अरे तू अब बस भी कर यार !
कर दी ऊपर अगर शिकायत,
बहुत पड़ेगी मार.....
सही समय पर रहा नदारद
रहे तरसते सब नाले-नद
सूख गए सब खेत धान के
किसान बैठे हार मान के
कर करके इंतजार......
रहा घूमता तू बदली संग
झूम रहा था ज्यों पी हो भंग
भूल गया निज जिम्मेदारी
कर लीं खत्म छुट्टियाँ सारी
कर दी बहुत अबार.......
बरस रहा अब बिना ब्रेक ही
धूप दिखाई न दी नेंक भी
चार माह का काम अधूरा
चार दिनों में करता पूरा
बना बड़ा होशियार.....
सुनी नहीं क्या उक्ति पुरानी
'का वर्षा जब कृषि सुखानी'
कीमत समझ समय की लल्लू !
आज छोड़ बदली का पल्लू
हो जा खुद-मुख्तार......
जाँच बिठाई जाएगी जब
सत्य सामने आयेगा तब
तुझको किसने था उकसाया ?
तू ऐसा कैसे कर पाया ?
सो गए क्या सब पहरेदार....
यह संवेदनशील काम है
लेकिन तू तो बेलगाम है
बादल तुझे कौन बनवाया ?
क्या तू आरक्षण से आया ?
कार्यवाही को हो तैयार....
नौकरी तेरी चली न जाय
मिलेगी फिर न ऊपरी आय
नौकरी छोटी हो या बड़ी
ऊपरी आय चीज है बुरी
कराती गलत कार्य हर बार......
अरे तू अब बस भी कर यार !
सूचना: स्वप्नलोक पर गत्यात्मक ज्योतिष वाली संगीता पुरी जी ने अर्ध-शतक ठोकने में सफलता हासिल की है । उन्हें बहुत बहुत बधाई ! इस अवसर पर इनके बारे में इन्हीं की जुबानी :
पोस्ट-ग्रेज्युएट डिग्री ली है अर्थशास्त्र में .. पर सारा जीवन समर्पित कर दिया ज्योतिष को .. अपने बारे में कुछ खास नहीं बताने को अभी तक .. ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन-मनन करके उसमे से वैज्ञानिक तथ्यों को निकलने में सफ़लता पाते रहना .. बस सकारात्मक सोंच रखती हूं .. सकारात्मक काम करती हूं .. हर जगह सकारात्मक सोंच देखना चाहती हूं .. आकाश को छूने के सपने हैं मेरे .. और उसे हकीकत में बदलने को प्रयासरत हूं .. सफलता का इंतजार है।
ाज इन्द्र देवता की कलास लेनी शुरू कर दी? वो काम करें तो भी ना करें तो भी बेचारे खबरों मे आये ही रहते हैं संगीताजी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआजकल हो रही बारिश की प्रकृति को देखते हुए सटीक रचना .. और इतने दिनों से की गयी मेरी मेहनत बेकार नहीं गयी .. मैने अर्द्ध शतक ठोक ही लिया .. आप तो शुक्रिया भी अदा कर लेते हैं .. हमलोग तो वो भी नहीं कर पाते .. क्यूंकि हमलोगों के लगाए हुए शीर्ष टिप्पणीकारों के डाटा में से पुरानी टिप्पणियां गायब हो जाती हैं .. जिससे पूरी जानकारी नहीं मिल पाती .. कृपया जानकारी दें .. शीर्ष टिप्पणीकारों के लिए आपने कौन सा विजेट लगाया है !!
जवाब देंहटाएंबस भी कर यार!भगवान को छोड दे यार्।बढिया।
जवाब देंहटाएंचलो देर से ही सही पर मेघ मेहरबान तो हुए .... :)
जवाब देंहटाएंअरे ये क्या बात हुई? नहीं बरसते तभी भी गाली और बरसे तब भी गाली। ये तो बहुत ग़लत है।
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंअरे! बहुत शानदार रचना रच दी है। कल-परसों नजीर अकबराबादी के बारे में पढ़ने को मिला था। बिलकुल वही रंग आ गया है रचना में।
जवाब देंहटाएं"अरे तू अब बस भी कर यार !"
