संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
शुक्रवार, दिसंबर 19, 2008
मेरे पै जो डीजे होता.....
आओ तुमको आज बताएं ।
कलयुग में है कैसी भक्ति ॥
विषय-वासना में सब डूबे ।
छोड न पाए ये आसक्ति ॥
एक भक्त ने करी तपस्या ।
शिवजी को प्रसन्न कर लिया ।।
नन्दी पर चढ आए भोले ।
बोले "भक्त माँगता है क्या ?
खुलकर आज माँगले कुछ भी ।
तुझे वही वर मिल जाना है ॥
बोल तुझे अप्सरा चाहिए ।
या लक्ष्मी का दीवाना है ? "
सुनकर भक्त हो गया पागल ।
लगा नाचने वहीं खुशी से ॥
बोला "मुझे लक्ष्मी से क्या ?
मुझे चाहिए तो बस डीजे ।।"
शिवजी को तब हँसी आगई ।
उसका हाथ पकडकर देखा ।
बोले "तेरी कमी नहीं हैं ।
इसमें नहीं अकल की रेखा ॥
तुझको इतनी समझ नहीं हैं ।
अरे बावली बूच नूँ बता ॥
मेरे पै जो डीजे होता ।
मैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
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"मेरे पै जो डीजे होता ।
जवाब देंहटाएंमैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
वाह विवेक भइया ! लक्ष्मी की जगह डीजे मांग बैठा .
शंकर जी भी उकता गये हैं न डमरू से ?
डी जे और डमरू -वाह वाह साधू साधू ,बम बम भोले डी जे बोले
जवाब देंहटाएंवाह, भगवान को चंदा करके एक डीजे भेंट किया जाये।
जवाब देंहटाएंनही भाई शंकर जी उकता गए होते तो दन से डमरू ना पकडा दिए होते उस अक्ल के पैदल को ! और शकर जी का डीजे भी तो वही डमरू ही है !
जवाब देंहटाएंसही है भाई!
जवाब देंहटाएंअरे भाई विवेक जी, शंकर जी आपके रिश्तेदार हैं तो ये थोड़े ही है कि आप उनकी मजबूरियों की पोल खोलें. वैसे बढ़िया लिखा है.
जवाब देंहटाएंअरे बावली बूच नूँ बता ॥
जवाब देंहटाएंमेरे पै जो डीजे होता ।
मैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
बहुत लाजवाब ! शिवजी से बात करके देखते हैं ! शुकल जी की सिफ़ारिश पर गौर किया जाये ! और हां शिवजी आजकल ताऊ के यहां पर रहते हैं तो वो चन्दे वाला डी जे हमको भिजवा दिजिये ! हम उनको दे देंगे ! :)
बहुत रोचक
जवाब देंहटाएं================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हाहाहा.. सही है...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर. आभार. वैसे हम अक्सर ताऊ जी का साथ देते हैं. इस भर भी.
जवाब देंहटाएंबावली बूच को पता नही है की डी जे को रात सिर्फ़ दस बजे तक बजने की परमिशन है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। डीजे वाला आइडिया वाकई लाजवाब है।
जवाब देंहटाएंमेरे पै जो डीजे होता ।
जवाब देंहटाएंमैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
झकास कविता ठेल दिए...अब कैलाश पर्वत हिलने लगेगा ओर उधर से ब्रह्मा जी कहेगे... फोन लगाकर "यार शिव थोड़ा आहिस्ते बजा "रात के दो बजने को है
वाह ! क्या खूब कही......हा हा हा
जवाब देंहटाएं:-) डी जे को रात सिर्फ़ दस बजे तक बजने की परमिशन है..कुश ने सही कहा
जवाब देंहटाएंअब मैं पूछूं कि डीजे क्या होता है तो शायद अजीब लगे। पर वास्तव में मुझे नहीं मालुम।
जवाब देंहटाएंsham on you. who is dragging bhagwan shankar for his own fun.
जवाब देंहटाएंWhat do you think that you will be treated mhakavi.
Sorry but it was disgusting.
वाह भाई विवेक जी, मजा आ ग्या । शिवजी नै डी जे की के जरूरत पडगी भांग से त्याग पत्र दे दिया लागै ।
जवाब देंहटाएंinteresting plot !!! :)
जवाब देंहटाएंRegards
"मेरे पै जो डीजे होता ।
जवाब देंहटाएंमैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
सही कहा शिव के पास डीजे होता तो वो इस ज़माने में डमरू लिए क्यों घूमते ?
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअरे बावली बूच नूँ बता ॥
जवाब देंहटाएंमेरे पै जो डीजे होता ।
मैं क्यों डमरू लिए घूमता
" " हा हा हा हा हा अब बात ही ऐसी है की .... वैसे अनूप जी की बात पर गौर किया जा सकता है, जल्दी से चंदा इकठा करने की एक कमेटी बनाई जाए.."
Regards
बहुत सुन्दर रचना मजेदार और यथार्थ
जवाब देंहटाएंbahut sahi bhai!
जवाब देंहटाएंसरल हास्य का सुखद एवं खिलखिलाता अहसास..... बधाई.. विवेक जी..
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