कर्क वृत्त वाले यूँ ताकत
ताके, जैसे चाँद चकोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
तुम्हें मकर वालों की चिन्ता
किन्तु हमारा हक है छिनता
कोई वहाँ तुम्हें है गिनता ?
वहाँ पर हो जाओगे बोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
वहाँ गये तो पछताओगे
जाकर वहाँ लात खाओगे
वापस लौट यहीं आओगे
मकर वाले हैं अति लतखोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
वहाँ सुरक्षित रह न सकोगे
उस धारा में बह न सकोगे
हाल स्वयं का कह न सकोगे
कष्ट का कोई ओर न छोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
तुम बहकावे में मत आओ
मसला बैठ यहीं सुलझाओ
क्या दिक्कत है हमें बताओ
बड़े हो तुम अब नहीं किशोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
हमसे यूँ मत रूठो संगी
बातें करो न ये बेढंगी
साथ सहेंगे सब सुख-तंगी
हम, इस बगिया के मोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
तेज धूप भी हमने झेली
रहे झुलसते हम सब डेली
फिर भी सदा सीख तुमसे ली
उठाओ मत यह कदम कठोर
न जाओ मकर वृत्त की ओर
ताके, जैसे चाँद चकोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?
नियमित खगोलीय घटना पर अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंकष्ट का कोई ओर न छोर
जवाब देंहटाएंतो फिर कहां है अपना ठौर??????
ये ‘कर्क’ और ‘मकर’ में का अन्तर भवा भाई...?
जवाब देंहटाएंपहली बार आपकी कविता कछू ना समझ में आई:(
कौन मकर... कैसा मगर... कहाँ गया.. कहाँ जा रहा है...
जवाब देंहटाएंबात ज़रा ख़ुलकर के कह दो
जवाब देंहटाएंइंगित किया कहाँ किस ओर ?
जिसको मकर वृत्त हो कहते
उस पर जाती कर्क की डोर !
जुगराफ़िया कहाँ कमज़ोर ?
पुनि-पुनि देखो चहुँ-चहुँ ओर !!
हा हा।
खै़र।
बहुत उम्दा कटाक्ष, विवेक भाई। ग़ज़ब लिखा आपने, भाई।
मुझे पहिले से मालूम हवा की विवेक भइया गगनविहारी भी हौवें !
जवाब देंहटाएंई क्या भाई! कल रात अरविन्द मिश्र जी कुछ लिखे ऊ न बुझाया और अब तुम! सब रहस्यवाद की तन्ख्वाह पा रहे हो का आजकल!
जवाब देंहटाएंक्यों ना जाये मकर वृत्त की ओर.. वहां कोई ब्लोगर सम्मलेन हो रहा है क्या...??
जवाब देंहटाएंhasy vyang saralata se vilay hote dekhe aapakee rachana me. kitanee aasanee se kar lete hai mushkil aasan ? badhai !
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