संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
रविवार, अगस्त 09, 2009
सोचिये, आप किस स्तर पर हैं ?
वैसे तो आजकल किसी के पास इतनी फ़ुरसत बची नहीं कि अपनी व्यस्तता त्यागकर थोड़ा बहुत समय इधर-उधर देख ले . और अगर कभी देख भी ले तो लाँछन तैयार धरे रहते हैं, "ये तो बड़ा घूर के देखता है . " फ़िर भी हमारे कहने से आप अपने आसपास नज़र डाल ही लें और एक सर्वेक्षण करें तो पायेंगे कि यह दुनिया एक टेंशन समुद्र है लोग टेंशन के इस समुद्र में अलग अलग स्तर पर तैर रहे हैं । जो तैर नहीं पा रहे वे नीचे तल में घिसटते हुए चल रहे हैं ।
क्या कभी फ़ुरसत में सोचा है कि ऐसा क्यों है ? जब देखा ही नहीं तो सोच कहाँ से लिया . कोई बात नहीं . नहीं देखा, न सही . नहीं सोचा, न सही . ये दोनों काम हमने आपके लिए कर दिये .
दर असल आत्मा न मरती है न जन्म लेती है . हाँ, अपना शरीर चेंज कर लेती है . पर शरीर चेंज करना कोई घर की पंचायत नहीं कि जब चाहे उठाकर जो शरीर चाहा पहन लिया . एक बार जो शरीर मिल गया उसको निर्धारित समय से पहले छोड़ा नहीं जा सकता . विशेष परिस्थितियों में अगर छोड़ भी दिया तो उसका हिसाब किताब ऊपर चित्रगुप्त के कार्यालय में देना होगा .
यहाँ से जब शरीर छोड़कर आत्मा ऊपर पहुँची तो । बड़ी लम्बी कतार में लगना पड़ेगा । यह कतार केवल उन्हीं के लिये है जिन्हें यमदूत स्वयं आकर लेकर जाते हैं . जो स्वेच्छा से ही शरीर त्यागकर ऊपर पहुँच लिये उन्हें तो कतार में भी जगह नहीं . ऐसे ही भटकते रहना पड़ेगा . जब भटकने का समय पूरा होगा तो आपका आत्मा नम्बर पुकारा जाएगा . ध्यान रहे आपका कोई नाम नहीं रहेगा वहाँ । नम्बर सुनते ही आपको कतार में सबसे पीछे खड़े हो जाना है . अब कतार धीरे धीरे आगे बढ़ेगी . कतार के आगे बढ़ने की गति क्या होगी वह निर्भर करता है धरती पर . स्वर्ग से उसका कोई लेना देना नहीं है . शरीर का निर्माण तो स्वर्ग में नहीं होता . यह तो धरती पर ही होता है . वहाँ से तो बस निर्मित शरीरों की संख्या देखकर आत्माएं भेज दी जाती हैं . उन आत्माओं को पहले से ही सेट करके भेजा जाता है कि किसे किस शरीर में घुसना है . तदनुसार स्वर्ग या नरक में जगह खाली होंगी . और कतार आगे बढ़ेगी . हाँ, तो बात हो रही थी कतार के आगे बढ़ने की . जब आप कतार में बढ़ते बढ़ते चित्रगुप्त की टेबल तक पहुँचेंगे तो आपको देखकर ही ऑटोमेटिक सामने लगी स्क्रीन पर आपका लेखा जोखा आ जायेगा . इसमें पिछली बार इस ऑफिस से जाने से लेकर अब तक का पूरा लेखे जोखे के अनुसार कुछ स्कोर आपको मिलेगा . यह स्कोर बनने के बाद आपके पिछले पाप पुण्य सब डिलीट कर दिये जायेंगे . क्योंकि उनका इवैल्युएशन तो हो ही चुका तो अब ऐसे रिकॉर्ड को रखकर बेकार ही मेमोरी पर लोड क्यों बढ़ाया जाय ?
