सोमवार, सितंबर 22, 2008

विधाता को यही मंज़ूर था

एक बार किसी सुनसान राह पर कुछ अनजान लोग चले जा रहे थे । भादों का महीना था । आसमान में घने काले बादल थे और रह रह कर बिजली का चमकना सबको सहमा रहा था । अचानक तेज वर्षा की झडी ने कुछ लोंगों को पास ही स्थित एक छोटे मंदिर में शरण लेने को विवश कर दिया । वे सात लोग थे और मंदिर में मुश्किल से ही समा रहे थे । पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था । बिजली बार बार चमकती और हर बार लोगों को अपने पास आग की लपट का अहसास होता । बडी विकट स्थिति थी । जान के लाले पडे थे । सभी किंकर्तव्यविमूढ थे । तभी उनमें से एक बोला ," साथियो लगता है बिजली हम में से किसी की बलि लेना चाहती है । एसा न हो कि किसी एक की आई में सब मारे जाएं । इसलिए बेहतर यही होगा कि एक-एक कर सभी मंदिर से बाहर जाकर एक परिक्रमा करके वापस आजाएं । जिसकी आई होगी उसी को बिजली ले जाएगी ।"
सहमति हो गई . जिसने यह सुझाव दिया था वही सबसे पहले गया . किसी तरह परिक्रमा पूरी करके वापस आगया तो बाकी बचे छ: लोगों की धड़कनें बढ़ गईं । हर बार जब कोई सलामत वापस लौटता तो बाकी बचे लोगों को मौत की आहट सुनाई देने लगती । इसी तरह दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ और छ्टा भी हिम्मत करके एक एक कर बाहर गए और वापस आगए । अब सातवें को मौत साक्षात सामने खड़ी दिखाई दे रही थी । वह बाहर कैसे जाता ? बाकी लोगों की मिन्नतें करने लगा । बोला ," दोस्तो मैं अगर बाहर गया तो मेरा मरना निश्चित है । यह आप सब भी भली भाँति जानते हैं । क्या एसा नहीं हो सकता कि आप सभी के पुण्यों के सहारे मेरी भी जान बच जाय ?" किन्तु वहाँ उसकी सुनने वाला कोई न था । "जान न पहचान, हम क्यों अपनी जान एक अजनबी के लिए ज़ोखिम में डालें ?" सब लोग एक स्वर में बोले ," तुम्हें जाना ही होगा ।" वह रोने गिडगिडाने लगा । पर उनके हृदय न पसीजे । बिजली का चमकना जारी था । अन्त में उसको धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया । मरता क्या न करता, वह वहाँ से बेतहाशा भागा । जब वह मंदिर से पर्याप्त दूरी पर पहुँच गया तो अचानक बिजली गिरी । किन्तु यह क्या ? वह बच गया । बिजली उस पर नहीं बाकी छ: लोगों पर गिरी थी । वे मर चुके थे । विधाता को यही मंज़ूर था ।

सॉफ्ट कॉर्नर

पहले पकड़े थे कभी, मगर दिए थे छोड़ ।
ये आतंकी हैं वही, जो कि रहे बम फोड़ ।
जो कि रहे बम फोड़, सॉफ्ट कॉर्नर की जय हो ।
हटा वही कानून, किसी को जिससे भय हो ।
विवेक सिंह यों कहें, बदल दो निज़ाम सारा ।
पकड़ा जो एक , बार न छूटे फिर हत्यारा ॥

रविवार, सितंबर 21, 2008

काटोगे जो इसे

ले आए हम पकड़ कर, जुल्मी बकरा एक ।
पर घर में थीं बकरियाँ, लिया उन्होंने देख ।
लिया उन्होंने देख, बनाया प्रेशर भारी ।
काटोगे जो इसे, न देंगे वोट तुम्हारी ।
विवेक सिंह यों कहें, काटना मेरा जिम्मा ।
कब तक खैर मनाएंगी बकरे की अम्मा ?

शनिवार, सितंबर 20, 2008

वोट की राजनीति यह

राजनीति यह वोट की, जी का है जंजाल ।
थी अंत्येष्टि शहीद की, समय न पाए निकाल ।
समय न पाए निकाल, जो अंत्येष्टि में जाते ।
वोट-बैंक को अपना मुँह कैसे दिखलाते ? ।
विवेक सिंह यों कहें, बनी है नाशनीति यह ।
जी का है जंजाल वोट की राजनीति यह ॥

शहीद श्री मोहन चंद शर्मा

रखवाले थे देश के, शर्मा मोहन चंद ।
जिनके कारण हम सभी, रहते हैं स्वच्छंद ।
रहते हैं स्वच्छंद, नमन है शर्मा जी को ।
कैसे दरिया बीच विदाई दें माँझी को ?
विवेक सिंह यों कहें, शत्रु ने पाँव पसारे ।
ऐसे मोहन किन्तु, चंद ही पास हमारे ॥

