ब्लॉगजगत में हर कोई चाहता है कि उसका चिट्ठा अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढा जाए और खूब टिप्पणियाँ मिलें । तभी तो सोना लिखने वाले भी चोरी की चिंता के बावजूद अपना सोना ब्लॉग पर लिख मारते हैं । लाख ताला लगाएं पर चोर हैं कि उनके भी ताऊ हैं . वो चुनौती से चोरी करते हैं ( वैसे इसके लिए डकैती शब्द ज्यादा उपयुक्त होगा . भाई डकैती शब्द पर जिसका कॉपीराइट हो हमें क्षमा कर दें . इसीलिए कोष्ठक में लिखा है . आखिर हम भी ब्लॉग पुलिस से डरते हैं , क्या पता रंगे हाथों धर दबोचे तो सीधा एनकाउण्टर ) ।
किंतु एक आम समस्या यह आती है कि यहाँ जो लोग टिप्पणी करते हैं वे खुद भी ब्लॉग लिखते हैं, टिप्पणियाँ उन्हें भी चाहिए । और इस तरह सौदा बराबरी पर ही छूटता है कि भई इस हाथ दे और उस हाथ ले । यहाँ पर जो तथाकथित ब्लॉग मठाधीश हैं वे भी इस सार्वभौमिक सत्य के अपवाद नहीं हैं . इनमें दो-एकाध ही इतना पानी रखते हैं जो एक महीने बिना टिपियाए टिक सकें . अन्य सब हफ्तों में पब्लिक का पानी भरते नज़र आएंगे . हम जैसों की तो खैर चर्चा ही मत करिए . सेकिण्डों में निपट लेंगे .
पर सोचिए अगर कोई सेल्समैन आपके दरवाजे पर आकर आपसे कहे कि हमारी कम्पनी ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर लॉन्च किया है जो आपकी तमाम मुश्किलें आसान कर देगा । बस इसे अपने कम्प्यूटर में इंस्टॉल कर लें फिर कमाल देखें . यह ब्लॉग एग्रीगेटर से ब्लॉग पढेगा और यथायोग्य टिप्पणियाँ आपकी सेटिंगानुसार आपके नाम से भेजता रहेगा . तो शायद आप पहले तो भरोसा ही न करेंगे और जब सुबूत के बिना पर आपको भरोसा होगा तो तुरंत ऐसा सॉफ्टवेयर प्राप्त करने के लिए उतावले हो जाएंगे . मगर रुकिए; हम आपको आगाह कर दें कि ज्यादा खुशफहमी ना पालें . क्योंकि यह कोई खुशी की बात है ही नहीं . इसकी खुशी आपको तभी मिलेगी जब यह सॉफ्टवेयर सिर्फ और सिर्फ आप ही के पास हो . वह भी शुरू शुरू में . तत्पश्चात आपको मिलने वाली खुशी गुजरते समय की समानुपाती दर से कम होती जाएगी । समझ लीजिए यह सॉफ्टवेयर सबको मिल जाय तो टिप्पणी की वैल्यू तो रुपए से भी नीचे गिर जाएगी . हर टिप्पणी को जाँचने की कवायद होगी कि नेचुरल है या आर्टिफिसियल ? टिप्पणी पहचानने वालों की दुकानें चल निकलेंगी . जिस तरह हीरे की परख जौहरी करता है . हो सकता कि टिप्पणी की परख करने वाला भी कोई टौहरी होने लगे .
चलिए जाते जाते आपको बता ही देते हैं कि ऐसा सॉफ़्टवेयर सचमुच ब्लॉगजगत में पदार्पण कर चुका है और चल रहा है ।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपको ईजाद करने वाले और उपयोग में लाने वालों का नाम बता देंगे . तो इतने लल्लू हम हैं नहीं । इतना सब फ्री-फॉण्ड में बता दिया यह कम है क्या ?
आप खुद ही गेस करिए . हो सकता है कि आपके बगल वाला ब्लॉगर ही इसे डाले बैठा हो . और यह भी आशंका है कि यह आपको छोडकर सबके पास हो . और सिर्फ आप ही लल्लू हों .
लेकिन फ़िर बांलगिंग का मजा कहा रहे गा??? यह तो वोही बात हुयी की, नेट पर हम ने हवन करवा लिया, बस पुजा हो गई.
