सोमवार, जुलाई 27, 2009

समीर जी के समर्थन में(कृपया नारियाँ न पढ़ें)

"प्यारे पुरुष भाइयो !

आज हमारे सामने विकट समस्या खड़ी हो गयी है । कुछ मुट्ठी भर असमाजिक तत्वों ने जिनमें लगभग सभी नारियाँ ही हैं, अपनी राजनीति की रोटियाँ सेंकने के लिये सभ्य समाज के नारी वर्ग में सेंध लगाना आरम्भ कर दिया है । और इससे भी अधिक चिन्ता की बात यह है कि कुछ भोली भाली अबलायें इनके बहकावे में भी आने लगी हैं । अगर स्थिति को सँभाला नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमें अपने ही घर में एक गिलास पानी तक के लिये तरसना पड़ेगा । एक चरम स्थिति यह भी आ सकती है कि हमें अपने ही घर से बाहर निकाल दिया जाये । ईश्वर करे वह दिन कभी न आये ।

इससे पहले कि स्थिति नियन्त्रण से बाहर हो जाये, हमें कुछ कदम उठाने होंगे । अब आप सब गम्भीर होकर मेरी बात ध्यान से सुनिये । सबसे पहले तो आप यह समझ लीजिये हम नारी विरोधी न पहले कभी थे और न हैं । हमारा पक्ष सत्य का पक्ष है । पर मुट्ठी भर नारियों ने हमारी इमेज को सभ्य नारियों की नज़रों में धूमिल करने का कुटिल षडयन्त्र रचा है ताकि उनके उनके क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति हो सके ।

माना कि देश की राजनीति में जगह जगह नारियाँ उभरकर सामने आ रही हैं । हमें इससे रंच मात्र भी आपत्ति नहीं । हम तो रूखी सूखी खाकर ठण्डा पानी पीने के लिये तैयार हैं । लेकिन यह सब हमारी स्वतन्त्रता की कीमत पर न हो इसके लिये हमें देश की राजनीति में हो रहे नारियों के उभारों पर पैनी नज़र रखनी होगी । हमें इस तथ्य को जमाने के सामने लाना ही होगा कि सत्य हमारे साथ है ।

हाँ, अगर घी सीधी उँगली से न निकले तो हमें उँगली टेड़ी करने से भी गुरेज नहीं होना चाहिये । हम उन लोगों में से नहीं जो साध्य के साथ साथ साधन की पवित्रता पर भी जोर देते रहते हैं , और लक्ष्य को कभी हासिल नहीं कर पाते ।

अगर जरूरी हुआ तो हमें कुछ ब्लॉग नारियों के छद्म नामों से बनाने होंगे, और इन्हीं के द्वारा मुट्ठी भर नारियों की पोल खोलनी होगी । क्योंकि नारियों के विरुद्ध पुरुषों की बात तो कोई सुनने के लिए ही तैयार न होगा, तो फ़िर सच झूठ की तो बात ही छोड़ दीजिये । यह तो आप सब जानते ही होंगे कि लकड़ी को काटने के लिये लोहे की कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था लगाना ही पड़ता है ।

आगे आप स्वयं समझदार हैं । मैं अपना फ़ालतू समय देकर आपका बहुमूल्य समय नष्ट न करते हुए अपने शब्दों को यहीं विराम देता हूँ । और श्री समीर लाल 'समीर' को आमन्त्रित करता हूँ कि वे आपके सम्मुख अपने मुखारविंद से दो शब्द कहकर हमें कृतार्थ करें ।"

वह नेता ऐसा कह ही रहा था कि मेरी आँख खुल गयी और श्री समीर लाल जी का भाषण सुनने का सपना सपना ही रह गया !

सूचना : हर्ष का विषय है कि हिन्दी ब्लॉगिंग के दो और सितारों ने स्वप्नलोक पर टिप्पणियों के अर्धशतक लगाने में सफ़लता प्राप्त की है । ये हैं मानसिक हलचल वाले श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, और ज्ञानदर्पण वाले श्री रतन सिंह शेखावत जी । सुखद संयोग है कि दोनों ही किसी न किसी तरह ज्ञान से सम्बन्ध रखते हैं । दोनों महानुभावों को कम्पनी की ओर से बहुत बहुत बधाइयाँ ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. नारी तुम संघर्ष करो
    समीर जी तुम्हारे साथ है

    जवाब देंहटाएं
  2. सोच रहा हूँ क्या टिपण्णी करूँ

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छा इसी के बाद समीरलाल जी ने क्रांतिकारी भाषण दिया और बहर में नारीवंदना की। बड़े गुरू हैं समीरलालजी। दोनों तरफ़ या कहें हमेशा बीच में रहते हैं ताकि दोनों तरफ़ रह सकें।

    जवाब देंहटाएं
  4. जय हो गिरधारी तेरी. प्रभु आपकी मुरलिया कहां है?

    रामराम

    जवाब देंहटाएं
  5. फिजा बदल रही है -जोरदार लिखा है !

