गुरुवार, जनवरी 22, 2009

स्वयं को करके भी बदनाम

तनिक तो देखो बुश की ओर ।
करो उन पर अन्याय न घोर ॥
देशहित जिसमें आया नज़र ।
न छोडी उसमें कोई कसर ॥
देश हो दुनिया का सिरमौर ।
किये बस वही उपाय कठोर ॥
मान लो चाहे उनको फेल ।
न था पर मन में कोई मैल ॥
शत्रु का जीना किया मुहाल ।
लिया था बिल से उसे निकाल ॥
कभी आने वाला इतिहास ।
करेगा शायद यह आभास ॥
सही थे बुश के सारे काम ।
स्वयं को करके भी बदनाम ॥
राष्ट्र को रखा सदा आश्वस्त ।
स्वयं जूते खाकर भी मस्त !!

27 टिप्‍पणियां:

  1. आप बुश के प्रशंसक कबसे हो गए भाई? चलिए यह भी अच्छा है|जुटे खाकर मस्त रहना सही में जबरदस्त चीज है| खासकर मन में गुस्सा पर जुबान पर दिखाना!!

    जवाब देंहटाएं
  2. सही थे बुश के सारे काम ।
    स्वयं को करके भी बदनाम ॥
    राष्ट्र को रखा सदा आश्वस्त ।
    स्वयं जूते खाकर भी मस्त !!
    प्रेषक: विवेक सिंह

    जय हो सन्तो की. रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  3. aapne kavita to acchi likhi hai,bush ke baare me ,aapka vyang bahut hi jabardast hai, wah

    जवाब देंहटाएं
  4. भाई, बहुत अच्छा लिखा है। बुश को चाहे किसी भी फ्रंट पर पास या फेल करार दिया जाए, उनकी राष्ट्रनिष्ठा पर सवाल नहीं उठा सकते।

    जवाब देंहटाएं
  5. स्वयं जूते खाकर भी मस्त !! :-)

    जवाब देंहटाएं
  6. इसमें हा हा हा नही,

    आपने सही कहा, व्‍यक्ति महात्‍वाकांक्षाओं में सब भूल जाता है रिस्‍ते भी नाते भी और सबसे प्‍यार भी। और फिर शुरू कर देता है बुराई

    जवाब देंहटाएं
  7. समय बलवान है। कुछ महीने बाद ओबामा गलतियां करेंगे तो बुश की याद आयेगी। आपने पहले ही याद कर ली।

    जवाब देंहटाएं
  8. बुश के प्रति आपकी संवेदना की कद्र करता हूं.
    न्यूक्लियर डील के लिये बुश और मनमोहन- दो ही न याद किये जायेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  9. सारी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के बाद भी उस शख्स के कार्य देशहित में कहलायें -तब तो वाकई जय हो!!

    जवाब देंहटाएं
  10. अब कौन करेगा आतंकियों को त्रस्त ?
    सभी दिख रहे ओबामा में मस्त !
    मैं भी हूँ आप ही जैसा बुश परस्त !

    जवाब देंहटाएं
  11. बुश ने अपनी जिद के चलते ये मुकाम हासिल किया. फ़िर भी थोडी बहुत सहानुभूति तो होनी चाहिए उनसे.. जो किया अमेरिकांस की भले के लिए ही सोचकर.. कविता सही वक़्त पर सही शब्दों में प्रस्तुत की गई है..

    जवाब देंहटाएं
  12. सही थे बुश के सारे काम ।
    स्वयं को करके भी बदनाम ॥
    राष्ट्र को रखा सदा आश्वस्त ।
    स्वयं जूते खाकर भी मस्त
    "" जूतों की माया है......"

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह! वाह! आपने अच्छा लिखा.
    रचना सुंदर है. आपने कविता के माध्यम से बिल्कुल खरी बात कही है.
    आपको साधुवाद.

    कभी मेरे ब्लॉग पर पधारें. पता है:
    www.shiv-gyan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  14. ये क्या हुआ आपको? 'सही थे बुश के सारे काम'???
    आम अमरीकियों को सारी दुनिया की घ्रणा का पात्र बना कर और हर पल
    हर जगह किसी न किसी आतंकवादी हमले की दहशत में जीने को मजबूर करने वाले बुश(अमेरिकी साम्राज्यवाद) का ऐसा गुणगान। शान्ति का अगला नोबेल पुरस्कार तो तय समझिये अपने लिये।:)यदि आपने यह सब व्यंग मे कहा है तो ऐसी कठोर टिप्पणी के लिये क्षमा प्रार्थी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  15. जूते खाकर भी मस्त...

    जय जुतों की!!

    जवाब देंहटाएं
  16. जूते खाकर भी मस्त...

    नही भैय्या उनकी बीवी से तो पूछ लो ..

    जवाब देंहटाएं
  17. वाह! वाह! आपने अच्छा लिखा.
    रचना सुंदर है. आपने कविता के माध्यम से बिल्कुल खरी बात कही है.
    आपको साधुवाद.

    कभी मेरे ब्लॉग पर पधारें. पता है:
    www.kushkikalam.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  18. सही थे बुश के सारे काम ।
    स्वयं को करके भी बदनाम ॥
    राष्ट्र को रखा सदा आश्वस्त ।
    स्वयं जूते खाकर भी मस्त !!
    bahut dhar he sahab shabdoan me
    bahut khub

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह विवेक भाई वाह,
    कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
    बुश के बहाने दिल्ली पे जूता ताना
    जय हो वाह विवेक भाई वाह,
    कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
    बुश के बहाने दिल्ली पे जूता ताना
    जय हो वाह विवेक भाई वाह,
    कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
    बुश के बहाने दिल्ली पे जूता ताना
    जय हो

    जवाब देंहटाएं

मित्रगण