नक्सलवाद गरीब के, महँगे सब हथियार !
किया प्रबंधन किस तरह, समझ आया यार ?
समझ न आया यार, मदद मिल रही कहाँ से ?
पीकर लहू शान्त होती हैं किसकी प्यासें ?
बोलो तुम गृहमंत्री होते तो क्या कर लेते ?
वोटबैंक धर ताक, कड़े आदेश न देते ?
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किस्मत तू यह कर रही, कैसा क्रूर मज़ाक ?
आपा को देना पड़ा, बिना निकाह तलाक ॥
बिना निकाह तलाक, बुरा फँस गया बिचारा ।
गुम होशोहवास हैं, कुछ सोचा न विचारा ॥
साधू रोम रोम डर से बालक का काँपा ।
उसको दिया तलाक जिसे कहता था आपा ॥
मजदूर किसान को जिबह कर बंदूकची खुद-मुख्तार हुआ.
जवाब देंहटाएंसमझ न आया यार, झंडा किसके लहू से लाल हुआ.
आतंकवादी गिरोहों से लड़ने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की बड़ी ज़रुरत है वरना ये हमारे देश की सड़कें पटरियां यूंही उड़ाते रहेंगे. स्कूल, पुस्तकालय जलाते रहेंगे और इंसानियत को ज़िंदा दफनाते रहेंगे.
बेशक कही बात कविता में
जवाब देंहटाएंलेकिन बात ने है दम
कोई राज्य(देश) के सरकारी धन के बगैर
नही चल सकता ऐसा संगठन ।
तो फिर कौन है वह
जो भारत को कमजोर करने के लिए
ऐसे आतंकी संगठनो के संजाल खडे कर रहा है
क्यो माओवादीयो का संगठन वही है
जहा है चर्च का संगठन
क्या माओवादियो के
मालिक
और सोनिया के मालिक एक ही है
बाकी सब हमे बेवकुफ बनाने के लिए.....
बेशक कही बात कविता में
जवाब देंहटाएंलेकिन बात ने है दम
कोई राज्य(देश) के सरकारी धन के बगैर
नही चल सकता ऐसा संगठन ।
तो फिर कौन है वह
जो भारत को कमजोर करने के लिए
ऐसे आतंकी संगठनो के संजाल खडे कर रहा है
क्यो माओवादीयो का संगठन वही है
जहा है चर्च का संगठन
क्या माओवादियो के मालिक
और सोनिया के मालिक एक ही है
बाकी सब हमे बेवकुफ बनाने के लिए.....
एक नया विवेकीय ग्यान
जवाब देंहटाएंbahut बढिया लिखा। विचारणीय।
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