जवाब देंहटाएंलगता है, इस पोस्ट पर अभी उसने काम करना शुरु नहीं किया। वरना अब तक तो...
जवाब देंहटाएंवैसे सच तो भगवान् जाने, बाजार जो न करवा दे. हर आदमी को, हर चीज को बिकाऊ और खरीदार- दुकानदार बना देता है। कोई कल को sms सर्विस भी निकल आएगी जो किसी के बिहाफ़ पर कुछ भी कर दे। अभी तक तो तरह तरह के हथकंडॆ ही अपनाते लोग दीखते है। वैसे आसान तरीका है कि पोर्नोग्राफ़ी क्यों न लिखने लगें। खूब रेटिंग बढ़ेगी, खूब रैंक बढ़ेगा, खूब विज़िटर बढ़ेंगे। नुस्खे और भी हैं। कुछ इंटरनेशनल व सार्वभाषिक हैं और कुछ अभिजात्य बने रहते हुए भी हैं। कई प्रकार का वर्गीकरण है।
वैसे कह सकते हैं कि अगर नुस्खे आते तो लोग मुझे टिप्पणियाँ पाने के लिए सार्वजनिक मंचों पर सीख थोड़े देते... यानि अपुन तो पब्लिकली फ़ेलीयर ठहराए जा चुके हैं। इसलिए क्या कहेंगे हम..
जवाब देंहटाएंहाँ, ऎसा साफ़्टवेयर तो था, पर मैंने ही गंभीरता से नहीं लिया..
देखिये, अभी भाई समीर लाल जी 'उड़नतश्तरी वाले' को ट्रेस करना आरंभ करता हूँ !
इंडिया आकर ऎसा उड़न-छू हुये कि बात करना दुर्लभ है !
सचमुच ऐसा कुछ चल रहा है इसमें कोई शक की बात नहीं है. मगर क्या फर्क पड़ता है? जब टिप्पणी लिखने के भी पैसे मिलने लगेंगे तब ज़रूर इस क्षेत्र में भी धींगामुश्ती होगी. जब धर्म का पैसे से सम्बन्ध नहीं था, साधू जंगलों में नंगे पाँव घुमते थे मगर आज सेलफोन, मर्सिडीज़, निजी जहाज़ और कब्जे की ज़मीनें, बहुत बड़ा व्यवसाय है बाबागिरी का. शायद ऐसे ही कई टिप्पणी बाबा भी प्रगट हो जायेंगे!
जवाब देंहटाएंलगता तो है लेकिन झकास आईडिया है टिप्पणी सॉफ्ट वेअर .अगर कही है तो डाउनलोड करवा दे . जिससे हम भी लल्लू जेंटल मेन हो जाए
जवाब देंहटाएंमुझे याद पड़ता है ऐसी एक जुगत आयी तो थी और तब काफी सनसनी फैली थी पर खोजबीन के बाद मामला टाय टाय फिश हो गयाथा और अब आप फिर किसी ऐसी जुगत की चर्चा कर रहे हो विवेक भाई ! काहें को सुबह सुबह खाली पीली परेशान करने पर तुल गए हो !
जवाब देंहटाएंsochne wali bat hai
जवाब देंहटाएंविवेक जी एसा सोफ्टवेयर तो न आए तो ठीक है | ऐसे सोफ्टवेयर की टिप्पणियों से बिना टिप्पणी ही रह लेंगे | पिछले दिनों घोस्ट बस्टर जी ने तो बाकायदा एसा सोफ्टवेयर लाँच भी कर दिया |
जवाब देंहटाएंसोफ्टवेयर की टिप्पणी में वो मज़ा कहां होगा , जो इनमें है । ट्राय करके देख लें ..। फ़िर वही होगा लौट के लल्लू ओरिजनल टिप्पणियों पर आए ।
जवाब देंहटाएंदेखो भाई विवेक जी , आपने पहले तो डकैती शब्द पर डकैती डाल दी ! ये सीधा कापी राईट का ऊलन्घन है ! इसके हरजाने का नॊटिस द्विवेदी जी द्वारा भिजवा रहा हूं ! :)
जवाब देंहटाएंऔर भाई टिपणि तो जो लठ्ठ और भैन्स से करने मे मजा आता है वो साफ़्ट्वेयर वाली मे कहां आयेगा ?
राम राम !