मंगलवार, सितंबर 16, 2008

अपना डी सी एस

कण्ट्रोलर है प्लाण्ट का, अपना डी सी एस ।
ताप दाब सबके यहाँ, क्या लीक्विड क्या गैस ।
क्या लीक्विड क्या गैस, सभी के अलार्म आते ।
नीले पीले लाल रंग स्क्रीन सजाते ।
विवेक सिंह यों कहें, एक ही मुझको डर है ।
ना फेल हो डी सी एस, प्लाण्ट का कण्ट्रोलर है ॥

एक ब्लॉगर का स्टिंग ऑपरेशन

"ब्रेकिंग न्यूज ! ब्रेकिंग न्यूज !"एंकर गला फाड फाड कर चिल्ला रहा था," हमारे न्यूज चैनल 'परसों तक' की टीम ने किया एक जाने माने ब्लॉगर का स्टिंग ऑपरेशन .तो आइए आपको बताते हैं कैसे हुआ ये सब .हमारे सहयोगी प्रभु डावला और श्वेता विंग पहुँचे ब्लॉगर के घर पिता पुत्री के रूप में .कॉलिंग बेल बजती है , दरवाजा खुद ब्लॉगर ने ही खोला . प्रभु डावला बोलते हैं," जी मैं प्रभु डावला और ये मेरी पुत्री श्वेता . दर असल हम अपने एक रिश्तेदार के घर पर पास में ही आए हुए थे तो उन्होनें बताया कि आपका पुत्र शादी के योग्य है .""मैं समझ गया , आप बाहर क्यों खडे हैं अन्दर आइए ना . अन्दर बैठकर बातें करते हैं . आइए आइए ." ब्लॉगर बोलता है .आप देख सकते हैं हमारे टीवी स्क्रीन पर ब्लॉगर के घर का दृश्य . हमारा खुफिया कैमरा बखूबी अपना काम कर रहा है .प्रभु जी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते तुरंत ही बडी चतुराई से मुद्दे की बात पर आगए ,"मेरी बेटी एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करती है . थोडा बहुत ब्लॉग भी लिखती है .""ब्लॉग तो मैं भी लिखता हूँ " ब्लॉगर बोला .श्वेता मौका नहीं खोना चाहती," सर आपको कौन नहीं जानता, बहुत टिप्पणियाँ पढी हैं आपकी . पर मुझे आपकी कोई टिप्पणी अभी नहीं मिली ."ब्लॉगर लज्जित होकर तुरंत सेक्रेटरी को आवाज देता है . सेक्रेटरी हाजिर होती है . आप देख सकते हैं हमारे टीवी स्क्रीन पर .ब्लॉगर लगभग डाँटते हुए पूछता है," ये मैं क्या सुन रहा हूँ, ये मैडम ब्लॉग लिखती हैं और हमारी टिप्पणी नहीं मिली आजतक इन्हें .""ऐसा कैसे हो सकता है सर . मैं अभी ब्लॉगिंग एजेण्टों से पता लगाती हूँ . मैडम किस नाम से है आपका ब्लॉग ?""मेरा ब्लॉग स्वप्नलोक नाम से है" श्वेता ने ऐसे ही बोला . "पर ये ब्लॉग तो श्री विवेक सिंह जी का है . उनका बॉयकॉट चल रहा है आजकल . टिप्पणी वापस नहीं करते ना . उन्हॉने कहीं आपको चपेक तो नहीं दिया , कितने लिए ?" सेक्रेटरी एक सांस में बोल जाती है ."नहीं मेरा ब्लॉग तो स्वप्नलोक टू है , आज ही शुरू किया है ." श्वेता ने बात सँभाली .सेक्रेटरी चली गयी .प्रभु जी जो अब तक चुपचाप सब माज़रा देख रहे थे बोल्रे," पर ये सेक्रेटरी और एजेण्टों का ब्लॉग से क्या सम्बंध ?"ब्लॉगर ने राज उगला," आप तो अब हमारे रिश्तेदार होने वाले हैं आप से क्या छुपाना . मैं क्या आपको इतना फालतू दिखता हूँ .भगवान का दिया करोडों का बिजनेस है . यहाँ विदेश में घर छोड कर क्या ब्लॉगिंग के लिए पडा हूँ . पर हाँ थोडी शोहरत भी चाहिए . उसी के लिए ये दस बारह बच्चों को काम पर रख लिया है . कुछ मैं दे देता हूँ, कुछ गूगल से मार लेते हैं . ये परोपकार भी चल रहा है और अपने देश वाले भी खुश . सबको टिप्पणी मिल जाती है और क्या चाहिए . पर आप कहाँ ब्लॉगिंग की बातों में उलझ गये ."इतने में ब्लॉगर का लडका वहाँ आगया और बोला," अरे प्रभु जी , श्वेता जी आप ? पापा आप इन्हें जानते हैं ? बताया नहीं कभी आपने .""बेटा मैं इनको पिछले दस मिनट से ही जानता हूँ . पर तुम कैसे जानते हो इन्हें ?" ब्लॉगर थोडा कनफ्यूजिया गया था ."पापा आप क्या कह रहे हैं . ये प्रभु डावला जी हैं 'परसों तक' पर 'टेढी बात' कार्यक्रम में आते हैं .और ये श्वेता विंग जी हैं इनकी रिपोर्टर ."सुनते ही ब्लॉगर का बीपी लो हो गया . वह दवा लेने के लिए भागा . पीछे पीछे लडका भागा . हमारे सहयोगी मौका देखकर वहाँ से खिसक लिए . इस तरह यह स्टिंग ऑपरेशन अधूरा ही रह गया ."न्यूज एंकर इतना कह ही रहा था कि मेरी आँख खुल गयी और सपना अधूरा ही रह गया .