    जवाब देंहटाएं
  6. "हमें अपने ही घर से बाहर निकाल दिया जाये । ईश्वर करे वह दिन कभी न आये"...
    आप की नींद इसी तरह टूटती रही तो वो दिन दूर नहीं लगता...
    >अच्छा यह बताओ, ‘छूकर गाली’ छद्मनाम कैसा रहेगा:)

    जवाब देंहटाएं
  7. हम आपके समर्थन का अनुमोदन नारियों से छिप छिप कर कर रहे हैं विवेक भाई, मगर फ़ुरसतिया जी से भर ना कहना ! वो सबको बता देंगे वरना।

    जवाब देंहटाएं
  8. खमीर लाल को समीर लाल काहे कर दिये..हम तो समझे थे कि बच कर निकल लेंगे इसी खमीरी आड़ में. ये समर्थन किया है कि लट्ठ पड़वाने का इन्तजाम पुख्ता कर रहे हो. हम तो नारी वन्दना कर रहे थे भाई!! :)

    हे नारी शक्तियों, इन्हें भी क्षमा करना!!

    जवाब देंहटाएं
  9. हे नारी शक्तियों, इन्हें भी क्षमा करना! इस्के आगे यह लिखा जाना चाहिये,.." ये नहीं जानते ये क्या कह रहे ( कर रहे) हैं"

    जवाब देंहटाएं
  10. मुट्ठी भर नारियों की पोल खोलनी होगी :)

    जवाब देंहटाएं
  11. chinta n kare | rajniti me aane vali ye nariyan khud hi ek dusri ko nipta degi |

    जवाब देंहटाएं
  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  13. विवेक जी,
    हमें घोर षड़यंत्र की बू आ रही है यहाँ.....
    हमारी प्रजाति आपके इस पोस्ट पर आने से वर्जित थी लेकिन नारी सुलभ गुणों को कहाँ छोड़ पाएंगे, छुप कर सुन ही लिया सब कुछ और इ रहा हमरा जवाब...और अब बोलिए..
    नारी नहीं अज़ाब हूँ मैं, विवेक जी को जवाब हूँ मैं
    अभी तक तो 'अदा' हूँ, ज़रूरत पड़े तो जुलाब हूँ मैं
    हा हा हा हा हा

    जवाब देंहटाएं
  14. लो जी पढा नहीं मगर कमेन्ट तो देना ही है ना अर्धश्तक जो बनाना है हा हा हा

    जवाब देंहटाएं
  15. विवेक जी आपने नारीओं के आक्रमण से बचने के लिये पुरुष ब्लोगरों से कहा है कि"अगर जरूरी हुआ तो हमें कुछ ब्लॉग नारियों के छद्म नामों से बनाने होंगे,"

    आप से बिनती है प्लीज़ ऐसा माता कीजिये। वरना हम नारी और आप लोगों में अंतर क्या रह जायेगा?

    ज़रा संभल के विवेकजी!!! नारीयाँ तो हर जगह पहोंच जाती हैं! पता है ना कि चाहे महाभारत हो या रामायण!!! कहीं आपको मंथरा मीलेगी या कहीं पूतना!!! ज़रा संभलकर रहना पडेगा।


    चलो मज़ा आ गया आपकी पोस्ट पढकर। हर चहेरे पर मुस्कान ज़रूर आइ होगी।

    जवाब देंहटाएं
  16. भैया ये आज की नारी पड़ेगी पुरुष पर भारी |

    जवाब देंहटाएं
  17. कमाल है! इतना कुछ हो गया ओर अभी तक जूतमपैजार आरम्भ नहीं हुई:)

    जवाब देंहटाएं
  18. 'विवेक सिंह
    अपनी तारीफ़ मैं स्वयं कैसे करूँ ? और बुराई मैं किसी की करता नहीं !'

    कथनी और करनी में:
    अंतर.....
    गैप................,
    खाई.............................................
    घोर कलयुग है इ...:-):-):-)

    जवाब देंहटाएं
  19. @ अदा जी,

    जरा हमारे ब्लॉग की टैग लाइन भी तो पढ़ने की जहमत करें !

    "सर्व सज्जनों को सूचित किया जाता है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातों का हमारी विचारधारा से मेल खाना आवश्यक नहीं है, अत: किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें !- विवेक सिंह"

    जवाब देंहटाएं
  20. ये सबसे मजेदार वक्‍तव्‍य है और सार भी इसी में छि‍पा हुआ है-
    लकड़ी को काटने के लिये लोहे की कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था लगाना ही पड़ता है ।

    जवाब देंहटाएं
  21. मजबूरी है इसलिए समर्थन तो करना ही पड़ेगा। जय हो।

    जवाब देंहटाएं
  22. जी हाँ पूरा समर्थन है , सब तरफ उभारों पर ध्यान रखना पडेगा राजनिति में वैसे यह भी सही ही है कि अगर सटीक चाल चली जाये तो यह आपस में ही एक दुसरे को निपटा देंगी

    जवाब देंहटाएं

मित्रगण