जवाब देंहटाएंमैं तो तारीफ़ के पुल बांधने आया था पर अब तुम कहते हो तो बस भी करता हूँ:)
भाई चित भी मेरी पट भी मेरी?
जवाब देंहटाएंरामराम.
'कवी' ठेले कविता अतिरेक
जवाब देंहटाएंकिया है धारण नाम विवेक
रहे बस हमको देता दोष
भरे वह कविताओं का कोष
किया था मेरा ही आह्वान
जून महीने में छेंडा तान
कहा था हमसे है उम्मीद
उड़ाई थी आँखों की नींद
दिया था कसम बरसने की
उसी के गाँव में बसने की
कहा था जल मिलता हमसे
निकालें हम उसको तम् से
मगर वह माह जून का था
वो मौसम आम-नून का था
थी सूखी नदिया औ तालाब
हमें भी कहाँ से मिलता आब
खड़े हम बरसन को तैयार
मगर तब साथ नहीं पतवार
साथ था गर्जन का बस बान
नहीं थी बूंदों की किरपान
बताओ हम क्या कर पाते
कैसे दुःख उसका हर पाते
हमारी थी यह मजबूरी
बनी इस कारण ही दूरी
मिला जब हमको कुछ पानी
औ हमने बरसन की ठानी
शिकायत शुरू किया सब से
कहे हम बरसे न अब से
कवी की बात निराली है
चाल उसकी मतवाली है
न जाने किस रस्ते चल दे
समस्याओं का क्या हल दे
उसे आती कविता लिखने
लिखा और ठेला बस उसने
हमारी बात सुनेगा कौन
रहेंगे सारे ब्लॉगर मौन
सफाई देनी थी दे दी
कवी है लोटा बिन पेंदी
कभी बरसन का है आह्वान
जो बरसें करता है अपमान
हमारी सुनें सभी ब्लॉगर
सफाई लिख दी है सादर
अभी हम लौट के जाते हैं
मगर वापस भी आते हैं
सुनेंगे न्याय आपका हम
करेंगे कवि की नाक में दम
लिखे वह कविता तज कर नींद
मिले ये सज़ा यही उम्मीद
-----बादल (बरसने वाला)
अरे यहां तो वर्षा के अवसर पर कवि सम्मेलन होने लगा। विवेक और झालकवि ने तो शानदार शमा बांध दिया है।
जवाब देंहटाएंजाँच बिठाई जाएगी जब
जवाब देंहटाएंसत्य सामने आयेगा तब
तुझको किसने था उकसाया ?
तू ऐसा कैसे कर पाया ?
सो गए क्या सब पहरेदार...
बेहतरीन । आभार ।
"सही समय पर रहा नदारद
जवाब देंहटाएंरहे तरसते सब नाले-नद"
"सुनी नहीं क्या उक्ति पुरानी
'का वर्षा जब कृषि सुखानी'"
गजब के उलाहने हैं, ताने भी हैं । खूबसूरत बुनावट । आभार ।
आप और झाल कवि मिल कर तो वर्षा से भी तेज बरसे....वाह!!
जवाब देंहटाएं@ अनूप जी,
जवाब देंहटाएंशमा हमने बांधकर भेज दिया है, ताकि रास्ते में बिखर न जाए
पहुँचते ही खोल लेना जी,बंधा-बंधा ही कहीं खराब न हो जाए.
@ झालकवि 'वियोगी' जी,
आपने तो हमें धो दिया, कहीं हमारे गुरु जी आ गये तो आपको धो न दें!