सोमवार, सितंबर 15, 2008

सिर्फ कपडे न बदलिए

चुनाव हारे तो बने, गृहमन्त्री तो आप
किन्तु सीरियस ना हुए, यही बडा संताप
यही बड़ा संताप, रहे अपने ही मद में
अब तक तो कुछ नया न कर पाए संसद में
विवेक सिंह यों कहें राष्ट्र को आप न छलिए
गृहमन्त्री हैं आप सिर्फ कपड़े न बदलिए

स्वर्ग से ब्लॉगिंग

एक बार स्वर्ग के समाचार पत्र में ब्लॉगर कोना छपा तो इन्द्र ने चित्रगुप्त से उसके बारे में पूछा । चित्रगुप्त बोला," देवराज ! मैं अभी आपको इसके बारे में बताने का विचार कर ही रहा था . वस्तुत: यह नारद मुनि की लीला है . उन्होंने ही भगवान शंकर के शाप के कारण इण्टरनेट के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया है .एक्चुअली यह एक खेल है जिसमें सभी खिलाड़ियों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है .
इसमें कुछ लोग नाम कमाते हैं, तो कुछ धन कमाने की इच्छा रखते हैं . बिरले
भाग्यशाली ही नाम कमाने के साथ साथ लक्ष्मी जी की अनुकम्पा प्राप्त करने में
भी सफल रहते हैं . बाकी सब वे बंदर हैं जो श्रीराम के साथ लंका में केवल
सीताजी के दर्शन के लालच में अपनी जान जोखिम में डाल दिए थे . यह खेल
मृत्युलोक में काफी प्रचलित होता जा रहा है, और नेता, अभिनेता, खिलाड़ी तथा
डॉक्टर व इंजीनियर सभी इसको खेलने लगे हैं . पत्रकारों को तो खैर इसका व्यसन ही है ."
इन्द्र अचानक बोले," अरे चित्रगुप्त ! क्यों न हम भी ब्लॉगिंग करें ?"
"आइडिया तो बुरा नहीं है महाराज, पर जनता आपकी क्लास ले लेगी । और आपने समझदारी से काम न लिया तो दो मिण्ट में आपकी हिन्दी हो जाएगी . वैसे आपने हिन्दी ब्लॉगिंग में हाथ आजमाया तो कोई आपकी हिन्दी न कर सकेगा क्योंकि वहाँ पहले ही सबकी हिन्दी हुई पड़ी है ."
"पर हम तो इसकी ए बी सी डी भी नहीं जानते ." इन्द्र बोले .
"तो भी टेंशन नहीं लेने का गुरु ." चित्रगुप्त ने समझाया," किसी अच्छे से हिन्दी ब्लॉगर को स्वर्गवासी कर देते हैं . थोडा डराएँगे, धमकाएँगे तो आपके नाम से लिखने को तैयार हो जाएगा ."
इन्द्र : और यदि वह तैयार न हुआ तो ?
चित्रगुप्त : तो उसको नर्क में डालने की धमकी दे देंगे .
इन्द्र : इतने पर भी न माना तब ?
चित्रगुप्त : तो उसको राजी कराने के लिये उत्तर प्रदेश से एक ऐसे पुलिसिये को स्वर्गवासी करके लाएंगे जो कम से कम दस बेकसूरों से गुनाह कबूल करवा चुका हो .
इन्द्र : पुलिस वाला राजी होगा ?
चित्रगुप्त : उसकी छोडो वो सब तो अपने यमराज के चेले हैं .
इन्द्र : अच्छा ठीक है ब्लॉगिंग शुरू हो गयी फिर ?
चित्रगुप्त : फिर क्या धडाधड टिप्पणियाँ ! मान सम्मान !
"मान सम्मान तो ठीक है मगर टीका-टिप्पणी भी सहनी पड़ेगी क्या ?" इन्द्र बोले .
"सहनी नहीं पड़ेगी शुरू में तो माँगनी भी पड़ेगी और करनी भी पड़ेगी . हाँ आप सीनियर हो जाइएगा तो जबरदस्ती झेलनी भी पड़ेंगी . फिर मना किया तो और भी ज्यादा आयेंगी . यही तो इस खेल का आनन्द है और यही इसमें सम्मान . आप क्या सोचे कोई स्वर्ण पदक मिलने वाला है आपको ?" अबकी बार चित्रगुप्त ने खोलकर समझाया .
इन्द्र कुछ उदास होकर बोले," रहने दो चित्रगुप्त मुझे ब्लॉगिंग नहीं करनी ."
देवराज ऐसा कह ही रहे थे कि मेरी आँख खुल गयी और सपना अधूरा ही रह गया .

