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गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008
बतलावें मंदा
आसमान पर जा टँगे , सब चीजों के भाव । सस्ते बस शेयर हुए, सब कर रहे बचाव । सब कर रहे बचाव , भूलकर मँहगाई को । देखें शेयर सूचकांक के लो हाई को । विवेक सिंह यों कहें गरीबों को है फंदा । तेज हुई हर चीज मगर बतलावें मंदा ॥
स्वप्नलोक में बैठकर मेरा शिष्य विवेक मंहगाई की बात पर रहा रोशनी फेंक रहा रोशनी फेंक दिखाए सच्ची छवियाँ मंदी का बाज़ार और तेजी की गलियां ऐसे ही भारत की छवि दिखलाते जाओ है मेरा आशीष, नाम तुम खूब कमाओ ...:-) ...:-)
भुखमरी हुई तेज़,रोज़गार है मंदा, कोई जिये,कोई मरे,चल रहा नताओ का धंदा। बहुत बढिया विवेक जी।
जवाब देंहटाएंCool Post, realy nice Vivek
जवाब देंहटाएंबहुत सामयीक और बेहतरीन रचना ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंविवेक जी बहुत सही । चार पक्तियां आम आदमी की व्यथा को बयां कर रही है । धन्यवाद बढिया लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!सही कहा।
जवाब देंहटाएंस्वप्नलोक में बैठकर मेरा शिष्य विवेक
जवाब देंहटाएंमंहगाई की बात पर रहा रोशनी फेंक
रहा रोशनी फेंक दिखाए सच्ची छवियाँ
मंदी का बाज़ार और तेजी की गलियां
ऐसे ही भारत की छवि दिखलाते जाओ
है मेरा आशीष, नाम तुम खूब कमाओ
...:-) ...:-)
वाह......गुरु शिष्य दोनों लाजवाब.दोनों की जय हो.लगे रहो.खूब लिखो,बढ़िया लिखो
जवाब देंहटाएंआसमान पर जा टँगे , सब चीजों के भाव ।
जवाब देंहटाएंसस्ते बस शेयर हुए, सब कर रहे बचाव ।
बेहतरीन...लिखते रहें...
बहुत बढि़या। कम शब्दों में भावाभियक्ति।
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