सोचती यूँ क्रिकेट की बॉल ।
" बने क्यों मेरा सदा मखौल ?
हमेशा पिटने को अभिशप्त ।
कभी बल्लेबाज न हो तृप्त ॥
नयी थी तो फेंका था तेज ।
फास्ट बॉलर को था कुछ क्रेज ॥
रगड़कर पहले मारी फूँक ।
दिया फिर मेरे ऊपर थूक ॥
स्विंग करने का उसको शौक ।
विरोधी जिससे जाये चौंक ॥
किन्तु था बैट्समैन फ़र्राट ।
रन लिये दो बॉलों पर आठ ॥
हुये जब ढीले मेरे अंग ।
तभी बदला कैप्टन ने रंग ॥
स्पिनर के हाथों में सौंप ।
बिठाया मेरे मन में खौफ ॥
घूमना, पिटना दोनों साथ ।
कभी यह समझ न आयी बात ॥
लुट चुका मेरा जब सम्मान ।
मैच यह पूरा हुआ महान ॥"
बॉल की संवेदना को भी छू आये आप ! आप महान ! चकरघिन्नी दृष्टि का कमाल है यह ।
जवाब देंहटाएंक्या विलक्षण बुद्धि पाई है आपने, गेंद की दृष्टि से भी सोच लिया.
जवाब देंहटाएंबॉल के सवालो को, उसकी अंतर्वेदना को बखूबी उभारा है.
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी
हर दिन एक नयी खोज और नयी दृ्ष्टी विवेक जी आपकी प्रतिभा कमाल है बेजान चीज़ों मे भी आपके शब्द बोलने लगते हैं बहुत बदिया रखी की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबॉल की हालत के प्रति आपके संवेदना देख मन भर आया.
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन के पावन पर्व की शुभकामनाऐं.
बिल्कुल मौलिक सोच। बहुत सुन्दर।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता पढ़कर बोल पे तरस आ गया |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है | लगे रहिये |
क्रिकेट की बॉल के साथ जब विवेक से होता है तो मैदान नहीं, कविता फतेह होती है!
जवाब देंहटाएंबॉल का दर्द बया हो गया.. क्या बात है..
जवाब देंहटाएंथोड़ा फ़ुट्बाल के बारे मे भी हो जाये।
जवाब देंहटाएंha..ha..ha..majedar poem.Pic. bhi sundar lagai hai ball ki.
जवाब देंहटाएंपाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप
बल्ले के दर्द कब आयेंगे। :)
जवाब देंहटाएंसुंदर अति सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह!
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!
विवेक भाई
जवाब देंहटाएंक्या छक्का उड़ाया है
दर्द गेंदवा का गाया है
कल्पना की पतंगों को
आस्मां से छुआया है
जरा एड्रेस लिख मारों
कि चिठिया एक लिखना है
इस कृति ने विवेक को
बहुत ऊँचा उठाया है
अनूप जी ने बिलकुल सही सवाल किया है !
जवाब देंहटाएंकुछ फ़ुटबाल के ऊपर भी बांचें.
जवाब देंहटाएंइसी को कहते है.. जान डालना..
जवाब देंहटाएंAti sundar.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बढि़या गुगली:)
जवाब देंहटाएंवाकई जान डाल दी आपने क्रिकेट की बॉल में। उधर आपकी चिठ्ठाचर्चा ने भी आजकल ठण्डाती चर्चा में कुछ गर्माहट डाल दी है। दोनो तरफ़ ऊर्जा ही ऊर्जा है। कहाँ से लाते हो जी।?
जवाब देंहटाएंआपकी सोच के नयेपन को सलाम जिसने बाल जैसी निर्जीव वस्तु में संवेदना ढूंढी है आपका कवि बहुत आगे जायेगा.
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