रविवार, सितंबर 14, 2008

हिन्दी दिवस मनाना था

समारोह कार्यालय में था, हिन्दी दिवस मनाना था ।
सभ्य समाज उपस्थित सब, मर्दाना और जनाना था ।
एक-एक कर सब बोले, सबने हिन्दी का यश गाया ।
हिन्दी ही सत्य कहा सबने, अंग्रेजी तो है बस माया ।
साहब एक बढ़े आगे, अपना कद ऊँचा करने में ।
मिलती है अद्भुत शान्ति सदा ही, हिन्दी भाषण करने में ।
चले गए अंग्रेज यहाँ से, पर अंग्रेजी छोड़ गए ।
बुरा किया अंग्रेजों ने, मिलकर भारत को तोड़ गए ।
किन्तु नहीं चिन्ता हमको, हम मिलकर आगे जाएंगे ।
उत्थान करेंगे हिन्दी का, हिन्दी में हँसेंगे, गाएंगे ।
अब बात करेंगे हिन्दी में, हम सब अंग्रेजी छोड़ेंगे
जो अंग्रेजी में बोलेगा हम उससे नाता तोड़ेंगे ।
सचमुच उनका कद उच्च हुआ, करतल ध्वनि की हुँकार हुई ।
अंग्रेजी पडी रही नीचे, तो हिन्दी सिंह सवार हुई ।
पर यह क्या सब कुछ बदल गया, अनहोनी को तो होना था ।
बस चीफ बॉस का आना था, हिन्दी को फिर से रोना था ।
आगमन चीफ का हुआ सभी ने उठकर गुड मॉर्निंग बोला ।
मॉर्निंग मॉर्निंग हाउ आर यू, साहब ने गिरा दिया गोला ।
खड़े हुए जा माइक पर, फिर हिन्दी की तारीफ करी ।
ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,जस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी ॥

जबरदस्ती आएंगी ?

आज मुदित मन मिल गया, नया तरीका एक ।
अधिक टिप्पणी चाहिये ? ताक रखें स्वविवेक ।
ताक रखें स्वविवेक, विवादास्पद ही लिखना ।
बता अन्य को निम्न, स्वयं तुम महान दिखना ।
विवेक सिंह यों कहें, जबरदस्ती आएंगी ।
अच्छी हों या बुरी किन्तु मन हर्षाएंगी ॥

शनिवार, सितंबर 13, 2008

अमरीकन हथियार ?

ब्लैकमेल बन जाएगा, अमरीकन हथियार ।
देगा वह ईंधन नहीं, हो जाओ होशियार ।
हो जाओ होशियार, रहेंगे रिएक्टर खाली ।
गारण्टी कुछ नहीं पक रहे पुलाव ख्याली ।
विवेक सिंह यों कहें, जहाँ पर नहीं तेल है ।
अमरीकन हथियार, वहाँ पर ब्लैकमेल है ॥

शुक्रवार, सितंबर 12, 2008

कृपया सुनें अपील !

प्यारे ब्लॉगर भाइयो, कृपया सुनें अपील ।
मुक्तहस्त दें टिप्पणी, इसमें ना हो ढील ।
इसमें ना हो ढील, हुआ अधिकार ये सबका ।
मिलें टिप्पणी प्रचुर, हो लाभान्वित हर तबका ।
विवेक सिंह यों कहें, उन्नति ब्लॉग जगत की ।
धुआँधार टिपियाएँ , भूल सब बात विगत की ॥

था शुक्ला जी नाम !

कलयुग में ब्लॉगर हुए, था शुक्ला जी नाम ।
करते वितरण ज्ञान का, मुक्तहस्त बिन दाम ।
मुक्तहस्त बिन दाम, सूत्र हमको बतलाया ।
हटा शब्द की जाँच टिप्पणी द्वार खुलाया ।
विवेक सिंह यों कहें अब कहीं नज़र न आएं ।
अनूप शुक्ल इति नाम दिखें तो हमें बताएं ॥

अरे सीनियर ब्लॉगरो !