अरे, यहाँ तो कवि-सम्मलेन हो रहा है. एक कविता मैं भी ठेल देता हूँ.....:-)
जवाब देंहटाएं'वियोगी' कवि बरसाए झाल
करे चेले के नाम बवाल
दुबक कर बादल की ले ओट
दिया है शिष्य को मेरे चोट
सहन है नहीं ये उसकी बात
है जागे गुरु के भी जज्बात
झालकवि संभलो ले तलवार
ये झेलो मेरा भी अब वार
शिष्य है सत्य बचन कहता
वो कैसे बादल की सहता?
समय तो बरसन का था जब
कहाँ गायब था बादल तब?
फसल सूखी धरती हलकान
न उपजी दाल कहीं, न धान
रहे सूखे सब नदी, तलाब
न दिक्खा एक बूँद भी आब
ग्रस्त सूखे से सारा देश
दिया बादल ने ऐसा क्लेश
इन्द्र ने भेजा देकर जल
मगर यह बादल था चंचल
छोड़ कर देवलोक में जल
किया मानुष से इसने छल
लिया बदली को अपने संग
फिरा ये बनकर साधु-मलंग
लिए दोनों ने ड्राइव लॉन्ग
थे गाते पार्क में डुएट सॉन्ग
फिरा ये शाम-सबेरे में
रहे बस इन्द्र अँधेरे में
लौट कर वापस गया ये जब
इन्द्र ने हड़काया था तब
दबाये टेंट में सारा जल
ये अब आया होकर बेकल
मगर अब आने से क्या होत
सकेगा कृषक खेत को जोत?
शिष्य ने सही कहा इसको
बहुत बरसे अब तो खिसको
मगर ये निकला इतना ढीठ
उछलकर खोजी तुम्हरी पीठ
आ गए बात तुम इसकी मान
किया भी शिष्य का यूँ अपमान
ख़तम कर शिष्य संग मतभेद
शिष्य से करो व्यक्त अब खेद
पडो उसके समक्ष अब नर्म
निभाओ अच्छे कवि का धर्म
नहीं तो कवि-समाज में आज
उठाएंगे हम भी आवाज़
बजा देंगे तुम्हरा हम बैंड
उड़ोगे ज्यों डिजर्ट में सैंड
वाह वाह मजेदार चिट्ठा कवि गोष्ठी !
जवाब देंहटाएंसावन भादो में धरती भी सूखी था और ब्लोग भी .. आश्विन में घनघोर बरसात आरंभ हुई तो ब्लोग इसके असर से अछूता कैसे रह सकता था ?
जवाब देंहटाएंहो गया कवि सम्मेलन आज
जवाब देंहटाएंक्यों न दी हमको भी आवाज
झालकवि कहते हैं सच बात
मिश्र जी चला रहे क्यों लात
आपका चेला चालू चीज
बुवाये सदा कलह के बीज
हमेशा लेता रहता मौज
अकेला समझे खुद को फौज
झालकवि लिए खड़े करबाल
आप क्यों बनते इसकी ढाल
समझ लेने दो इसको सबक
नहीं कोमल बादल की टपक
चने के पेड़ चढ़ाता आज
खोलता अगले पल सब राज
इसे आता जाता कुछ नहीं
अड़ाता टाँग किन्तु हर कहीं
रहे यह फुरसतिया के संग
नहीं इसके कुछ अच्छे ढंग
हिमायत इसकी लो मत आप
लगेगा व्यर्थ आपको पाप
आपकी कविता बेशक सही
किन्तु यह गलत वक्त क्यों कही
मिले जब भी चेले को डोज
बचा लेते हो उसको रोज
झालकवि यद्यपि कहते ठीक
बात है उनकी बहुत सटीक
किन्तु कुछ कड़े शब्द कह गये
आप भी भावों में बह गये
क्यों नहीं रहे आप निष्पक्ष
लिया क्यों निज चेले का पक्ष
आप तो देते भाषण ढेर
कहोगे यूँ भी देर सबेर
देश में भाई भतीजावाद
वंश की परंपरा आबाद
किन्तु यह सत्य नहीं महाराज
विप्रवर आप जान लें राज
आप फैलाते चेलावाद
कर रहे ब्लॉगिंग को बर्बाद
देश को पीछे खींचें आप
कभी तो होगा पश्चाताप
चेतिये सोच समझकर अभी
टोकना फिर न किसी को कभी
फ़ैलती गुटबंदी चहुँओर
गवाही देंगे चाँद-चकोर
अजी अब गुस्सा थूको अमाँ
बंध गया कैसा सुन्दर समाँ
हो गया कवि सम्मेलन सफल
बालकवि होते हो क्यों बिकल
वाह ! यहाँ तो मजेदार कवि सम्मलेन हो गया !
