यह कहानी उस कुएं की है जो काफी पुराना था । कुएं में पानी की कोई कमी न थी । जितना पानी खींचा जाता उतना ही धरती उसमें भर देती । कुएं में मेंढक भी काफी संख्या में थे । कुछ मेंढक कभी कभार बाल्टी में बैठकर कुएं के बाहर की दुनिया देख लेते थे । बाकी टीवी और रेडियो पर देश दुनिया के समाचार देख-सुन लेते ।
कुएं की खोंतरों में कुछ चिड़ियों ने भी अपने बसेरे बना लिए थे । सब जीव-जन्तु बड़े मेलजोल के साथ रहते थे । किन्तु जब से कुएं में वोट की बीमारी ने प्रवेश किया तो कुछ मेंढक नेता बन गए । जहाँ नेता हों वहाँ नारा न हो यह भला कैसे हो सकता था । नारे की खोज की गयी । कुछ मेंढकों को सूझा कि कुआँ तो मेंढकों का है । यहाँ चिड़ियों का क्या काम ? यहाँ अगर चिड़ियों को रहना है तो उन्हें टर्र टर्र करना आना चाहिए । लिहाजा उन्होंने नारा बनाया :
मेंढक, चिड़िया, साँप, छँछूदर, या हो कोई बर्र ।
इस कुएं में रहना हो तो, कहना होगा टर्र ॥
आगे की कहानी इतिहास है ।
Wah ! Kya gazab vyang hai!
जवाब देंहटाएंटर्र
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ कर जो मेरी हंसी छूटी है वो अभी तक नहीं रुकी...कमाल की सोच और भाषा...आप सच में जिनिअस हो
जवाब देंहटाएंनीरज
मेढ़कराज की टर्र हो!
जवाब देंहटाएंकहीं इस कुंए का नाम मुंबई तो नहीं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
कभी ना कभी तो सेर को सवा सेर मिलेगा ही। इतिहास गवाह है।
जवाब देंहटाएंtarrrrrr tarrrrr
जवाब देंहटाएंसर्वे यत्र प्रणेतार:, सर्वे पंडितमानिन:
जवाब देंहटाएंसर्वे प्राथभ्यं इच्छितं, तद वृंदम हिआशु नश्यति।।
अरे विवेक भाई .....मुझे पता नहीं क्यों लगा ...आप ब्लोग्गिंग की बातें कर रहे हो ....यार मैं भी न कुछ समझ नहीं पाता ठीक ठीक ...है न
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
सही है। ...टर्र!!!
जवाब देंहटाएंनारा पढ़कर तो आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंसच है विवेक भाई...
जवाब देंहटाएंतो आज कल रोज़ ही पोस्ट लिख रहे हैं मै भी कहूँ ये टर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र की आवाज कहाँ से आ रही है गहरा व्यंग शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजनवरी महिन्ने में सात पोस्ट, मुझे एक भी फ़ीड तक ना मिली ।
अरे टिप्पणी न देता तो क्या, पढ़ने पे रोक थोड़ेई है ?
बाकी मेरा सस्नेह टर्र ! ओके, टर्र टर्र !
Gajab yar Gajab
जवाब देंहटाएंmain
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DHANYAVAAD
SHIV RATAN GUPTA
09414783323