अरे सीनियर ब्लॉगरो, कर दो लिखना बन्द ।
कार्यभार सब छोड़कर, आप करो आनन्द ।
आप करो आनन्द, सिर्फ टिपियाते रहना ।
मानो नेक सलाह बाद में फिर मत कहना ।
विवेक सिंह यों कहें, "सलाह थी ये तो झूठी ।
कहीं न सचमुच कलम टाँग देना अब खूँटी ॥"

गुरुवार, सितंबर 11, 2008

शिव कुमार मिश्रा गुरु हैं विवेक सिंह के ?

शिव कुमार मिश्रा हुए, गुरु हमारे आज ।
हम उनके चेले हुए, अब न रहा यह राज ।
अब न रहा यह राज,हों सूचित सर्व साधारण ।
गुरु चेले का यह संबंध न हुआ अकारण ।
विवेक सिंह यों कहें, जान लें ब्लॉगर सारे ।
शिव कुमार मिश्रा जी अब हैं गुरु हमारे ॥

कोष्ठक में:
आदरणीय श्री मिश्र जी से बिना गलती किए एडवांस में क्षमा माँग लेता हूँ कि उनको मैंने बिना परमीशन लिये ही अपना गुरु घोषित कर दिया है . और यह भी घोषणा करता हूँ कि फीस नहीं दूँगा . आशा है क्षमा मिलेगी वह भी कविता में .

एक बार हो गया ये गच्चा !

जंगल की है कथा पुरानी
मुझे सुनाती थीं यह नानी
आप सुनें तो कह डालूँगा
मगर टिप्पणी वापस लूँगा
बडे प्रेम से गुजर रही थी
सरल ज़िन्दगी सही सही थी
सालाना चुनाव होता था
जिसका अधिकारी तोता था
सबकी राय पूछ लेता था
तत्पश्चात निर्णय देता था
निर्णय सबका निर्धारित था
सर्वसम्मति से पारित था
राजा शेर चुना जाता था
मगर सियार भुना जाता था
वर्षों बीत गए ऐसे ही
किन्तु मिला मौका जैसे ही
आया थोड़ा दम गीदड़ में
राजनीति खेली बीहड़ में
लगा मनाने सबको जाकर
उसके बहकावे में आकर
वोट दिया सबने बन्दर को
मिली पराजय तब नाहर को
बन्दर राजा चुना गया था
गीदड़ उसका मित्र नया था
आखिर था बन्दर का शासन
ढीला था सब तन्त्र प्रशासन
एक बार हो गया ये गच्चा
बकरी का छोटा सा बच्चा
खेल रहा था घर के बाहर
उठा ले गया उसको नाहर
बकरी ने राजा को बोला
बन्दर का सिंहासन डोला
आखिर निकला घर से बाहर
बोला,"किधर गया है नाहर ?"
पहुँच गए वे जहाँ शेर था
वहीं पास में एक पेड़ था
बन्दर सबको वहीं छोड़कर
चढ़ा पेड़ पर तेज दौड़कर
उसकी चाल हुई मतवाली
लगा कूदने डाली डाली
बकरी को पल पल था भारी
आखिर वह थी माँ बेचारी
पूछा,"जान बचेगी कैसे ?"
बन्दर बोला कुछ संशय से,
"तेरा दर्द समझ सकता हूँ
मगर और क्या कर सकता हूँ ?
जनसेवक का काम यही है
हमको बस आराम नहीं है
तू ही बता बच्चे की माँ है
भागदौड में कमी कहाँ है ?"

बुधवार, सितंबर 10, 2008

मालिक कुछ टिप्पणी भेज दें !

मालिक कुछ टिप्पणी भेज दें
अच्छी नहीं तो बुरी भेज दें
मेरा उत्साह बर्द्धन होगा
किन्तु आपका खर्च न होगा
एक टिप्पणी बॉक्स खोलकर
आवश्यक ये नहीं तोलकर
उसमें जो जी चाहे भर दें
स्वकर्तव्य की इतिश्री कर दें
चाहें तो उत्साह बढाएं
चाहें लतियाएं धकियाएं
कहें," बहुत अच्छा लिखते हो
पिक्चर में सुन्दर दिखते हो।"
या फिर कहें कि," खोदी घास
नहीं देखने में भी खास
क्यों लिखने में समय खपाते
अन्य कहीं किस्मत अज़माते
तो शायद जीवन कट जाता
लिखा तुम्हारा मुझे न भाता ।"
लिख दें," लेख पसंद आ गया
पढ़ने में आनंद आ गया
इससे मेरा ज्ञान बढ़ा है
पर तुमको अभिमान चढ़ा है
तुम न कभी मुझको टिपियाते
बस हमसे टिप्पणी मँगाते
आगे से अब मैं न लिखूँगा
ब्लॉगिंग पर भी अब न दिखूँगा
तूने मुझे स्वार्थी समझा ?
तुझे देख लूँगा मैं थम जा ।"
धमकी लिख गायब हो जाना
पर सबको पढ़ना रोज़ाना
होगी मान मनौती भारी
चाहे दुनिया डोले सारी
ब्लॉग जगत सब थम जाएगा
बस तेरा कीर्तन गाएगा
रोएंगे सब पछताएंगे
खुलकर तेरा यश गाएंगे
जितनी भी टिप्पणियाँ अब तक
तुमने पहुँचाईं हैं सब तक
वापस सब ही मिल जाएंगी
तेरी बाँछें खिल जाएंगी
सहसा दो दिन गायब रहकर
पब्लिक के भावों में बहकर
तेरा पुनः अवतरण होगा
ब्लॉग जगत पर विचरण होगा
बोलो टिप्पणी मैया की....

