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गुरुवार, जनवरी 29, 2009
कुतिया का जनाज़ा है जरा धूम से निकले
नबाब साहब का रुतबा था ।
चलता खूब हुक्म उनका था ॥
उनको कोई नहीं कमी थी ।
जवाहरात की नींव जमी थी ॥
लेकिन किस्मत ऐसी सोई ।
उनको वारिस मिला न कोई ॥
कुतिया एक पाल रक्खी थी ।
जान सदा उसमें बसती थी ॥
जो कुतिया से पंगा लेता ।
अपनी जान मुफ्त में देता ॥
लोग डरे से सब रहते थे ।
उसे साहिबा सब कहते थे ॥
लेकिन हाय हुई अनहोनी ।
कुतिया थी जो बडी सलौनी ॥
एक बार बीमार पड गई ।
बीमारी वह बहुत बढ गई ॥
उसकी दवा बहुत करवाई ।
लेकिन कोई काम न आई ॥
कुतिया थी जो सबसे न्यारी ।
आखिर हुई खुदा को प्यारी ॥
शोक मनाता सारा सूबा ।
हर कोई था गम में डूबा ॥
निकला अगले रोज जनाजा ।
उदास धुन करता था बाजा ॥
सारा शहर सिमटकर आया ।
सबने खूब मर्शिया गाया ॥
दफनाकर घर वापस आए ।
नबाब साहब थे घबराए ॥
घबराहट बढ गई अचानक ।
बन्द हो गई दिल की धकधक ॥
नौकर चाकर जब तक आए ।
लोग माज़रा समझ न पाए ॥
नबाब साहब नहीं रहे थे ।
अश्रु किसी के नहीं बहे थे ॥
नबाब साहब पडे हुए थे ।
लोग बुतों से खडे हुए थे ॥
कौन उठाए जिम्मेदारी ?
यही प्रश्न था सबसे भारी !
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सही कहा विवेक भाई............
जवाब देंहटाएंकौन उठाए जिम्मेदारी, जब मालिक ही नही रहे तो कौन करेगा
ईब के कहूं थम तो कुतिया के ज़नाज़े ताहिं आ लिये....
जवाब देंहटाएंpar
सरल हास्य ने अभिभूत किया.... वाह...
सरल हास्य के बहाने गम्भीर बात कह गये आप। बधाई।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi or stik ....
जवाब देंहटाएंआपने तो हास्य रचना में बहुत कुछ कह डाला ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
काश नवाब साहब ने इंसान को विश्वास पात्र बनाया होता ! -हास्य में गंभीर बात कह दी है.
जवाब देंहटाएंअरे भई, दो बार टिपियाये..दोनों गुम...पता नहीं..कहाँ चली जातू हैं!!
जवाब देंहटाएंप्रश्न तो वाकई भारी है..
आखिर जिम्मेदारी है...
वह गजब का कुतियानामा लिखा है आखिर कुतिया नबाब साहब की थी
जवाब देंहटाएंघणि सुथरी थी नवाब साहब की कुतिया तो. चाल्हा ही होग्या यो तो भाई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धर्मेन्द्र जी को मत बताइयेगा वो खून पीने पहुँच जायेंगे॥( नवाब साहब का नही भाई, कुतिया का)
जवाब देंहटाएंनबाब साहेब की कुतिया को श्रदांजली..:(
जवाब देंहटाएंपर बेचारे नबाब सहेब.. कोई उनका तो जनाजा निकाले..
अरे साहेब आप ने तो इंसानी भावनाओ को नवाब और कुतिया का रूप दे डाला शायेद आप भी कुतिया के मरने से दुखी हैं चलिए अब नवाब की जिम्मेदारी ले ही ली जाए आख़िर हर किसी के अन्दर एक नवाब तो है ही जो हर वक्त परेशान किया करता है.... माफ़ कीजियेगा
जवाब देंहटाएंनवाबी कुतिया की अपनी महत्ता है सर!
जवाब देंहटाएंदेखिये विवेक जी कहीं इस रचना पर कोई विदेशी पुरस्कार-वुरूस्कार न मिल जाये आपको।गज़ब लिखा है।
जवाब देंहटाएंनबाब साहब कौन पार्टी के थे? पता लगे तो उस पार्टी से शोक सभा करने को कहा जाये।
जवाब देंहटाएंकुतिया के भाग्य देख कुछ इर्षा का अनुभव सा हो रहा है . है नवाब सहब तुम चले गए मै तो कुतिया की जगह लेने को तैयार था .
जवाब देंहटाएंविवेक भाई क्या लिख रहे हो ? १०० वि पोस्ट की अग्रिम बधाई .
सर
जवाब देंहटाएंअति आनंदित करने वाली कविता
कुतिया एक पाल रक्खी थी ।
जान सदा उसमें बसती थी ॥
जो कुतिया से पंगा लेता ।
अपनी जान मुफ्त में देता ॥
jitni vahiyat kavita utney hee sadhuvaad kament
जवाब देंहटाएंjai ho hindi blogger aur bloging paele jao aur sadhu sadhu chillao . sadhu kae bhesh mae kaun ho iska vivek bhul jao
bahut umda rachana
जवाब देंहटाएंकुत्ते/कुतिया के मरने पर कैसा लगता है यह केवल वे ही जान सकते हैं,कुत्ते जिनके परिवार का हिस्सा रहे हों।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
हास्य का विडम्बनापूर्ण चित्र.
जवाब देंहटाएंआनन्द आया .
कुतिया का जनाज़ा है बडी़ धूम से निकले।
जवाब देंहटाएंविवेकजी का कहना है ज़रा झूंम के पढ़लें॥
bhut sundr gudgudati sath hi jeevn ka drshn krati rchna hai.BADHAI
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबधाई