हमरी कविता तुकबन्दी है , उनकी गज़ल कहाए ।
भेदभाव होता कवियों में , कैसी मुश्किल हाए ॥
वो लिख दें कुछ उल्टा सीधा , उसको व्यंग्य कहेंगे ।
हमसे अगर गलत लिख जाए , ताने खूब सहेंगे ॥
वो आपत्तिजनक लिखें तो , धन्यवाद पाते हैं ।
हम जो आदरणीय लिखें , तो हडकाए जाते हैं ॥
वो चाहें तो टीप टीपकर , छापें किताब आधी ।
हम जो कॉपी पेस्ट करें तो , बहुत बडे अपराधी ॥
वो ब्लॉगिंग के मठाधीश हैं , उनसे सब डरते हैं ।
लेकिन अपनी क्या बिसात , बस पानी ही भरते हैं ॥
उनको खूब टिप्पणी मिलती , लाइन लगी रहती है ।
लेकिन यहाँ टिप्पणी देवी , रूठी ही रहती है ॥
लेकिन यार कहे देते हैं , हम तो गज़ल कहेंगे ।
डटे रहेंगे आक्षेपों की , धारा में न बहेंगे ॥
लेकिन यार कहे देते हैं , हम तो गज़ल कहेंगे ।
जवाब देंहटाएंडटे रहेंगे आक्षेपों की , धारा में न बहेंगे ॥
" ha ha ha this is the spirit gental man, keep it up"
regards
वह यह है दम ख़म !
जवाब देंहटाएंभाई साहब, हमारा क्या है, आप धमकाओगे तो आपकी तुकबंदी को भी ग़ज़ल कह देंगे. ये वाली तो अच्छी-खासी ग़ज़ल है. आपकी तारीफ़ में यह ताज़ा-ताज़ा हरयाणवी शेर लिखा है, हमारी ओर से मुलाहिजा फरमाएं:
जवाब देंहटाएंकमी नहीं थारी कविता में, समझ अधूरी म्हारी सै
भावों को न समझ सकूं मैं, यो मजबूरी म्हारी सै
ग़ज़ल -सज़ल -हज़ल जो चाहे कहिये... अधिकारिक रूप से कविता के मालिक आप ही रहेंगे.
जवाब देंहटाएंखूब व्यंग्य कसे हैं..बढ़िया है.
पढ़कर याद आ गया -
जवाब देंहटाएंवो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नही होती, हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
बहुत सही लिखा है लेकिन जरा 'वो' को थोड़ा खुलकर बतायें, आखिर पता तो चले 'वो' के पीछे कौन कौन छुपा है ;)
विवेक जी, इशारा किधर-किधर है. मुझे तो लगता है कि कई पढ़्ने वाले इसे अपने ऊपर ही लेंगे. काश इसे कोई अपने ऊपर समझकर आपको हड़काता - जैसी आपकी ईच्छा रहती है - तो मजा आ जाता.
जवाब देंहटाएंआपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंaapne to kamaal kar diyaa sab ke chake chudaa diye badhaai
जवाब देंहटाएंतुक बंदी में इतना मजा है तो ....... फिर तो लगये रहो ....
जवाब देंहटाएंअगली तुकबंदी का इंतजार रहेगा .
राजीव महेश्वरी
फिकर न करे मुन्ना भाई मंत्री आप को ही बनायेगे!
जवाब देंहटाएंलेकिन भाई 'वो' का इशारा किस तरफ है भाई!
वो ब्लॉगिंग के मठाधीश हैं , उनसे सब डरते हैं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन अपनी क्या बिसात , बस पानी ही भरते हैं ॥
यह सबसे बढ़िया लगी ...बढ़िया तुकबंदी है
वो चाहें तो टीप टीपकर , छापें किताब आधी ।
जवाब देंहटाएंहम जो कॉपी पेस्ट करें तो , बहुत बडे अपराधी ॥
.........
लेकिन यार कहे देते हैं , हम तो गज़ल कहेंगे ।
डटे रहेंगे आक्षेपों की , धारा में न बहेंगे ॥
एकदम सही . धारा में क्यो बहे.
datte rahe
जवाब देंहटाएंdara me kyo bahen
right dear
उनको खूब टिप्पणी मिलती , लाइन लगी रहती है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ टिप्पणी देवी , रूठी ही रहती है ॥
lo ab to tippani devi apse nahi ruthi hai na.
आईला !
जवाब देंहटाएंक्या गजल है .....इरशाद इरशाद !
क्या कहु जी अपना भी दुख यही है..
जवाब देंहटाएंबंधु यह तो हमारा भी दुख हैं। वैसे खूब कही आपने भी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं---
आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
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bahut badhiya vivek ji
जवाब देंहटाएंएकदम मस्त । :)
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ टिप्पणी देवी , रूठी ही रहती है ॥
जवाब देंहटाएंविवेक जी, ऐसा मत कहो, जब तक मैं हूँ चिंता मत करना.
विवेक भैय्या मत घबराना
जवाब देंहटाएंतेरे पीछे सारा जमाना
हमारे यहाँ तुकबंदी को ख्यालगो कहते है आज से विवेक ख्यालगो
विवेक भाई
जवाब देंहटाएंमुझे तो आपका ब्लॉग मिला ही आज है
व्यंग्य
और वो भी इतने परिपक्व काव्य में!
बहुत खूब...!
'टिप्पणी देवी' ने हमें हड़काया है की बिना टिपियाये मत जाना नहीं तो टिपण्णी के लाले पड़ जायेंगे :-)
जवाब देंहटाएंbhaut badhiya vivek jee..mast tukbandi....
जवाब देंहटाएंये लो छब्बीसवीं टिप्पणी। खुश?!
जवाब देंहटाएंविवेक जी क्या खूब लिखा है। मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंआपको तो मालुम है टिप्पणियों की हकीकत,
जवाब देंहटाएंफिर भी दिल को खुश करने के लिये मांग अच्छी है।
"लेकिन यहाँ टिप्पणी देवी , रूठी ही रहती है ॥"
जवाब देंहटाएंई तो आप गलत कह दिये जी।
हम तो यही कहेगें कि "लगे रहो विवेक भाई"
भाई विवेक,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी सब बात अच्छी पर क्रोध बुरा है । ये सब छोड़ो यार लो ख़री ख़री । तुम्हारी तारीफ़ भी करना मुश्किल है क्या ? हर बात को उल्टा ही समझने की क़सम खा बैठे हो ? इतने ऊँचे इल्म की सत्यानाशी पर तुले हो । अपने आप को पहचानो विवेक, तुम्हें लोग चाहते हैं भाई । घर की बातें घर में रखो यार, किसी ने तुकबन्द कह दिया तो ग़ज़ल कहो । बतलाने की ज़रूरत किसी और को होगी हमारे प्यारे विवेक को नहीं । तुम में दम है, घबराते क्यूँ हो ? हम सब तुम्हारे साथ नहीं ? और एक बात कहूँ सीधी ? मीठा कह कर कड़्वा पटकना बंद करो । इसका लहजा पलट दो विवेक भाई, मान जाओ यार, तुमसे अपनापन न होता तो न कहता । इतने बेहतरीन कवि, लेखक, टिप्पणीकार और शायर विवेक को यूँ भड़कने की कोई ज़रूरत नहीं ।
---तुम्हारा अपना बवाल
(आप की जगह तुम या तू उसी को कहा जाता है जिससे बहुत अपनत्व हो)
विवेक तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।
जवाब देंहटाएंलगता है कुछ गलतफहमी हो गई है . आप सब का प्यार मुझे मिलता ही है . इसमें कोई संदेह नहीं . पर एक बात साफ कर देनी पडेगी कि यह मैंने कोई सत्यकथा नहीं कही है . बस एक गुमनाम ब्लॉगर की अभिव्यक्ति है या कहें कइयों की अभिव्यक्ति है .
जवाब देंहटाएंमुझे तो आप तुकबन्द ही समझ लें तो काफी है . वैसे मुझे खुद पता नहीं कि तुकबन्दी और गज़ल में क्या अंतर है :)