आगए कल्लू मामा

कल्लू मामा आगए, वापस अपने द्वार ।
हम कृतज्ञ हैं किस तरह व्यक्त करें आभार ।
व्यक्त करें आभार, किया उपकार आपने ।
आसिफ की ली खबर आज रज़िया के बाप ने ।
विवेक सिंह यों कहें सुनो हे सखा सुदामा !
वापस अपने द्वार, आगए कल्लू मामा ॥

मेरा गावँ

ज़िला अलीगढ़ में बसै, छोटी बल्लभ खास ।
ब्लॉक यहाँ गोण्डा रहा, तहसील है इगलास ।
तहसील है इगलास, पास यह बस्यो खैर के ।
हाथरस माँट ब्रांच बीच यह दोंनों गंग नहर के ।
विवेक सिंह यों कहें, परगना रहा हसनगढ़ ।
छोटी बल्लभ मुख्य गावँ का मानो ज़िला अलीगढ़ ॥

मंगलवार, सितंबर 09, 2008

टिप्पणी कथा

सुनो भई साधो ! त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने एक धोबी की टिप्पणी के कारण सीताजी का त्याग कर दिया तो सीताजी का दिल टूट गया । आखिर उन्हें इस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद कम से कम श्रीराम से तो नहीं थी . सीताजी को गहन मनन के बाद पता चला कि इस दुर्घटना के मूल में एक टिप्पणी थी . फौरन उन्होंने टिप्पणी को शाप दे दिया कि," हे टिप्पणी ! तेरे कारण मुझे आज घर से बेघर होना पड़ रहा है । जा अब से तुझे सब लोग हिकारत की नज़र से देखेंगे और आज के बाद जिस किसी के काम पर कोई टीका टिप्पणी की जाएगी वह टिप्पणी करने वाले को मन ही मन कोसेगा अवश्य . हो सकता है बात आमने सामने की हो तो थापधौल भी हो जाय ." इतना सुनते ही टिप्पणी प्रकट हुई . उसने सीताजी से सर्वप्रथम बिना गलती की क्षमा माँग ली और पैरों में गिरकर पूछा," माता ! मेरा अपराध क्या है ?आखिर गलती तो धोबी की थी न ?" सीताजी का दिमाग कुछ कूल हुआ तो उन्हें फील हुआ कि कुछ ज्यादा ही हो गया था . पर अब क्या हो सकता था ? शाप का एलान तो हो चुका था . न्यूज चैनलों पर चटखारे ले लेकर दिखाया भी जा चुका था . पर आखिर संकट मोचक इति नाम अंजनिपुत्र का ऐसे ही नहीं पड़ गया था . हनुमान जी ने तुरन्त एक झकास आइडिया सुझाया और जाकर माता सीता के कान में बोले," माता ! आपने अभी तक इस बेचारी के शाप की अवधि डिसाइड नहीं की है . उसमें थोड़ी ढील की गुंजाइश अभी बाकी है ." टिप्पणी बोली," ढील ही नहीं माता कम्पेंजेशन भी चाहिये . आखिर मैं बेकसूर हूँ ."सीताजी ने कहा," जा ! जब कलयुग में ब्लॉग का धरती पर अवतार होगा तो ब्लॉगर नाम के सह्जीवी भी उसके आसपास भिनभिनाने हेतु जन्म लेंगे . धोबियों की संख्या में गिरावट आएगी ."(आखिर वाशिंग मशीन का आविष्कार जो होना था .)इन ब्लॉगरों के द्वारा तेरी पूजा की जायेगी . ये प्राणी अपना ब्लॉग लिखकर विश्वनाथन आनंद की मुद्रा में बैठकर टिप्पणी आने का इंतज़ार करते नज़र आएंगे . टिप्पणियों का आदान प्रदान भी होगा म्युचुअल ट्रन्सफर भी . टिप्पणी न मिलने की सूरत में ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ने तक की धमकी देकर गरीब ब्लॉगरों को ब्लैकमेल करते नज़र आ सकते हैं ।" इतना सुनते ही टिप्पणी ने माता सीता के चरण पकड लिए और "आप धन्य हैं !, आप धन्य हैं ! " ऐसा कहती हुई खुशी से पागल हो गई । अब कलयुग के हालात से तो आप सभी भली भाँति वाकिफ ही हैं .

