"
गंगाराम पटेल बोले, " क्या इसी सवाल के लिए तू इतना उतावला हो रहा था ? सुन :
इस शहर में एक भूतपूर्व पहलवान रहता है, जिसने अपनी जवानी में अच्छे-अच्छे पहलवानों का कचूमर निकाल दिया था । पर जवानी हमेशा नहीं रहती । पहलवान की जवानी भी ढल गयी । उसने अपने बेटे को पहलवान बनाने की पूरी कोशिश की किन्तु पहलवान का बेटा पहलवान नहीं हुआ । हाँ वह पहलवान को दिलासा देता रहता था कि मैंने कल फलाँ शहर में पहला इनाम जीता, और परसों पास के गाँव के पहलवान कटोरीलाल को चित्त कर दिया । बाप हमेशा बेटे को यही समझाता कि खाने-पीने में कुछ कमी लगे तो मुझे बताना पर कभी किसी से दबना मत , जो मेरी इज्जत को दाग लग जाय । लेकिन जो पैसे मुनक्के खरीदने के लिए मिलते थे बेटा उनसे बीड़ी और दारू पी आता । बचते तो कुछ इनाम खरीद लाता ।
छोटा बेटा सब जानता था । लेकिन भाई के डर से कुछ नहीं बोलता था । आखिर बड़ा भाई छोटे भाई पर तो भारी पड़ता ही था और उसे बाप का भी समर्थन था । पर एक दिन छोटे भाई से भी न रहा गया । उसने घर आकर बाप को बता दिया कि, " आज भाई से पास के गाँव का पहलवान चीनीमल एक पेन छीन कर भाग गया । " बाप ने बड़े बेटे को पूछा तो वह साफ मुकर गया कि ऐसा कुछ हुआ था । और छोटे भाई को आँखों ही आँखों में धमकाना चाहा । छोटा भाई बेचारा चुप हो गया । पर बाप को बेटे की पहलवानी पर शक हो गया ।
बस इसी बात पर बड़ा बेटा छोटे बेटे को बाहर जाकर गुस्से में पीट रहा था ।
अरे बुलाकी नाई ! तू कहीं उसे ही तो नहीं देख आया ।"
गंगाराम पटेल की बात सुनकर बुलाकी नाई की घर वापस जाने की इच्छा पर पानी पड़ गया और वह अगले दिन का इंतजार करने लगा !
अनूप जी के आदेश पर :कुछ लोगों को लगा है कि कहीं यह चीनीलाल-चीन, पहलवान-भारत, बड़ा बेटा-सरकार और छोटा बेटा-मीडिया तो नहीं ? हम इसका खण्डन करते हैं । कहानी को मौलिक समझा जाय । इस कहानी को चीनी घुसपैठ से जोड़ कर न देखा जाय ।
विक्रम बेताल की याद दिला दी आपने।
जवाब देंहटाएंbahot hosiyar hai bulaki naai
जवाब देंहटाएंfir bhi uaski akl kaam na aayi
achchha drishtant hai,
तारतम्य तो गजब का है भाई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इसे तो बैताल पच्चीसी की तर्ज पर चलना चाहिए !
जवाब देंहटाएंहमारा नाम भी कथा श्रोता में लिख लीजिए।
जवाब देंहटाएंइस यात्रा के अगले पड़ाव का इंतजार है जी |
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया है. मै भी तो अगले दिन का इंतजार कर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंलाजवाब कहानी है बधाई
जवाब देंहटाएंकहानी खत्म होने पर हम भी अगले दिन का इन्तजार करने लगे हैं.
जवाब देंहटाएंभाई ये ज्ञानी लोग तो समझदार हैं। जरा हमारा समझने के लिये कुछ समझा के लिख दो वर्ना हम समझेंगे कि ब्लाग जगत का कोई किस्सा है और उसको हम बूझ नहीं पा रहे हैं।
जवाब देंहटाएं@ अनूप जी,
जवाब देंहटाएंआदेशानुसार स्थिति को क्लियर कर दिया गया है, किस्सा मौलिक है,
ब्लॉगिंग या चीन से कोई लेना देना नहीं है!
विवेक जी,
जवाब देंहटाएंचुटीले अंदाज में कहा ...आनंद आ गया.
चीनीलाल का मंगनयी का लाल लंगोट भी थोड़े दिन का ही महमां है| बस एक बार लंगोट भाग गई तो नंगे भूत को भागकर कब्रिस्तान में छिपना पडेगा| बड़े भाई नै यो बात न जाने कब समझ आऊगी!
जवाब देंहटाएंआप भी कहां अनूप जी के चक्कर में आ गए...लगे सफाई देने। अजी, हमें तो बहुत मज़ा आया। बुलाकी कथा को पुराण बनने दीजिए....
जवाब देंहटाएंमजेदार..
जवाब देंहटाएंJay Hari har
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