जवाब देंहटाएंरहा घूमता तू बदली संग
जवाब देंहटाएंझूम रहा था ज्यों पी हो भंग
भूल गया निज जिम्मेदारी
कर लीं खत्म छुट्टियाँ सारी
कर दी बहुत अबार.......
तभी तो इन्हें आवारा कहा गया है ....!!
बहुत अच्छा व्यंग और कवि सम्मलेन भी ....!!
अरे जब कुदरत देती है तो हंस कर लो, कमी कुदरत मै नही हम मै है, हम क्यो नही पानी की निकासी का सही ढंग बनाते, ओर कोसते उस उपर वाले को है, उस उपर वाले को पता है, मेरे बच्चो को कितना पानी चाहिये, लेकिन उसे यह नही पता कि बच्चे नालायक होगये है, जो उस की दोलत को समभालने की जगह गवां रहे है..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सुंदर लेख ओर सुंदर कविता के लिये
Bahut Badiya Bhaiyya
जवाब देंहटाएंएक ही धार तीन-तीन टिप्पणियों में दिख रही है। आइए पता लगाएं कि इस धारा का उद्गम कहाँ है...
जवाब देंहटाएं...
...
...
...
...
...
लो जी, पता चल गया। सबकुछ कलकत्ते में रचा गया है।
इतना क्लू काफी है
बाकी, जान तो सभी गये होंगे।:)
जितनी मजेदार आपकी बादल की शिकायत लगी...उतना ही मजा टिप्पणी की काव्य-सभा में आया.... साधू!!!
जवाब देंहटाएंखूब बरसात हो रही है कविताओं की ..संगीताजी को बधाई ..!!
जवाब देंहटाएंकाव्य की भीनी भीनी बरसात में भीगने में आनंद आ गया। क्या तरबतर भिगोया है, परम आनंद।
जवाब देंहटाएंये वाली कविताओं की बरसात भी खूब रही!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंवाह.....वाह .....वाह .....लाजवाब......
जवाब देंहटाएंकविता के ऊपर कविताओं की झडी,
बरसात के बहाने जोरदार महफ़िल जमी...
भैया, अब तो एक फुलप्रूफ कवि समेलन हो ही जाये...गुरु करे सवाल चेला दे जवाब स्टाइल में..
यह संवेदनशील काम है
जवाब देंहटाएंलेकिन तू तो बेलगाम है
बादल तुझे कौन बनवाया ?
क्या तू आरक्षण से आया ?
कार्यवाही को हो तैयार....
*****
खड़े हम बरसन को तैयार
मगर तब साथ नहीं पतवार
साथ था गर्जन का बस बान
नहीं थी बूंदों की किरपान
*****
छोड़ कर देवलोक में जल
किया मानुष से इसने छल
लिया बदली को अपने संग
फिरा ये बनकर साधु-मलंग
*****
साधू साधू कविता की ऐसी बानगी न कभी देखी पढ़ी या सुनी...क्या खा कर लिखेंगे ऐसा पन्त, निराला, दिनकर और अज्ञेय , कहाँ टिकेंगे इसके सामने बच्चन, महादेवी, जयशंकर प्रसाद और धूमिल...वाह वा...वाह...वा..
पहले मैंने भी सोचा की मैं भी इसमें कुछ जोडूं लेकिन दिग्गजों के सामने छुट भईये की क्या बिसात, सोच कर चुप रह गया...
नीरज