सोमवार, सितंबर 08, 2008

सुनो भई साधो !

सुनो भई साधो ! अपने राज ठाकरे जी का तीर या दूसरे शब्दों बिच कहें तो तुक्का एकदम निशाने पर लगता नज़र आ रहा है . वैसे उनके खिलाफ मेरे द्वारा अपना शब्द के बेज़ा इस्तेमाल पर ठाकरे जी को आपत्ति हो सकती है . पर हम तो ठहरे वसुधैव कुटुम्बकम के कट्टर समर्थक . हाँ अगर थोडा सा हो हल्ला मचाने से हमारे भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनने की कुछ संभावना बन जाय तो हम भी पीछे न रहें . पर एक तो हमारे उत्तर प्रदेश में बाहर के लोग आते ही नहीं हैं नौकरी करने . हम तो खुद ही दूसरे राज्यों में भटकते फिर रहे हैं . अब ये मत पूछ्ने लग जाना कि अभी कौन से राज्य में हैं ? पता चले कल को हमीं को धकियाया जा रहा है, न्यूज चैनल वाले कवर कर रहे हैं और हम बडे बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकाले जा रहे हैं . हाँ तो हम बात कर रहे थे वसुधैव कुटुम्बकम के कट्टर समर्थक होने की . माफ करें हमें इस नाशपीटे कट्टर शब्द के स्थान पर कोई मुलायम शब्द न मिल सका . एक बार को अगर मान लिया जाय कि ये सब सोची समझी रणनीति है जिससे न केवल राज ठाकरे को महाराष्ट्र में फायदा होने वाला है बल्कि उत्तर प्रदेश मेँ समाजवादियों को होने वाले फायदे से भी इन्कार नहीं किया जा सकता . तो भी इ घटिया राजनीति की खटिया खडी करने में जनता पीछे न रहेगी , ऐसा हमारा अटूट विश्वास है . आपका भी होगा .

कर दी है ताकीद

छीना दिन का चैन भी, उड़ी रात की नींद ।
भूलो यह विश्राम अब्, कर दी है ताकीद ।
कर दी है ताकीद, मिलेगी तनख्वाह मोटी ।
तुमने मेरा ब्लॉग, अगर पहुँचाया चोटी ।
विवेक सिंह यों कहें, हुआ यूँ एक महीना ।
उड़ी रात की नींद, चैन दिन का भी छीना ॥

रविवार, सितंबर 07, 2008

बिग डील

चर्चा आमोखास में, होगी यह बिग डील ।
किन्तु हमारा भाग्य भी, क्या होगा तब्दील ?
क्या होगा तब्दील, करें हम कितनी आशा ?
आशंका है फिर से हाथ न लगे निराशा ।
विवेक सिंह यों कहें, सभी गुड फील करेगें ।
हारें चाहे चुनाव मगर ये डील करेंगे ॥

ब्लॉग लिख कुँए में डाल

अर्जुन बोले," हे केशव ! मैं ब्लॉग लिखने में स्वयं को सर्वथा इच्छारहित पा रहा हूँ . मुझे ब्लॉग लिखने से मिलेगा क्या ? एक टिप्पणी ? कभी कभी तो वह भी नहीं मिलती . हद तो तब हो जाती है जब टिप्पणीकार टिप्पणी के बदले टिप्पणी की जंगली डिमाण्ड कर बैठता है . ऐसे ब्लोगरों को देखकर मेरी ब्लॉग लेखन शक्ति का ह्रास हो रहा है . मेरी फिंगर्स ट्रिप हो रही हैं . की-बोर्ड को छूते ही शॉक लग रहा है .पूरा भेजा टेंशना रहा है .
धृतराष्ट्र बोले," तो क्या संजय अर्जुन ब्लॉग नहीं लिखेगा ? तो क्या मेरे पुत्रों को ब्लॉग वाणों का सामना नहीं करना पडेगा ? "
संजय उवाच," महाराज ! मुझे तो ऐसा नहीं लगता . आप आगे का आँखों देखा हाल सुनिए ."
अर्जुन आगे बोले," हे केशव ! मुझे ब्लॉग क्यों लिखना चाहिए, कृपया थोड़ा खोल कर समझाइए ."
श्री भगवान बोले," हे पार्थ ! एक ज्ञानी ब्लॉगर को कदापि टिप्पणी पाने की इच्छा के वशीभूत होकर न लिखना चाहिए . ब्लॉग का तो धरती पर अवतरण ही अभिव्यक्ति हेतु हुआ है . इसका मूल उद्देश्य टिप्पणी पाना नहीं है . "
अन्त में कन्हैया जी बोले," हे अर्जुन ! तूने वह कहावत तो सुनी होगी कि ब्लॉग लिख और कुँए में डाल ।"

संजय बोला," महाराज ! अर्जुन की उँगलियों की धमक से की-बोर्ड हिल रहा है ."
धृतराष्ट्र ने भेजा ठोक लिया .

