संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
बुधवार, जनवरी 28, 2009
विश्वामित्र लुटे बेचारे
आज सुनाएं एक कहानी ।
अभी याद है मुझे जुबानी ॥
मेरे गुरु कहा करते थे ।
सूकरखेत रहा करते थे ॥
विश्वामित्र इन्द्र से रूठे ।
रहे सहे सम्बन्ध भी टूटे ॥
विश्वामित्र ऋषि थे ज्ञानी ।
सोच समझकर मन में ठानी ॥
तख्ता पलट इन्द्र का करना ।
उसके लिए तपस्या करना ॥
बना लक्ष्य उनके जीवन का ।
लिया उन्होंने आश्रय वन का ॥
घोर तपस्या वे करते थे ।
इससे इन्द्र सदा डरते थे ॥
सोच सोचकर इन्द्र थक गए ।
चिंता में सब बाल पक गए ॥
सभी अप्सराएं अजमाईं ।
बारी बारी सभी पठाईं ॥
किंतु तपस्या टूट न पाई ।
नारद ने तब युक्ति सुझाई ॥
देवराज क्यों व्यर्थ परेशाँ ।
इसे तोडना तो है आसाँ ॥
विश्वामित्र ब्लॉग लिखते हैं ।
लेकिन अभी नए दिखते हैं ॥
टिप्पणियों को ना ललचाते ।
केवल पोस्ट ठेलते जाते ॥
भेजो आप उन्हें टिप्पणियाँ ।
लगो जोडने उनकी कडियाँ ॥
पहले मारो थोडा मस्का ।
लेकिन जब लग जाए चस्का ॥
टिप्पणियों में गाली देना ।
तीखी लगने वाली देना ॥
विश्वामित्र सभी भूलेंगे ।
सिर्फ बिलागिंग में झूलेंगे ॥
याद रहेगी नहीं तपस्या ।
कर डालो बस देख रहे क्या ॥
विश्वामित्र लुटे बेचारे ।
एक बार फिर से वे हारे ॥
कुछ भी ब्लॉगिंग में न मिला था ।
किंतु इन्द्र को चैन मिला था ॥
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वाह जी.. विवेक जी.... चोक्खी स्पीड पकल्ली....
जवाब देंहटाएंवाह विवेक जी, गध्य का पध्य कर डाला.. बहुत मजा आया..शिव जी की पोस्ट के बाद उसीका दुसरा ्रुप..
जवाब देंहटाएंvivek bhai,
जवाब देंहटाएंshiv jee ke post padhne ke baad aapko padha, bilkul aisaa laga ki interval ke baad hee film kaa paisa vasool hua hai. bhaiyaa is swarg kee kahani to hamein bhee swargwaasee hone ka aanand de gayee.
अरे विवेक जी,
जवाब देंहटाएंमेरी तो ये ही समझ नहीं आया कि इस बिलोगिंग में विश्वामित्र लुटे या इन्द्र?
अब रम्भा मेनका उर्वर्शी की हकीकत भी बयान कर दीजिये|!
जवाब देंहटाएंघणी जोरदार कह दी बात. बेचारे विश्वामित्र !!!
जवाब देंहटाएंरामराम.
टिप्पणी न हुई मेनका हो गई . लीजिये विवेकमित्र मै भी टिप्पणी रूपी मेनका भेज रहा हूँ अपनी बची हुई इज्ज़त बचाइए
जवाब देंहटाएंआज तो आपकी कविता पढ़कर मजा आ गया ! बेचारे विश्वामित्र !
जवाब देंहटाएंवाह!वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही नफीस. आभार.
जवाब देंहटाएंसही है..लगे रहो..लम्बाई नपने में ज्यादा फासला बचा नहीं है अब!! :)
जवाब देंहटाएंaap ka bhi jawab nahi puri ki puri kahani ki kavita kar dali.....par ye indra aur vishwamitra ki ladai aap longon ko kisne batai.......kya aap log bhi indra ka blog padhte hain ya phir indra ne aap ke blog par tippadi ka dali....
जवाब देंहटाएंन रहे इन्द्र न रहे विश्ववामित्र ब्लागिंग की गली में सरक गए ...नारायण नारायण हरी ॐ
जवाब देंहटाएंविश्वामित्र लुटे बेचारे।
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से वे हारे॥
कुछ भी ब्लॉगिंग में न मिला था।
किंतु इन्द्र को चैन मिला था॥
वाह वाह!
टिप्पणियों में गाली देना ।
जवाब देंहटाएंतीखी लगने वाली देना ॥
"गुरु जी एक आध example / sample paper भी दे देते तो आगे के लिए शिष्यों को थोड़ा आसानी हो जाती.....हा हा हा हा हा हा हा "
Regards
आगे से आपके आलेखों पर टिप्पणी करते समय ध्यान रखेंगे।:)
जवाब देंहटाएंना विश्वामित्र लुटे ना ही इन्द्र ....लुटे तो हम टिप्पणी करने वाले
जवाब देंहटाएंमुसाफिर जाट ने यक्ष प्रश्न किया है भाया !
जवाब देंहटाएंmai kuchh nahi kahunga sirf ha ha ha ha hahahahaha.
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह!
जवाब देंहटाएंपहले मारो थोडा मस्का ।
जवाब देंहटाएंलेकिन जब लग जाए चस्का ॥
टिप्पणियों में गाली देना ।
वाह वाह जी वाह ..................
बहुत खूब
wah!
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYA...LAJAWAAB
जवाब देंहटाएंBahut Khub...badhai.
जवाब देंहटाएंगाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!
सारे देवी देवता
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लोग जगत मेँ
तशरीफ रखे दीखे हैँ
- लावण्या
हा हा हा...सुंदर है विवेक जी
जवाब देंहटाएंखूब कही । अच्छी बन पड़ी है ।
जवाब देंहटाएंलगे रहें... :)
यह तपस्या इतनी आसानी से पूरी नहीं होने वाली।
वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर. कविता अद्भुत है. विश्वामित्र की तपस्या टूटती रहनी चाहिए. इन्द्र के लिए यही ठीक है.