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गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008
मंदी का यह दौर
कल तक जो थे ठेलते लम्बे लम्बे लेख । मंदी का यह दौर है जाना उनको देख । जाना उनको देख ,उतर आए दोहों पर । रहा न कुछ कन्ट्रोल यहाँ माया मोहों पर । विवेक सिंह यों कहें शुरू अब दौर नया है । अगर नहीं यह मंदी तो फिर बोलो क्या है ॥
इस तरह की कविता-शैली में आपकी पकड़ बहुत अच्छी है। इस शैली में कोई पुराने कवि भी लिखा करते थे, नाम ज्ञात हो तो हमें भी इस शैली/शैलीकार से परिचित कराऍं।
वाह....वाह.....हर इरशाद के साथ एक नया छंद...क्या कहने.बहुत खूब.अच्छा लिखा है.
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति . बधाई .
जवाब देंहटाएंअच्छा ठेला है :) मंदी में भुनाऐ रहो भाई
जवाब देंहटाएंइस तरह की कविता-शैली में आपकी पकड़ बहुत अच्छी है। इस शैली में कोई पुराने कवि भी लिखा करते थे, नाम ज्ञात हो तो हमें भी इस शैली/शैलीकार से परिचित कराऍं।
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