शनिवार, सितंबर 06, 2008

जनता की दरकार

अरुण जेटली की बने, दिल्ली में सरकार ।
बदले भृष्ट निज़ाम यह, जनता की दरकार ।
जनता की दरकार, सभी को है कौतूहल ।
कैसा होगा बीजेपी का सेफ्टी मॉडल ।
विवेक सिंह यों कहें, खत्म हो जाय बेकली ।
दिल्ली में सरकार बनाएँ, अरुण जेटली ॥

शुक्रवार, सितंबर 05, 2008

अरे क्या किया खिवैया

आप हमें हो ठग रहे, ठगे गए या आप
मनमोहन जी बोल दो,अब न रहो चुपचाप
अब न रहो चुपचाप,खोल दो बन्द लिफाफा
क्या दे आए अमरीका को, आप इस दफा
विवेक सिंह यों कहें,अरे क्या किया खिवैया ।
हमें उतारा पार, डुबा दी या फिर नैया ॥

गुरुवार, सितंबर 04, 2008

बचा लो अम्मा

मैं बह रहा हूँ, बचा लो अम्मा
मैँ कह रहा हूँ, बचा लो अम्मा
छूट जाएगी मुझसे ये डाली
मुझको गोदी में उठा लो अम्मा
देखो सँभलो न पैर फिसले कहीं
खुद को खतरे में न डालो अम्मा
मैं हूँ मजबूत मैं न डूबूँगा
खुद को पानी से निकालो अम्मा
अच्छा पानी से तुम न निकलोगी ?
मुझको पानी में बुलालो अम्मा
तुम यूँ पानी में छुप रही हो क़्यूँ
मैं रूँठता हूँ मनालो अम्मा
मैं कह रहा हूँ, बचा लो अम्मा
मैं बह रहा हूँ, बचा लो अम्मा ।

बुधवार, सितंबर 03, 2008

ज़िन्दगी क्षणभंगुर है

क्षणभंगुर है जिन्दगी, फिर क्यों तू घबराय ।
आया मुट्ठी बाँध कर, हाथ पसारे जाय ।
हाथ पसारे जाय, यहीं सब रह जाता है ।
ईश्वर ही सच्चा है, झूठा हर नाता है ।
विवेक सिंह यों कहें यही जीवन का गुर है ।
फिर क्यों तू घबराय ज़िन्दगी क्षणभंगुर है ।।

सोमवार, सितंबर 01, 2008

मित्र का मित्र

मेरी पहली रेल यात्रा में मुझे मथुरा से झाँसी जाना पड़ा । झाँसी में मेरा मित्र था । मैं रात को रेलवे स्टेशन पर उतरा तो एक सज्जन सामने ही खड़े मिल गए । उन्होंने मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाया तो मेरी बाँछें ( पता नहीं शरीर के कौन से हिस्से में होती हैं ) खिल गयीं । दर असल मुझे अपने मित्र के पास ऐसे समय जाना पड़ा था कि न तो उसे मेरे आने की सूचना थी और न मैंने उसका घर देखा था । मेरे पास बस कागज पर लिखा हुआ उसका पता ही था । उस समय फोन भी आजकल की तरह प्रचलित नहीं थे । बहरहाल जो भी हो मुझे उस आदमीं में भगवान दिखाई दिये और मेरे भेजे में यह बात घर कर गयी कि हो न हो यह मेरे मित्र के कोई परिचित हैं जिन्होंने मुझे उसके साथ कभी देखा होगा । मैंने भी बडी गर्मजोशी से अपना हाथ उनके हवाले कर दिया । मेरी आशा उस समय निराशा में बदल गयी जब उन्होंने कहा," ए मिस्टर ! होशियारी मत दिखाओ , टिकिट दिखाओ . " इससे पहले कि मैं हँसी का पात्र बनूँ , मैं टिकिट दिखा कर वहाँ से चलता बना ।

कुदरत का कहर

हाय चीन में आगया, जबरदस्त भूकंप ।
कितने अरमां लुट गए, ख्वाब हो गए डम्प ।
ख्वाब हो गए डम्प, ज़िंदगी ठहर गयी है ।
एक नमूना है , कुदरत का कहर यही है ।
विवेक सिंह यों कहें, हुआ हूँ शान्तिहीन मैं ।
जबरदस्त भूकम्प , आगया हाय चीन में ॥


स्वप्नलोक अब तक

मित्रगण