मेरी राय में क्यों न सब लल्लू ही बन जाएं
जवाब देंहटाएंबातों बातों में बहुत बातें कह गये विवेक जी...:)
जवाब देंहटाएंये पोस्ट तो ठीक है, पर सॉफ्टवेयर का पता चले तो बताइयेगा।
जवाब देंहटाएंआज के युग में कुछ भी असंभव नहीं है।
जवाब देंहटाएंपर एक बात तो आप भी मानेंगे कि समय के साथ बदलाव जरूरी है। नयी तकनीक में अच्छाईयां हैं तो कुछ कमियां भी हैं। इस विषय पर तो पूरा पन्ना भर जायेगा पर देखिये न --
सिल-बट्टे की चटनी और मिक्सी की चटनी के स्वाद में फर्क होता है। (अब कोई यह ना पूछ ले कि यह सिल-बट्टा क्या होता है)
टेप बजा कर हुई आरती कुछ अधूरी क्यूं लगती है।
दुर्गम तीर्थों की यात्रा, वाहनों की बजाय पैदल पूरी करने से मन में एक संतोष क्यों भर जाता है।
इसका नाम मांसिक हलचल साफ्टवेयर रखा जाये। ज्ञानदत्त जी को अब तक 9000 टिप्पणियाँ मिली है। पर कोई ये न पूछे कि इतनी टिप्पणी पाने के लिये उन्हे कितनी टिप्पणी करनी पडी, नही तो दिल टूट जायेगा। वैसे हमने पता लगाया है -- उन्होने 45,000 टिप्पणियाँ की दूसरे के ब्लाग मे तब जाकर उन्हे 9000 मिली। वैसे वे रेल अफसर न होते तो ब्लाग मे कोई झाँकता भी नही। पद की महिमा ही ऐसी है।
जवाब देंहटाएंलगता है कि कापीराइट का आतंक सभी ओर छाया हुआ है। भाई विवेकजी, फौरन पेटंट करा लीजिए। क्या पता कौन चोर अपने ब्लाग की एंट्री बना दे :)
जवाब देंहटाएंविवेक जी बहुत बढ़िया सॉफ्टवेयर है! लेकिन हम तो लल्लू ही सही हैं।
जवाब देंहटाएंऐसा ‘सॉफ्टवेयर’ [मानक हिन्दी -> प्रक्रिया सामग्री:)]कोई लल्लू ही बनाएगा। जिसका केवल लल्लू ही इश्तेमाल करेंगे। आपने भी शक का कीड़ा छोड़कर उथल-पुथल मचा दी है। लेकिन ब्लॉगर लोग इतने लल्लू भी नहीं हैं कि इसके झाँसे में आ जाँय...। समझे ल...
जवाब देंहटाएंऐसा साफटवेयर हमारे कुछ काम का नहीं, क्योकि खुद से पोस्ट पढने और टिप्पणी करने का आनंद कुछ अलग ही है।
जवाब देंहटाएंअब सही सही तो आप ही
जवाब देंहटाएंबताएँगे किकितने लल्लू मिले.
जब तक दुसरा ना समझ पाये
तो परदे के अंदर सभी लल्लू हैं.
भाई विवेक, लगता है वो सोफ्टवेयर आपने ही लगा लिया है, आज तो आप पर टिप्पणियों की भरमार हो रही है. आपके पास वो उल्टा काम कर रहा है. आपकी टिप्पणियाँ तो कहीं जा नहीं रहीं, उल्टे आप पर ही आ रही हैं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंये पंक्ति खास पसंद आई...
"यहाँ जो लोग टिप्पणी करते हैं वे खुद भी ब्लॉग लिखते हैं, टिप्पणियाँ उन्हें भी चाहिए । और इस तरह सौदा बराबरी पर ही छूटता है"
हा हा भाई विवेक,
जवाब देंहटाएंआप भी ना, किसी न किसी बहाने फ़ंसा ही देते हैं सबको. कलात्मकता यही है आपकी. वाह !
Nabj pakdi aapne to..
जवाब देंहटाएंguptasandhya.blogspot.com
अरे भाई इ सॉफ्टवेर हम बहुत दिनों से ढूंढ़ रहे हैं :-)
जवाब देंहटाएंआज आशीष खंडेलवाल जी की पोस्ट पर इसका लिंक लगाना बहुत बढिया रहा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह वाह बहुत बढि़या पोस्ट। लिंक देकर सही किया भाई विवेक।
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