अब यदि आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो आपका स्कोर प्लस में होना चाहिये और यदि स्कोर माइनस में हुआ तो नरक तो है ही । आपकी सेवा में हमेशा हाजिर । स्वर्ग या नरक में आपकी अवधि पूरी होने के बाद जब आपका स्कोर शून्य हो जायेगा तो आपको पुर्जन्म कार्यालय भेज दिया जायेगा । स्वर्ग में सुखों का उपभोग आप जितनी तेज़ी से करेंगे उतनी ही तेजी से आपका स्कोर भी शून्य की ओर अग्रसर होगा । मसलन आपने रम्भा का नृत्य ज्यादा देर तक देख लिया तो स्कोर बहुत जल्दी धड़ाम हो सकता है । और नरक में ठीक इसका उल्टा है । वहाँ आप जैसे जैसे कष्ट भोगते जायेंगे वैसे वैसे स्कोर शून्य की ओर उठेगा । जैसे ही स्कोर शून्य हुआ , आपको स्वर्ग या नरक से निकालकर पुनर्जन्म कार्यालय भेज दिया जायेगा ।
जिन आत्माओं का स्कोर स्वर्ग या नरक में जाने से पहले ही शून्य था उन्हें सीधे ही पुनर्जन्म कार्यालय भेज दिया जाता है । यहाँ एक विशाल वेटिंग रूम में आपको बिठा दिया जाएगा जहाँ एक बड़ी स्क्रीन पर उपलब्ध शरीरों का ब्यौरा लिखा रहेगा । इस ब्यौरे में सबसे प्रमुख प्रजाति का नाम होता है कि यह शरीर किस योनि का है । जब प्रजाति सलेक्ट कर लेंगे तो अन्य डिटेल्स खुल जायेगें जैसे कि इस शरीर की आयु कितनी है । इसे किस टेंशन लेवल पर सेट किया गया है आदि । जो भी धरती पर भाग्य के नाम से जाना जाता है वह वहाँ पहले से ही निर्धारित रहता है । इसके बाद आत्मा को काउन्सिलिंग के लिये बुलाया जाता है । अगर इस स्थिति में उपलब्ध शरीरों में कोई आत्मा को पसंद नहीं आया तो कोई बात नहीं । अगले बैच का इंतज़ार करने की पूरी छूट रहती है । अगले बैच में उसे सबसे पहली वरीयता मिलेगी । क्योंकि यहाँ पहले आओ, पहले पाओ धारा लागू रहती है ।
आशा है कि अब आपको टेंशन समुद्र के विभिन्न स्तरों का भेद पता चल गया होगा ।
दरअसल आत्मा ने स्वयं ही अपना भाग्य चुना है । इसीलिए कुछ लोग टेंशन समुद्र के ऊपर तैरते रहते हैं, जो कभी डूबते, कभी उतराते रहते हैं । कुछ तल में घिसटते रहते हैं । इनके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ इतना रहता है कि कोशिश करने पर भी ऊपर आने में असफलता ही मिलती है । ऐसे लोगों को हमेशा दुनिया बदलने की चिंता सताती रहती है ।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्होंने काउन्सिलिंग में थोड़ी समझदारी दिखायी थी । वे तो टेंशन समुद्र से दूर ही रहते हैं । कभी कभार किनारे तक गये तो ठीक अन्यथा उन्हें पता ही नहीं रहता कि टेंशन समुद्र है क्या बला ?
अब आप अवश्य ही यह सोच रहे होंगे कि आप किस स्तर पर हैं । सोचिये सोचने में क्या जाता है । हो सके तो लगे हाथ अपने विचारों से कुछ बिचारों को लाभान्वित भी कर दीजिये ।
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मुझे फिर से वापस आना है और अपनी वर्तमान पत्नी (जोर देकर कह रहा हूँ -- वर्तमान अपनी पत्नी !!) से दुबारा शादी रचाना है, क्या करना होगा इसके लिये. आपको एजेंटी मिल गयी है लगता है.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ प्रहेलिका मे से मेरा उत्तर क्यो चुरा लिया?
टेंशन समुद्र और आत्मा की काऊंसलिंग, अगली बात हम ध्यान रखेंगे।
जवाब देंहटाएंअरे, अपना स्तर देख शरम आने लगी. बस ये सोच रहे हैं विवेक बाबा के चरणों में स्थान मिल जाये. कुछ अध्यात्म का ज्ञान हो..कुछ पार लगें.
जवाब देंहटाएंध्यान रखियों और बत्तिय्यो..कब आ जायें. कुछ ज्यादा ऊँची बात हो गई आज आपसे. नींद नहीं आई क्या रात भर?
प्रहेलिका का जबाब घोषित किये बिना अगली पोस्ट लगाना नरक की लाईन में अपना नम्बर सुरक्षित करने जैसा माना गया है ब्लॉगपुराण में. वरना तो हम फंसे रहेंगे.
