वैश्वीकरण के इस युग में संचार-क्रान्ति ने सारे विश्व को ही एक गाँव बनाकर रख दिया है । अब वसुधैव-कुटुम्बकम की भारतीय अवधारणा जहाँ सच होती नज़र आ रही है, वहीं दूसरी ओर इसे बिडम्बना ही कहा जाएगा कि भारतीय समाज खुद बिखराव की ओर अग्रसर दिख रहा है । बेवजह के क्षेत्रीय और साम्प्रदायिक विवादों ने आम आदमी का जीना दूभर किया हुआ है ।
वास्तव में आज के जमाने में धर्म और राज्य के आधार पर देश को बाँटने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी है । देश को सूबों में बाँटकर राजकाज को आसान बनाने की आवश्यकता मध्ययुग में थी । आज जब पल भर में सूचना विश्व के कोने कोने में पहुँच रही है तब राज्य किसलिए ? क्या जनपदों अथवा मण्डलों में विभाजन ही पर्याप्त नहीं ?
इसी तरह यदि हमारा देश वास्तव में धर्म निरपेक्ष है तो देश का हर नागरिक धर्म और जाति से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए । हिन्दू कानून अलग, मुसलमान कानून अलग ऐसा क्यों ?
अब जब हर नागरिक को अलग पहचान नम्बर देने की बात की जा रही है और सबकी आर्थिक स्थिति का रिकॉर्ड रख पाना भी कोई मुश्किल कार्य नहीं रहा । ऐसे में जाति को आधार बनाकर सब लोगों को गाय-भैंस की तरह हाँकने से क्या फायदा ?
क्या हमारे राजनेता देश को वाकई आगे ले जाना चाहते हैं ?
हिन्दू कानून अलग, मुसलमान कानून अलग ऐसा क्यों ?"
जवाब देंहटाएंआपका यह प्रश्न सिद्ध करता है कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है ही नहीं। धर्मनिरपेक्ष शब्द तो एक धोखा है जिसे नेताओं ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये गढ़ा है।
मुझे नहीं लगता कि आज देश के किसी नेता के सामने इस तरह का कोई लक्ष्य भी है...
जवाब देंहटाएंमुझे तो राजनेताओं की नियत खोटी लगती है
जवाब देंहटाएंप्रश्न जायज है पर उत्तर कौन देगा. वोट की राजनीति मे तुष्टिकरण भी तो जरूरी है
जवाब देंहटाएंआधार आर्थिक क्यों नहीं हो सकता यही सवाल हमें भी परेशां करता है
जवाब देंहटाएंआखिर जाति, धर्म और क्षेत्र कब तक हमें हांकते रहेंगे
आपसे किसने कहा कि नेता देश को आगे ले जाना चाहते हैं ??? असली नेता वही है जो देश के सहारे खुद आगे जाए ! देश जहाँ है वहीँ ठीक !
जवाब देंहटाएंवैसे कोड़ा जैसे दस-बीस नेताओं पर देश ने अगर भरोसा किया होता तो आज अमेरिका को रुपया हम दे रहे होते :)
"क्या हमारे राजनेता देश को वाकई आगे ले जाना चाहते हैं ?"
जवाब देंहटाएंएक हास्यस्पद प्रश्न ६२ वर्ष बाद :)
क्या हमारे राजनेता देश को वाकई आगे ले जाना चाहते हैं ?आप का चुटकला बहुत अच्छा लगा, अजी आज सभी छोटे छोटे देश मिल कर बडे हो रहे है, छोटे छोटे राज्य मिल कर बडे हो रहे है.... ओर हमारे नेता बडे बडे राज्य को वोटो के लिये छोटे छोटे टुकडो मे बांट रहे है, जात पात मै बांट रहे है, धर्म मै बांट रहे है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही आप ने.
धन्यवाद
वे सिर्फ खुद को आगे ले जाना चाहते हैं!
जवाब देंहटाएंpooree vasudha ka dhan utha kar apne kutumb me bhar rahe hain, vasudhaiv kutumbakam ka isase badhiya praman aur kya chahie?
जवाब देंहटाएंआपको ऐसे परेशानकुन प्रश्न पूछने की आदत है जिसका उत्तर आप भली भाँति जानते हैं।
जवाब देंहटाएंबहरहाल, प्रश्न करते रहना भी जरूरी है। शुक्रिया।
बिलकुल नहीं जी ये कैसे हो सकता है कि नेता और देश को आगे ले जायें ? त्रिपाऋही जी ने सही कहा है शुभकामनायें
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