सोमवार, सितंबर 06, 2010

63 वर्ष कम नहीं होते

आजकल नारी के अधिकारों की दुहाई देने वालों की कोई कमी नहीं है । बहुत बातें की जाती हैं नारी उद्धार को लेकर, नारियों के लिए आरक्षण और न जाने क्या क्या । किन्तु अभी तक नारी को वास्तव में पुरुष की बराबरी करने लायक सैद्धान्ति रूप से भी नहीं माना गया है ।


पुराने जमाने में पति स्वामी का पर्याय था और पत्नी सेविका की मूर्ति । आज दावा किया जाता है कि पति और पत्नी में केवल पुर्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद है । लेकिन यह सच नहीं है पत्नी होना आज भी सम्मान की बात नहीं है । आज भी पति शब्द स्वामी का पर्याय है । जबकि पत्नी शब्द का अर्थ अभी भी स्वामिनी नहीं होता । इसीलिए तो जैसे किसी पुरुष के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपति कहा जाता है वैसे एक स्त्री के राष्ट्राध्यक्ष बनने पर उसे राष्ट्रपत्नी नहीं कहा जाता ।


जिस दिन ऐसा होगा तब पुरुष और स्त्री सही अर्थों में बराबर कहलाएंगे ।


यही हाल जातिवाद के बारे में है । जातियों में विभाजन की बात तो समझ में आती है । पर किसी जाति को उच्च जाति माना जाता है और उस जाति के व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से बुलाए जाने में गर्व महसूस होता है । जबकि कुछ जातियों को निम्न जातियों का तमगा मिला हुआ है और बाकायदा कानून हैं कि उस जाति वाले व्यक्ति को जाति सूचक शब्दों से सम्बोधित नहीं किया जा सकता । मजे की बात तो यह है कि जिस प्रकार हम अपना धर्म बदल सकते हैं उसी तरह हम अपनी जाति नहीं बदल सकते । निम्न जाति वाले को नीच कहलाने से छुटकारा तभी मिल सकता है जब वह अपना धर्म ही बदल ले । वास्तव में तो तब भी नहीं मिलता ।


जब तक किसी को अपनी पहचान बताने में शर्म महसूस होती रहेगी तब तक कैसे हम एक बराबरी वाले समाज की रचना कर पाएंगे भला ?


इस बारे में हमारे नीति नियन्ताओं की कोई स्पष्ट नीति है ही नहीं । बल्कि वे तो समाज में ऊँच नीच और स्त्री पुरुष के भेदभाव को बनाए रखना ही चाहते हैं । अन्यथा जाति आधारित जनगणना की माँग न की जाती और अब तक आरक्षण भी आर्थिक आधार पर लागू हो गया होता । 63 वर्ष कम नहीं होते ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. "नीति नियन्ताओं की कोई स्पष्ट नीति है ही नहीं "

    बहुत स्पष्ट नीति है जी - वोट बैंक की निति :)

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  2. Sadiyon ke hisaab se 63 warsh to kuchh bhee nahee...purush sattak samaj wyawastha hai,tab tak naree duyyam hee rahegee...samanta aane me abhi kayi dashakon ka samay hai.

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  3. ये नीति निर्धारित करने वाले सब एक ही चश्मा पहनते होंगे।

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  4. किससे क्या अपेक्षा रखें...............
    समाज है बस यूँ ही चलता रहेगा बुराइयों के साथ, ठोकरों के साथ , दंश के साथ..................

    साल दर साल बिताते रहेंगे.............और हम न सुधरेंगे.............


    चन्द्र मोहन गुप्त

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