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसतुति।
जवाब देंहटाएंस्वर्ग नर्क के द्वार से लाइव टेलिकास्ट।
आयी याद विवेक को लगता अपना पास्ट।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
इस आत्मा ने बहुत वितंडावाद मचाया है। सारा संकट ही यह है कि हम आत्मा को शरीर से पृथक समझ लेते हैं। वस्तुतः वह तो शरीर के साथ ही जन्म लेती है और शरीर के मृत होने के साथ ही मुक्त हो जाती है।
जवाब देंहटाएंऐसा करें और यह आप ही कर सकते हैं -ज़रा ब्लागजगत की आत्माओं और शरीरों का आपसी तालमेल बिठायें की किसके लिए कौन सी बाडी /आत्मा मुफीद रहेगी ! एक निजता के भंग के आरोपी आप हो ही चुके हैं ! फिर क्या फिक्र ?
जवाब देंहटाएंवैसे तो आपने व्यंग्य ही किया है .. पर बहुत चिंतन करके लिखा है .. लेकिन आपकी एक बात से सहमत नहीं .. स्वर्ग और नरक कहीं और नहीं .. पृथ्वी पर ही है .. और लेखा जोखा देखकर पृथ्वी पर ही आना पडता है .. स्वर्गतुल्य और नरकतुल्य जीवन भोगने के लिए .. यदि स्कोर शून्य होने के बाद लोग पृथ्वी पर आते तो .. यहां सब एक समान न जीते .. देख नहीं रहें आप .. जैसे जैसे पाप बढता जा रहा है .. दुनियां कष्टों से भरती जा रही है .. सोंच को थोडा परिवर्तित करके आगे एक गंभीर लेख लिखें .. नहीं तो फिर यह काम मुझे ही करना पडेगा .. वैसे इस ब्लागिंग का स्कोर मायनस में होता है कि प्लस में .. सबको जरूर बता दें ।
जवाब देंहटाएंजय हो बाबा विवेकानंद की. भाई देखो हमको डराया मत करो. यमराज जी से हमारी सीधे रिश्तेदारी है वाया चंपाकली. अगर किसी को उनसे डर लगता हो तो हमारे पास भेज दो..हम ले देकर फ़ैसला करवा देंगे.. और आपका कमीशन भी पक्का. ये पोस्ट भी क्या उसी श्रंखला का हिस्सा है?:)
जवाब देंहटाएंरामराम
जय हो गुरूवर्।
जवाब देंहटाएंबडे एक्सपिरियन्स की बात बताई विवेकबाबा ने! लगता है घूमघाम के आए हैं। चित्रगुप्त या यमराज से इंटरव्यूव लिया कि नै:)
जवाब देंहटाएंअरे आप तो बाबा बन गए यार...!!!!
जवाब देंहटाएंयह परलोक रेलवे स्टेशन छाप कोई जगह लगती है।
जवाब देंहटाएंआजकल जमाना ही बाबागिरी का है. चलो और एक बाबा का अवतरण हुआ जनता के कल्याणार्थ..अभी तक बाबा समीरानंद..बाबा ताऊ आनंद ही थे अब बाबा विवेकानंद भी प्रगट भये।:)
जवाब देंहटाएंजय हो एम राज की. बात पते की है आपने. आज अपना रिकार्ड खंगालता हूं.
जवाब देंहटाएंजय हो बाबा विवेकानंद की !
जवाब देंहटाएंभाई बिलकुल सही लाइन पर जा रहे हो बाबागिरी पर . कोई सही शरीर हो तो बताना आत्मा ट्रांसफर करने की सोच रहे है इसी शताब्दी में .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर........
जवाब देंहटाएं्फुरसत से आता हूँ...
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ कर सोच ही बंद हो गई है:))
जवाब देंहटाएंआध्यात्म की इतनी रोचक प्रस्तुति..स्वर्ग और नरक तो यहीं धरती पर नजर आ जायेंगे..ना माने तो आस पास नजर डाल कर देख लें..
जवाब देंहटाएंचित्रगुप्तजी..कुछ ले दे कर यहाँ भी आरक्षण प्रारंभ कर लीजिये..plzzzzz..!!
दर्शन का बोध हो रहा है आपकी इस पोस्ट में..
जवाब देंहटाएंविवेक भाई आप अपना स्तर बता दो, हम उसी से compare कर के पता कर सकते हैं की अपुन किधर है |
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